‘गुरुकृपायोगानुसार साधना में ‘स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भक्तिभाव, सत् के लिए त्याग एवं अन्यों के प्रति प्रीति (निरपेक्ष प्रेम)’ इस अष्टांग साधना के अनुसार साधना करते समय साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करने से कुल १२२ साधक संत बन गए, तथा १ सहस्र ८७ साधक उस दिशा में अग्रसर हैं । साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने का कारण यह है कि गुरुकृपायोग में भक्तियोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग, इन तीन प्रमुख साधना-पद्धतियों में से कुछ साधनामार्गाें का समावेश है । इसका विवरण आगे दिया गया है ।
१. उक्त सारणी में समाहित कुछ अंगों का विश्लेषण
१ अ. स्वभावदोष-निर्मूलन एवं गुण-संवर्धन तथा अहं-निर्मूलन : ज्ञानयोग में प्रमुखता से ‘मैं’ को भूलना होता है । स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन के लिए प्रयास करने के कारण ‘मैं’ को भूलने की साधना होती है । गुणों का संवर्धन करते समय भी स्वयं में विद्यमान स्वभावदोष एवं अहं का अपनेआप ही निर्मूलन होता रहता है, उदा. स्वयं में ‘प्रेमभाव’ का गुण विकसित करते समय स्वयं में विद्यमान ‘क्रोध’ अपनेआप न्यून होने लगता है । इसी के लिए यह ज्ञानयोग है ।
१ आ. सत्संग : इसके कारण अध्यात्म का ज्ञान मिलता है, साथ ही ‘मुझे अन्यों से सीखना है’, इसका भान होने से ‘मैं’ पन नष्ट होने में सहायता मिलती है; इसलिए यह ज्ञानयोग है ।
१ इ. सत् के लिए त्याग : इसमें समर्पण की वृत्ति होने से ‘मैं’ को भूलना संभव होता है; इसलिए यह ज्ञानयोग है ।
१ ई. सत्सेवा : ‘सत्सेवा गुरु की सेवा अथवा धर्मसेवा है तथा गुरु अथवा भगवान वह मुझसे करवा ले रहे हैं’, यह भाव होने से सत्सेवा का कर्म ‘निष्काम कर्म’ होता है; इसलिए यह कर्मयोग है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. अठावले डॉ. आठवले (१२.४.२०२२)