साधकों को साधना के लिए प्रेरित करनेवाला श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का अमूल्य मार्गदर्शन !

श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

१. जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर ईश्वरप्राप्ति के लिए कुछ तो कष्ट भोगने ही पडेंगे !

‘आश्रम में रहकर पूर्णकालीन साधना करनेवाले एक साधक ने उसे हो रहे आध्यात्मिक कष्टों के कारण घर जाने का विचार किया । श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी को उसने यह बताया । उस समय उन्होंने उसे मार्गदर्शन करते हुए बताया, ‘‘तुम (साधक) कहीं भी रहो; परंतु आनंदित एवं साधनारत रहो’, यही ईश्वर को अपेक्षित है । ‘हमें आश्रम में रहना है अथवा घर पर ?’, यह संबंधित साधक को सुनिश्चित करना चाहिए । जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को कुछ अच्छा अर्जित करने के लिए कडा संघर्ष करना पडता है । व्यवहार में भी नियमित जीवन जीने के लिए मनुष्य को अथक संघर्ष करना पडता है । हमें जो जन्म-मृत्यु के चक्र से स्वयं को मुक्त कराकर ईश्वरप्राप्ति कर लेनी है, तो उसके लिए कुछ तो कष्ट भोगने ही पडेंगे ।

२. घर पर रहकर तथा आश्रम में रहकर साधना करने में अंतर

२ अ. घर पर रहने से होनेवाले संघर्ष के करण मन को असहनीय पीडा एवं दुख होना; परंतु वही संघर्ष आश्रम के दैवी वातावरण में तथा संतों की छत्रछाया के तले सहनीय बन जाना  :  जिनके लिए संभव है, उन्होंने आश्रम में रहकर साधना की, तो वे उसका अधिक आध्यात्मिक लाभ उठा सकते हैं । घर में बैठकर प्रार्थना करना तथा वही कृत्य किसी मंदिर जाकर करने में कितना अंतर होता है न ! अपने मन से औषधि लेना तथा वही किसी वैद्य से लेना, इसमें कितना अंतर है न ! इतना ही नहीं, आश्रम में रहकर संतों के सत्संग में रहकर साधना करने के लाभ भी उतने ही अधिक हैं । जो संघर्ष घर पर रहकर मन को असहनीय पीडा एवं दुख देता है, वही संघर्ष आश्रम में रहकर वहां के दैवी वातावरण में तथा संतों की छत्रछाया में सहनीय बन जाता है ।

२ आ. गुरु की छत्रछाया में हमारे प्रारब्धभोग शीघ्र चुकाने में सहायता मिलती है ।

२ इ. आश्रम की दैवी ऊर्जा से हमारे कष्ट एवं पीडा अनजाने में ही अपनेआप अल्प होते जाते हैं ।

२ ई. आश्रम के साधक भी हमारी समस्याओं में सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं ।

३. साधकों को ईश्वरीय कार्य में सम्मिलित होकर गिलहरी का योगदान देने का जो सौभाग्य गुरुकृपा से प्राप्त हुआ है, उसके लिए चाहे कितना भी संघर्ष क्यों न करना पडे; परंतु साधकों को साधना न छोडने तथा अपने मनुष्यजीवन को सार्थक बनाने का दृढ निश्चय करना  आवश्यक है

आज के समय की मांग को देखते हुए राष्ट्र एवं धर्म के उत्थान के लिए तन, मन एवं धन का त्याग कर साधना करनेवालों की अधिक आवश्यकता है । ईश्वरीय कार्य में सम्मिलित होकर गिलहरी का योगदान करने का जो सौभाग्य हमें गुरुकृपा से मिला है, उस अवसर को साधकों को कदापि गंवाना नहीं चाहिए । साधकों को ‘चाहे कितनी भी समस्याएं क्यों न आएं, कष्ट हुए अथवा संघर्ष करना पडा; तब भी मैं साधना नहीं छोडूंगा । भगवान के चरण नहीं छोडूंगा’, मनमें यह दृढ निश्चय करने का समय आ गया है । साधक इस सत्य को समझ लें तथा स्वयं के मन पर यह बात अंकित कर लें कि उनका जन्म ईश्वरप्राप्ति के लिए ही हुआ है । माया में लिप्त होकर अपना जीवन व्यर्थ गंवाने के लिए नहीं !’

– श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ (२६.३.२०२०)