‘कुछ साधकों को कार्यक्रम में ‘वक्ता’ के रूप में विषय रखना, समाचार वाहिनियों पर प्रसारित परिचर्चाओं में बोलना इत्यादि सेवाएं करना प्रिय होता है । संगणकीय सेवा करनेवाले कुछ साधकों को स्वच्छता सेवा अथवा रसोईघर से संबंधित सेवाएं कनिष्ठ स्तर की लगती हैं । उसके कारण वे शूद्र वर्ण की इन सेवाओं को करने में टालमटोल करते हैं ।
समर्थ रामदासस्वामी के परमशिष्य कल्याण स्वामी ने शूद्र वर्ण की सेवाएं जैसे गुरु के लिए पानी भरना, उनके पैर दबाना आदि सेवाएं भावपूर्ण पद्धति से कर समर्थ रामदासस्वामी की कृपा प्राप्त की थी । प.पू. डॉक्टरजी ने अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के आश्रम में स्वच्छता करना, परिसर स्वच्छ करना आदि शूद्र वर्ण की सेवाएं भी अत्यंत मनोयोग से कर अपने गुरु का मन जीत लिया ।
गुरुचरणों में अर्पण की जानेवाली प्रत्येक सेवा से साधक की सभी देहों की शुद्धि होती है । शूद्र वर्ण की सेवाओं के कारण अहंकार शीघ्र न्यून होने में सहायता मिलती है । साधकों के मन में सेवा में बार-बार रुचि-अरुचि संजोने के विचार आते हों, तो वे इस विषय में उत्तरदायी साधकों से बात कर उसके लिए स्वसूचनाएं दें तथा कृति के स्तर पर स्वयं में परिवर्तन लाएं !
साधको, ‘जो दिखे, वह कर्तव्य’ के भाव से अपने गुरु के आश्रम में शूद्र वर्ण की सेवाएं भी बडे संतोष के साथ करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का आदर्श अपने सामने रखें तथा गुरुदेवजी द्वारा आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रदान किया हुआ कोई भी अवसर न गंवाएं !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२२.११.२०२२)