सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ८३ वें जन्मोत्सव निमित्त…

‘ज्ञानियों का राजा । गुरु महाराज ।’ इस प्रकार वर्णित व्यक्तित्व सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी हैं । धर्म, कला, भाषा, राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति आदि विषयों पर विपुल ग्रंथलेखन करनेवाले वे ‘ज्ञानगुरु’ हैं । शीघ्र ईश्वरप्राप्ति हेतु ‘गुरुकृपायोग’ नामक सरल साधना-पद्धति की रचना कर साधकों को कालानुकूल उचित साधना सिखानेवाले वे ‘मोक्षगुरु’ हैं । वर्तमान काल में ‘विश्वकल्याण के लिए सत्त्वगुणी व्यक्तियों का ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र, सनातन धर्मराज्य) होना आवश्यक है’, यह उद्घोष सर्वप्रथम करनेवाले वे ‘राष्ट्रगुरु’ हैं । हिन्दू समाज, राष्ट्र और धर्म के उत्कर्ष हेतु दृढ संकल्पित विचारधारा उनके विचार और क्रियाओं में हर जगह दृष्टिगोचर होती है । इसी कारण अनेक हिन्दू धर्मावलंबी, हिन्दुत्वनिष्ठ, धर्मप्रचारक और संत उन्हें ‘धर्मगुरु’ मानते हैं । उनके मार्गदर्शन से देश-विदेश के विभिन्न पंथों के अनुयायी हिन्दू धर्म का महत्त्व और साधना समझते हैं, जिससे वे ‘जगद्गुरु’ माने जाते हैं । उनके जीवन चरित्र का संक्षिप्त परिचय इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है । पिछले अंक में हमने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अद्वितीय कार्य के कुछ पहलू देखे थे । अब उनके कार्य का आगे का विवरण पढिए ।
सम्मोहन उपचार संबंधी विविध स्थानों पर व्याख्यान आयोजित करना![]() ![]() ‘सम्मोहन उपचार विशेषज्ञ’ के रूप में सम्मान १.५.१९८८ को मुंबई के ‘चतुरंग प्रतिष्ठान’ ने ‘सम्मोहन उपचारशास्त्र में प्रवीणता प्राप्त करनेवाले भारत के प्रथम डॉक्टर’ के रूप में उनका सम्मान किया । |
भारत में पुनरागमन एवं ‘सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञ’ के रूप में किया कार्य
डॉ. आठवलेजी ने मुंबई में ‘सम्मोहन उपचार – विशेषज्ञ’ के रूप में चिकित्सा व्यवसाय आरंभ किया । उस काल में समाज को सम्मोहन उपचार की जानकारी देने हेतु डॉ. आठवलेजी ने आगे दिए विषयों पर व्याख्यान किए ।
अ. व्यसन एवं सम्मोहन उपचार
आ. ज्येष्ठ नागरिक एवं स्वसम्मोहन
इ. छात्रों की शैक्षिक समस्याएं एवं सम्मोहन उपचार
ई. पुलिस एवं सम्मोहनशास्त्र
उ. वकील एवं सम्मोहनशास्त्र
ऊ. डॉक्टर एवं सम्मोहनशास्त्र
ए. सुखी जीवन हेतु सम्मोहन
ऐ. व्यक्तित्व विकास (आकाशवाणी व ‘दूरस्थ शिक्षा मंडल’, मुंबई विद्यापीठ में व्याख्यान)
१. विवाह
‘सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञ’ के रूप में चिकित्सकीय व्यवसाय करते समय २४.५.१९८१ को मुंबई में डॉ. आठवलेजी का विवाह चि. सौ.कां. कुंदा बोरकर से हुआ ।
२. ‘सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञ’ के रूप में किए विविधांगी सामाजिक कार्य !
२ अ. अन्वेषण में पुलिस की सहायता : मुंबई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त श्री. अरविंद इनामदार ने एक परिवार की हत्या के अन्वेषण हेतु एवं मुंबई विमानतल पर बमविस्फोट से ‘एयर इंडिया’ का विमान नष्ट करनेवाले आतंकियों से जानकारी पाने के लिए डॉ. आठवलेजी को बुलाया था । इसमें डॉक्टरजी ने पुलिस की निःशुल्क सहायता की ।
३. शीव, (मुंबई) में निजी चिकित्सालय आरंभ !
डॉ. आठवलेजी ‘सम्मोहन विशेषज्ञ’ नहीं, ‘सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञ’ के रूप में विख्यात थे ! उन्होंने अपने चिकित्सालय के प्रतीक्षा-कक्ष में रोगियों को ‘सम्मोहन उपचार-पद्धति’ की जानकारी देनेवाले भित्तिपत्रक (पोस्टर) लगाए थे । साथ ही विविध रोगों पर ‘सम्मोहन उपचार’ की जानकारी देनेवाले अपने प्रकाशित लेख रखे थे ।
४. अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञके रूप में ख्याति होना
अ. वर्ष १९७८ से १९९३ की कालावधि में डॉ. आठवलेजी ने ५०० से अधिक डॉक्टर, दंतरोग विशेषज्ञ, मनोविकार विशेषज्ञ आदि के लिए सम्मोहनशास्त्र एवं सम्मोहन उपचार के सिद्धान्तों का प्रत्यक्ष प्रदर्शन कर उनका मार्गदर्शन किया ।
आ. वर्ष १९९४ में जब डॉक्टरजी ने अपना चिकित्सा व्यवसाय बंद कर दिया, तब उनके पास १००० रोगियों पर किए सम्मोहन उपचारों की परिपूर्ण जानकारी (केस स्टडी) का विश्व में सबसे बडा संग्रह था । इस संख्या में उन रोगियों का समावेश नहीं था, जिनका उपचार अधूरा रहा या उपचार पूर्ण होने पर पुनः संपर्क न हो पाया ।
इ. ‘डॉ. आठवलेजी लिखित सम्मोहन उपचार-पद्धति सिखानेवाले ग्रंथ, निरंतर ५ वर्ष ‘भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन एवं संशोधन (शोध) पत्रिका’ का संपादन, लोकप्रिय नियतकालिकों में प्रकाशित १२३ से अधिक लेख, विदेश में प्रशंसाप्राप्त शोधपरक लेख, यह उनकी चिकित्सा क्षेत्र में उनके सफल कार्यकाल की तथा अभ्यासपूर्ण एवं अद्वितीय शोध की फलोत्पत्ति है ।
५. ‘भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन एवं संशोधन (शोध) संस्था’ की स्थापना एवं उसके द्वारा किया कार्य
डॉ. आठवलेजी ने १.१.१९८२ को ‘भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन एवं (शोध) संस्था’ (द इंडियन सोसायटी फॉर क्लिनिकल हिप्नॉसिस एंड रिसर्च)’ की स्थापना की । ‘अंतरराष्ट्रीय सम्मोहन संस्था’ से संलग्न इस संस्था के उद्देश्य थे – ‘चिकित्सकीय दृष्टिकोण से सम्मोहनशास्त्र के विषय में शोध करना और भारत में सम्मोहन उपचार-पद्धति का प्रसार करना ।’ इस संस्था में ८ से १० चिकित्सक (डॉक्टर) शोधरत थे । इस संस्था द्वारा डॉक्टर, दंत चिकित्सक, मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिस्ट) और मनोविकार विशेषज्ञों के लिए वर्ष १९८२ से लेकर वर्ष १९८६ तक मुंबई, वडोदरा, कोलकाता आदि स्थानों पर सम्मोहन चिकित्सा पर प्रशिक्षण कक्षाओं का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग ४०० विशेषज्ञों को प्रशिक्षण दिया गया ।
६. सम्मोहन चिकित्सा और सम्मोहन उपचार पर ग्रंथसंपदा
डॉ. आठवलेजी द्वारा लिखित ‘दी इंडियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल हिप्नोसिस एंड रिसर्च’ के १ से ५ भाग (वर्ष १९८३-१९८७), ‘हिप्नोथेरेपी अकोर्डिंग टू द पर्सनैलिटी डिफेक्ट मॉडल ऑफ साइकोथेरेपी’, ‘सम्मोहन शास्त्र’, ‘सुखी जीवन के लिए सम्मोहन उपचार’, ‘शारीरिक विकारों के लिए स्वसम्मोहन उपचार’, ‘यौन समस्याओं के लिए स्वसम्मोहन उपचार’, ‘मानसिक विकारों के लिए स्वसम्मोहन उपचार’ (२ भाग), ‘स्वभावदोष-निर्मूलन और गुणसंवर्धन प्रक्रिया’ (३ भाग), ये सभी ग्रंथ; लोकप्रिय पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके १२३ लेख और विदेशों में सराहे गए शोध-निबंध, ये सभी उनके चिकित्सा क्षेत्र में सफल कार्यकाल और सम्मोहन-चिकित्सा के संदर्भ में गहरे अध्ययन और अद्वितीय अनुसंधान का परिणाम हैं ।
७.‘सम्मोहन उपचार-विशेषज्ञ’ के रूप में सम्मान
सम्मोहन उपचारशास्त्र में प्रवीणता प्राप्त भारत के पहले डॉक्टर के रूप में १.५.१९८८ को मुंबई के ‘चतुरंग प्रतिष्ठान’ ने उनका सत्कार किया ।
(सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के चरित्र के विषय में आगामी ग्रंथ से लेखन)