प्राणशक्ति प्रणाली उपचार पद्धति ढूंढना

रोगनिवारण के संदर्भ में बिंदुदाब, रिफ्लेक्सोलॉजी आदि उपचार-पद्धतियों में पुस्तकें अथवा जानकारों की सहायता आवश्यकता होती है । पिरैमिड, चुंबक चिकित्सा आदि उपचार-पद्धतियों में संबंधित साधन आवश्यक होते हैं ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि काल महिमा के अनुसार वह निश्चित ही होगा; परंतु इस कार्य में जो तन- मन-धन का त्याग करके सम्मिलित होगा, उसकी साधना होगी और वह जन्म मृत्यु के फेरे से मुक्त होगा !’

साधना और भक्ति द्वारा ही आनेवाले भीषण तीसरे विश्वयुद्ध में भक्तों की रक्षा होगी ।

धर्म अधर्म युद्ध में जो ईश्वर की भक्ति करता है, धर्म के पक्ष में खडा रहता है, ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं; परंतु उसके लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है ।

सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर (आयु ३ वर्ष) को ज्ञात हुई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महानता !

एक बार पू. वामन (सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर) ने सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी से कहा, ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी नारायण हैं । नारायण एक ‘तत्त्व’ है । वे तेजतत्त्व हैं । मैं उनके साथ बात नहीं कर सकता ।’’

दुःसाध्य रोग की वेदना सहते हुए ‘गुरुस्मरण, गुरुध्यान और गुरुभक्ति’ के त्रिसूत्रों का पालन कर संतपद प्राप्त करनेवाले पू. (स्व.) डॉ. नंदकिशोर वेदजी !

धन्य वे पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी, जिन्होंने ‘अति अस्वस्थ स्थिति में भी साधना कैसे कर सकते हैैं ?’, यह स्वयं के उदाहरण से साधकों को सिखाया और धन्य वे परात्पर गुरु डॉक्टरजी, जिन्होंने पू. डॉ. वेदजी जैसे संतरत्न दिए !

अल्प आयु में अत्यधिक प्रगल्भ विचारोंवाली फोंडा (गोवा) की ६६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. श्रिया राजंदेकर (आयु १० वर्ष) !

‘प्रत्येक को उनके कर्माें का फल और प्रारब्ध भोगकर कब प्रगति करनी है ?’, यह बात भगवान द्वारा निश्चित की गई है । हम उसमें कुछ नहीं कर सकते । हमें उनकी ओर साक्षीभाव से देखना होगा ।

डॉ. वेदजी ने अपनी बेटी श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर के आध्यात्मिक जीवन के विशद किए चरण एवं गुरुदेवजी के प्रति व्यक्त की कृतज्ञता !

‘वर्ष २००० में सरयू विहार, अयोध्या में सनातन संस्था के साधक सत्संग के लिए आए थे, तब क्षिप्रा ने अपने कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । तदुपरांत गुरुकृपा से ‘वह बंद दरवाजा कब खुला, क्षिप्रा सत्संग कब लेने लगी और अयोध्या के सनातन के कार्य का दायित्व भी लेने लगी’, वह पता ही न चला ।

ग्रंथलेखन का अद्वितीय कार्य करनेवाले एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना हेतु प्रयास करना कालानुसार आवश्यक समष्टि साधना ही है । इसके संदर्भ में समाज का मार्गदर्शन होने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’, ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र : आक्षेप एवं खण्डन’ जैसे समष्टि साधना सिखानेवाले ग्रंथों की रचना की ।

मथुरा (उत्तर प्रदेश) एवं इंदौर (मध्य प्रदेश) में हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का शंखनाद

आनंददमय जीवन जीना हो, तो प्रत्येक व्यक्ति को सनातन धर्म का पालन करना चाहिए । साधना करने से ही हिन्दू धर्म की महिमा ज्ञात हो सकती है और आनंद का अनुभव किया जा सकता है ।

तृतीय विश्वयुद्ध के विषय में भविष्यवाणी, विश्वयुद्ध के दुष्परिणाम और उनसे बचने हेतु आवश्यक उपाय

तृतीय विश्वयुद्ध की अवधि साधकों की ईश्वरभक्ति पर निर्भर होगी । यह युद्ध भक्तों (धर्माचरण करनेवाले जीवों) और अनिष्ट शक्तियों (अधर्माचरण करनेवाली जीवों) के मध्य होनेवाला है; इसलिए इस युद्ध की अवधि बदल सकती है ।