परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महर्षि के प्रति शिष्यभाव एवं महर्षि का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति ‘श्रीमन्नारायण के अवतार’ में आदरभाव !

रथोत्सव के दिन सवेरे सप्तर्षियों का संदेश आया, ‘श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी ने हम सभी की प्रार्थना सुन ली है । प्रकृति अनुकूल हो गई है । मेघ पूर्ण रूप से गए नहीं थे; गुरुदेवजी ने उन्हें साधकों की दृष्टि से दूर ले जाकर रखा था । रथोत्सव समाप्त होने पर ये मेघ पुन: बरसेंगे ।

हलाल मांस का सेवन करने से हिन्दुओं की धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति न्यून होगी ! – पू. डॉ. युधिष्ठिरलाल महाराजजी, शदाणी दरबार

हिन्दू जनजागृति समिति, अखिल भारतीय हिन्दू स्वाभिमान सेना और शदाणी सेवा मंडल, रायपुर के संयुक्त आयोजन में यहां के शदाणी दरबार तीर्थ में ‘हलाल प्रमाणपत्र – एक षड्यंत्र’ विषय पर एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया था ।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए साधना और सेवा करने का सभी धर्मप्रेमियों का निश्चय !

हिन्दू जनजागृति समिति के उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों के समन्वयक श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू-संगठन, साधना, वक्तृत्व विकास और सूचना के अधिकार का प्रशिक्षण आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर उपस्थित धर्मप्रेमियों का मार्गदर्शन किया ।

श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य का महत्त्व

‘भक्तों की रक्षा एवं दुर्जनों के विनाश’ के लिए भगवान अवतार धारण करते हैं । यह अवतार का मूल कार्य है; परंतु अवतारी लील का एक और अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है अवतार द्वारा पृथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात वे युगों-युगों से भक्तों को भवसागर से मुक्त होने का मार्ग दिखाते हैं ।

सूक्ष्म स्तर पर कार्य करनेवाले एकमेवाद्वितीय !

जब-जब अधर्म बलवान होता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं और धर्म की पुनर्स्थापना करता हूं’, ऐसा श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है । भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण चरित्र देखें, तो उसमें विविध बातें अंतर्भूत हैं ।

सूक्ष्म से मिलनेवाले ज्ञान में अथवा नाडीपट्टिका में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उल्लेख ‘संत’ न करते हुए ‘विष्णु का अंशावतार’ होने के विविध कारण !

अन्य संप्रदायों में उनके द्वारा बताई साधना करते समय उस साधक को कुछ न कुछ बंधन पालने पडते हैं; परंतु सनातन में साधना करते समय साधना के अतिरिक्त अन्य कोई भी बंधन नहीं बताए जाते ।

जयपुर, राजस्थान के शिवभक्त पू. वीरेंद्र सोनीजी (आयु ८७ वर्ष) का देहत्याग !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने ३० नवंबर २०२१ को पू. वीरेंद्र सोनीजी को संत घोषित किया था । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा वर्ष २०१९ में की गई कैलास-मानसरोवर (मानस सरोवर) यात्रा के श्री. वारिद सोनी मार्गदर्शक थे ।

स्वयं महर्षि जिनकी महिमा वर्णन करते हैं, ऐसे श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

इस विश्व में अनेक लोग स्वयं को ‘गुरु’ कहलाते हैं; परंतु उनमें ‘सच्चे गुरु’ ऐसे कोई नहीं हैं । सप्तर्षियों की दृष्टि से इस पृथ्वी पर ‘गुरु’ अर्थात केवल परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में साक्षात भगवान ही ‘गुरु’ के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।

विशिष्ट कष्ट के लिए विशिष्ट देवता का नामजप

सनातन के साधकों को अनिष्ट शक्तियों के कारण आध्यात्मिक कष्ट होने लगे, तब परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हमें समय-समय पर बताया कि ‘सनातन के साधक ईश्वरीय राज्य (हिन्दू राष्ट्र) की स्थापना हेतु कार्यरत हैं; उसके कारण ही साधकों को अधिकांश कष्ट भुगतने पड रहे हैं ।

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन कर भगवान को अपना बनाने के लिए कहना

‘मन, बुद्धि एवं चित्त शुद्ध हुए बिना हम भगवान से एकरूप नहीं हो सकते’, यह सिद्धांत है । इस प्रकार भगवान को अपना बनाना सिखाकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी बहुत पहले से साधकों से आपातकाल की तैयारी करवा ले रहे हैं ।