एक असफल क्रांति !
अक्टूबर १९१७ में रूस में क्रांति हुई । पूरे विश्व में साम्यवादी क्रांति के विचारों की हवा बहने लगी । पीटर फ्राइर ब्रिटिश मार्क्सवादी लेखक था । उसने अपने लेख से तथाकथित क्रांति का बहुत अच्छा विश्लेषण किया ।
अक्टूबर १९१७ में रूस में क्रांति हुई । पूरे विश्व में साम्यवादी क्रांति के विचारों की हवा बहने लगी । पीटर फ्राइर ब्रिटिश मार्क्सवादी लेखक था । उसने अपने लेख से तथाकथित क्रांति का बहुत अच्छा विश्लेषण किया ।
वर्ष २०१३ में लाहौर उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की गई थी जिसमें क्रांतिकारी भगतसिंह को वर्ष १९३१ में दी फांसी के दंड के प्रकरण पर पुन: सुनवाई की मांग के साथ ही भगतसिंह को मरणोत्तर राष्ट्रीय पुरस्कार देने की मांग भी की गई थी ।
इसका लाभ ९०० बच्चों और २८ शिक्षकों ने लिया । इस अवसर पर क्रांतिकारियों की और धर्मशिक्षा प्रदान करनेवाले फ्लेक्स की प्रदर्शनी लगाई गई, जिसका लाभ पाठशाला के विद्यार्थियों व शिक्षकों ने लिया ।
ओज के सशक्त हस्ताक्षर और कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन करने वाले युवा कवि श्री हर्ष बहादुर सिंह हर्ष ने ” शत्रुओं के वक्ष पे तिरंगे गाड देने हैं ” नामक जोरदार कविता से लोगों को देशप्रेम की भावना से भर दिया ।
सभी पार्टियों के शासनकर्ताओं द्वारा जनता को राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रपुरुषों के विषय में आदर न सिखाने का यह परिणाम है !
‘‘भारत वीर एवं बलिदानियों की भूमि है । यहां धर्म की रक्षा के लिए सिख गुरुओं ने बलिदान दिया । राजस्थान में राजपूत स्त्रियों ने जोहार कर स्वयं को अग्नि में झोंक दिया । छत्रपति संभाजी महाराज ने ४० दिन तक औरंगजेब के अत्याचार सहन किए; पर धर्म-परिवर्तन नहीं किया ।
वास्तव में ऐसी मांग करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए ! सरकार को स्वयं आगे आकर इस विषय में कृति करना आवश्यक है !
गांधी और नेहरू परिवार ने हमेशा ही क्रांतिकारियों का अपमान किया है । इस कारण राहुल गांधी का इस कार्यक्रम के लिए अनुपस्थित रहना, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं ! कांग्रेस को क्षमा मांगने की अपेक्षा प्रायश्चित के रुप में क्रांतिकारियों का सम्मान करने का प्रयास करना चाहिए !
देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित करनेवाले क्रांतिकारियों को भूलना, यह सरकारी व्यवस्था की उनके प्रति कृतघ्नता दर्शाता है ! यह स्थिति उनके लिए लज्जाजनक है !