सनातन संस्था के संत पू. भगवंत कुमार मेनरायजी (आयु ८५ वर्ष) ने किया देहत्याग !

मूल फरीदाबाद (हरियाणा) निवासी एवं वर्तमान में रामनाथी स्थित सनातन संस्था के आश्रम में रह रहे सनातन के ४६ वें संत पू. भगवंत कुमार मेनरायजी ने ४ जून २०२४ को सायंकाल ७.१५ बजे देहत्याग किया ।

प्राचीन भारतीय मंदिरों की अलौकिक धरोहर !

सौर किरणें मूर्ति पर पडें; इसके लिए मंदिर सदैव पूर्व-पश्चिम दिशा में होते हैं; क्योंकि सूर्यप्रकाश में अधिक मात्रा में पवित्रक होते हैं ।

दक्षिण ध्रुव तक बिना किसी बाधा के मार्ग दिखानेवाला सोमनाथ मंदिर !

चुंबकीय प्रभाव के कारण यहां का शिवलिंग हवा में डोलता था । वास्तुकला का यह एक अद्भुत उदाहरण तथा वहां सोना-चांदी का प्रचुर भंडार था ।

कालगणना का निर्माणस्थल, समय का केंद्रबिंदु एवं सृष्टि का प्रथम स्थल उज्जैन का महाकाल मंदिर !

एक ‘त्रुटि’ अर्थात सेकेंड का ३३ सहस्र ७५० वां भाग, यहां से लेकर १ दिन तक की कालगणना, सप्ताह के सात वार, युगों से समय का सबसे बडा भाग, अर्थात ४३२ करोड वर्ष अर्थात एक कल्प तक आदि सबकुछ भास्कराचार्यजी ने विश्व को इस स्थान से प्रदान किया !

महर्षियों द्वारा वर्णित सर्वाधिक सूक्ष्म से कार्य कर धर्मसंस्थापना करनेवाले श्रीविष्णु के कलियुग के अनोखा ‘श्रीजयंतावतार’ !

ऋषियों ने जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से गुरुदेवजी के सूक्ष्म कार्य का परिचय दिया है । तब भी इतना ही कहा जा सकता है कि ‘ज्ञात-अज्ञात स्रोतों से अब तक हुई गुरुदेवजी की पहचान अपूर्ण ही है ।

सनातन के ३ गुरुओं द्वारा ब्रह्मोत्सव में धारण किए वस्त्राभूषणों में विलक्षण चैतन्य उत्पन्न होना !

ब्रह्मोत्सव से पूर्व वस्त्राभूषणों में १.५ से ३.३ सहस्र मीटर तक सकारात्मक ऊर्जा थी । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के द्वारा ब्रह्मोत्सव में इन वस्त्राभूषणों को धारण किए जाने के उपरांत उनमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा ४२ सहस्र से लेकर १ लख मीटर से भी अधिक हुई ।

शून्य से आरंभ कर विश्वव्यापक कार्य करनेवाले श्रीमन्नारायण स्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

प.पू. डॉ. आठवलेजी के पास ऐसी कोई आर्थिक पूंजी नहीं थी । ऐसी आर्थिक स्थिति में प.पू. डॉ. आठवलेजी ने पूरे विश्व में अध्यात्मप्रसार करने का शिवधनुष उठाया था । इससे उनकी ईश्वर के प्रति पराकोटि की श्रद्धा दिखाई देती है ।

गुरुदेवजी, श्री गुरु का जन्मोत्सव मनाने के संदर्भ में भी ‘आप ही विजयी हुए, हम पराजित !’

वर्ष २०१५ से सनातन का मार्गदर्शन करनेवाले विभिन्न महर्षियों की आज्ञा का पालन करने की दृष्टि से साधक गुरुदेवजी का जन्मदिवस मना रहे हैं ।

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ब्रह्मोत्सव’, अर्थात मन को परमानंद की अनुभूति प्रदान करनेवाला क्षण ! – पू. डॉ. शिबनारायण सेनजी, संपादक, साप्ताहिक ‘ट्रुथ’

‘इस समारोह में गुरुदेवजी का उनके सहस्रों साधक भक्तों के साथ दर्शन करना’, यह मेरे लिए आनंददायी एवं उत्साहवर्धक अनुभव था । ‘इन साधक भक्तों के पांव की धुल भी अत्यंत पवित्र है’, ऐसा मुझे लग रहा है ।

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की जन्म कुंडली में ग्रह यह दर्शाते हैं कि अपने पूर्व जन्म में वे एक श्रेष्ठ संत थे !

अनेक विषयों की शिक्षा लिए बिना भी किसी व्यक्ति को उस विषय का ज्ञान होना बिल्कुल दुर्लभ है ! ऐसे व्यक्ति को यदि भविष्य की घटनाओं की सूक्ष्मदृष्टि प्राप्त हो, तो कहा जाएगा कि ‘वह व्यक्ति एकमेवाद्वितीय ही है’ । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के संदर्भ में यह बात सटीक मेल खाती है ।