‘सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने अपनी आयु के ७३ वें वर्ष तक कभी भी अपना जन्मदिवस नहीं मनाया । वर्ष २०१५ से सनातन का मार्गदर्शन करनेवाले विभिन्न महर्षियों की आज्ञा का पालन करने की दृष्टि से साधक गुरुदेवजी का जन्मदिवस मना रहे हैं ।
१. वर्ष २०२३ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का ब्रह्मोत्सव समारोह देखते समय पुराने साधकों को प.पू. भक्तराज महाराजजी के मनाए गए अमृत महोत्सव समारोह का स्मरण होना
११.५.२०२३ को मनाया गया गुरुदेवजी का जन्मोत्सव समारोह अब तक के जन्मोत्सव समारोहों में से सबसे बडा जन्मोत्सव समारोह था । उसे ‘ब्रह्मोत्सव’ के रूप में मनाया गया । उसे देखते समय सनातन संस्था में सेवारत आरंभ के साधकों को प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) के मनाए गए अमृत महोत्सव का स्मरण हो आया ! वर्ष १९९५ में मनाए गए प.पू. बाबा के अमृत महोत्सव समारोह का आयोजन प्रत्यक्ष गुरुदेवजी ने ही किया था । जिन साधकों ने वह अमृत महोत्सव नहीं देखा; परंतु उसके विषय में पढा है, उन्हें भी इस ब्रह्मोत्सव से उस अमृत महोत्सव समारोह की भव्यता का अनुमान हुआ ।
२. किसी भी प्रकार के आधुनिक साधन उपलब्ध न होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के द्वारा प.पू. भक्तराज महाराजजी का मनाया गया भव्य दिव्य अमृत महोत्सव !
२ अ. प.पू. भक्तराज महाराजजी के अमृत महोत्सव के समय बडे स्तर पर की गई सभी व्यवस्थाओं का नियोजन ! : वर्ष १९९५ में प.पू. बाबा का अमृत महोत्सव मनाना था । वर्ष १९९४ की गुरुपूर्णिमा से ही गुरुदेवजी ने अमृत महोत्सव का संपूर्ण दायित्व लेकर बडी कुशलतापूर्वक उसका नियोजन किया था । उन्होंने ‘१० सहस्र भक्तों के लिए कार्यक्रम के मुख्य मंडप का नियोजन’, ‘बाहर से आनेवाले ३ सहस्र भक्तों के निवास का प्रबंध’, ‘संतों के निवास का प्रबंध’ ‘एक ही समय २ सहस्र भक्त महाप्रसाद ग्रहण कर सकें’, इतने बडे भोजनमंडप की व्यवस्था’, ‘प.पू. बाबा की लाडली खंजिरी के आकारवाले २२ फुट ऊंचा स्वागत द्वार खडा करना’, ‘प.पू. बाबा तथा उनके श्री गुरु अनंतानंद साईशजी की चरण पादुकाओं की शोभायात्रा, साथ ही उनपर हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा करना,’, ‘१२ श्रव्यचक्रिकाओं, १६ दृश्य-श्रव्य चक्रिकाओं तथा ग्रंथों का लोकार्पण करना’, ‘संतों का सम्मान करना’, ‘प.पू. बाबा के द्वारा श्रीकृष्ण के वस्त्राभूषण पहनकर भक्तों को दर्शन देना’, ‘लघुनाटक का प्रस्तुतीकरण करना’ इत्यादि विविध उपक्रमों का आयोजन किया था ।
२ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा उठाया गया अमृत महोत्सव का शिवधनुष ! : ऊपर उल्लेखित उपक्रम नियोजन के कुछ मुख्य कृत्य थे । इसके अतिरिक्त गुरुदेवजी ने इस परिप्रेक्ष्य में अंत तक आवश्यक अन्य अनेक बातों का सूक्ष्म नियोजन भी किया था । ‘आज की भांति संगणक, चल-दूरभाष (मोबाइल) इत्यादि जैसे आधुनिक साधन उपलब्ध न होते हुए भी यह सब नियोजन करना’ शिवधनुष उठाने जैसा ही था । इसीलिए उसी समय प.पू. बाबा ने कहा था, ‘‘ऐसा समारोह न कभी हुआ है और न कभी होगा !’’ इससे यह ध्यान में आता है कि गुरुदेवजी ने इस समारोह के आयोजन के माध्यम से एक आदर्श स्थापित कर श्री गुरु का मन जीत लिया !
३. ब्रह्मोत्सव मनाते समय अनेक आधुनिक नए साधन तथा साधकों के उपलब्ध होने के कारण तुलनात्मक दृष्टि से उसे मनाना सरल होना
वर्ष २०१५ से वर्ष २०२१ तक देवताओं के रूप में आश्रम के अंतर्गत गुरुदेवजी के दर्शन समारोह संपन्न हुए । वर्ष २०२२ में कुछ बडे स्तर पर रथोत्सव मनाया गया । वर्ष २०२३ में बहुत बडे स्तर पर ‘ब्रह्मोत्सव’ मनाया गया । ब्रह्मोत्सव मनाते समय प.पू. बाबा के अमृत महोत्सव की तुलना में साधक संख्या तथा नए आधुनिक साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे, उदा. ‘फ्लेक्स प्रिंटिंग’ जैसी सुगम सुविधाएं, स्वागत द्वारों पर अंकित छायाचित्रों तथा लेखन का संगणकीय संकलन, समन्वय हेतु प्रत्येक साधक के पास उपलब्ध चल-दूरभाष इत्यादि । उसके कारण नियोजन करना बहुत सुलभ रहा ।
४. भगवान की भांति ही सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को साधकों द्वारा भावपूर्ण समर्पित छोटी सेवाओं के प्रति भी बहुत प्रेम होना
गुरुदेवजी के द्वारा अमृत महोत्सव के किए गए नियोजन को देखते हुए उसकी तुलना में ‘पुष्पवर्षा, रथोत्सव तथा ब्रह्मोत्सव’ जैसे कुछ समारोहों को स्वतंत्ररूप से मनाना’ बहुत छोटी सेवा है; परंतु हम साधकों की अल्प क्षमता के अनुसार की गई उस सेवा को तो गुरुचरणों पर समर्पित कृतज्ञतापुष्प ही कहना होगा ! भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं,
पत्रं पुष्पं फलं तोयं ये मे भत्तया प्रयच्छति ।
तदहं भत्तयुपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ।।
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ९, श्लोक २६)
अर्थ : जो कोई भक्त मुझे प्रेमपूर्वक पत्ता, फूल, फल, जल इत्यादि अर्पित करता है, उस शुद्ध बुद्धिवाले तथा निष्काम भक्त के द्वारा प्रेमपूर्वक समर्पित वह पत्ता, फूल इत्यादि को मैं सगुण रूप में प्रकट होकर बहुत प्रेमपूर्वक स्वीकार करता हूं ।
उसी प्रकार गुरुदेवजी को भी साधकों की छोटी-छोटी कृतियां प्रिय हैं । इसलिए ऐसे समारोहों के संपन्न होने पर वे आयोजक साधकों तथा उसमें सेवारत साधकों की बहुत प्रशंसा करते हैं ।
सभी साधकों की ओर से कृतज्ञतापूर्वक इतना ही कहना पडता है, ‘गुरुदेवजी, आपका जन्मोत्सव मनाने के संदर्भ में भी सदा की भांति आप ही विजयी हुए तथा हम पराजित !’
– श्री. सागर निंबाळकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
(१९.५.२०२४)