ज्योतिर्लिंगों में से एक है मध्य प्रदेश स्थित उज्जैन का महाकाल मंदिर । प्राचीन काल में इस मंदिर के स्थान से पूरे विश्व का काल निर्धारित होता था । समय गिनने का वह विश्व का केंद्रबिंदु है । अर्थात इस स्थान से समय गिनना आरंभ होता है । (अर्थात जब हम कहते हैं कि किसी देश का समय भारत के समय से इतना पीछे या आगे है, तब कौन किसके पीछे है इसका आरंभ कहां से करें ? इसके लिए कहीं तो ० समय पकडना पडेगा । वह भारत के मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकडना पडता है ।) यह इस युग के विज्ञान से सिद्ध हो गया है; परंतु प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने यह पहले ही खोज रखा है । १ मार्च २०२४ को यहां वैदिक घडी की स्थापना की गई । वैदिक घडी का पुनर्निमाण यहां मोदी शासन ने किया है । सृष्टि का आरंभ होने पर सर्वप्रथम (उज्जैन) भूभाग की स्थापना हुई । यह स्थान भूमध्य रेखा पर स्थिर है । महाकाल केवल धार्मिक चिन्ह नहीं, अपितु वैज्ञानिक कालगणना का महत्त्वपूर्ण केंद्र है । महाकाल मंदिर के स्थान से नवग्रहों की गति, चाल, पृथ्वी पर पडनेवाला प्रभाव, तथा उस विषय में अन्य अध्ययन किया जा सकता है । ‘काल’ को इस प्रकार ईश्वरतुल्य भाव प्राप्त हुआ है, वह स्थान है महाकालेश्वर ! इस स्थान को पृथ्वी का मणिपुरचक्र अथवा नाभि कहा जाता है । अनेक प्राचीन ऋषियों एवं राजाओं ने यहां साधना की ।
यहां वर्ष १७८९ में तत्कालीन राजा ने ऐसी दूरबीन बिठाई, जिससे खगोलीय वस्तुस्थिति का विषुववृत्त के किसी भी कोण से माप लिया जा सकता है । यहां के वेधशाला के संचालक, गणितज्ञ, ज्योतिष विशेषज्ञ, कालगणना विश्व को समझानेवाले भास्कराचार्य थे; जिन्होंने अनेक गणितीय सिद्धांत विश्व को प्रदान किए ! एक कुंभ मेला इस पवित्र नगरी में होता है । महाकाल संपूर्ण विश्व को काल की दृष्टि, काल का महत्त्व, शुभ मुहूर्त, अशुभ चेतावनी आदि प्रदान करनेवाले आराध्य देवता हैं !
एक ‘त्रुटि’ अर्थात सेकेंड का ३३ सहस्र ७५० वां भाग, यहां से लेकर १ दिन तक की कालगणना, सप्ताह के सात वार, युगों से समय का सबसे बडा भाग, अर्थात ४३२ करोड वर्ष अर्थात एक कल्प तक आदि सबकुछ भास्कराचार्यजी ने विश्व को इस स्थान से प्रदान किया !
(संदर्भ – प्रवीण गुगनानी, विश्व संवाद केंद्र, झारखंड, आज तक एवं अन्य जालस्थल)