‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की जन्म कुंडली में ग्रह यह दर्शाते हैं कि अपने पूर्व जन्म में वे एक श्रेष्ठ संत थे !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

१. सभी क्षेत्रों का ज्ञान रखनेवाले एकमेवाद्वितीय सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

‘कोई व्यक्ति इस जीवन में किसी एक विषय का विशेष अध्ययन किए बिना ही उसकी सूक्ष्मताएं ज्ञात कर लेता है । इस प्रकार अनेक विषयों की शिक्षा लिए बिना भी किसी व्यक्ति को उस विषय का ज्ञान होना बिल्कुल दुर्लभ है ! ऐसे व्यक्ति को यदि भविष्य की घटनाओं की सूक्ष्मदृष्टि प्राप्त हो, तो कहा जाएगा कि ‘वह व्यक्ति एकमेवाद्वितीय ही है’ । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के संदर्भ में यह बात सटीक मेल खाती है । व्यावहारिक दृष्टि से उन्होंने मनोविकार एवं सम्मोहन चिकित्सा से संबंधित शिक्षा ग्रहण की है तथा उसमें उन्होंने विश्व स्तर पर कीर्ति स्थापित करनेवाला शोध भी किया है । भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी उन्हें पत्रकारिता, ग्रंथ, वैज्ञानिक शोध, संगीत, कला, निर्माणकार्य, सूक्ष्म जगत आदि क्षेत्रों सहित संगठन कुशलता तथा व्यवस्थापन आदि व्यावहारिक क्षेत्रों का ज्ञान भी प्राप्त है । इससे उनमें विद्यमान अवतारत्व सिद्ध होता है, यही सत्य है !

२. ज्योतिषीय दृष्टि से भी सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कुंडली में स्थित ग्रहयोग उनमें विद्यमान अलौकिक गुणविशेषताओं को दर्शाते हैें

इसके साथ ही ज्योतिषीय दृष्टि से भी सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कुंडली में स्थित ग्रहयोग उनमें विद्यमान अलौकिक गुणविशेषताएं दर्शाते हैं । साथ ही उनकी कुंडली में पूर्व जन्म में एक महान संत होने का संयोग भी स्पष्ट दिखाई देता है । ज्योतिषशास्त्र ऐसा कहता है कि यदि ‘कुंडली में चंद्रमा, गुरु, शनि एवं केतु ग्रह एक-दूसरे के साथ आध्यात्मिक स्थिति में हों, तो व्यक्ति अपने पूर्व जन्म में एक महान साधु अथवा महान संत होने की संभावना रखता है ।’

श्री. विक्रम डोंगरे

३. कुंडली में समाहित ग्रहों के आध्यात्मिकस्थानों के कारण ध्यान में आया कि सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पूर्व जन्म में श्रेष्ठ संत थे !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कुंडली के १२ वें (मोक्ष)स्थान में बृहस्पति एवं शनि का योग है । आठवें (तप) स्थान में चंद्रमा है तथा उनपर बृहस्पति की दृष्टि (प्रभाव) है, साथ ही ९ वें (धर्म)स्थान में केतु है तथा उसपर शनि ग्रह की दृष्टि (प्रभाव) है । कुल मिलाकर चंद्रमा, बृहस्पति, शनि एवं केतु, इन ग्रहों के आध्यात्मिक स्थानों में एक-दूसरे से योग (संबंध) हैं । इससे समझ में आता है कि ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पूर्व जन्म में श्रेष्ठ साधु थे ।’

४. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कुंडली में ‘परिवर्तन योग’ होना तथा उनके द्वारा समाज में आध्यात्मिक स्तर का परिवर्तन लाना

कुंडली में बृहस्पति एवं शनि के योग को ‘परिवर्तन योग’ कहा जाता है । महापुरुष एवं युगपुरुष इस योग पर जन्म लेते हैं । जिस व्यक्ति में यह योग होता है, उसमें सामाजिक परिवर्तन लाने की क्षमता होती है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कुंडली के १२ वें स्थान में बृहस्पति एवं शनि का योग है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी समाज में आध्यात्मिक स्तर पर परिवर्तन ला रहे हैं । वे समाज को मोक्ष की दिशा में ले जा रहे हैं । उन्होंने ‘हिन्दू राष्ट्र’ (सात्त्विक लोगों का धर्माधिष्ठित राष्ट्र) की स्थापना का संकल्प लिया है । सप्तर्षि ने जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से कहा है, ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी धर्मसंस्थापना का कार्य करने हेतु ही पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ।’

– श्री. विक्रम डोंगरे, फोंडा, गोवा. (२३.४.२०२३)