सनातन की ग्रंथमाला : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कार्य एवं विचार

‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग के जनक, हिन्दू राष्ट्र के विषय में आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाले, सूक्ष्म जगत के विषय में शोधकर्ता आदि विशेषताओं से विभूषित परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की अलौकिक जीवनगाथा का परिचय करवा लें !

ब्रह्मोत्सव में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की साधिकाओं द्वारा नृत्य के माध्यम से साकारित मनोहारी विष्णुलीला !

श्रीविष्णुरूप सहित इस वर्ष की नृत्य-आराधना की विशेषता थी बालकृष्ण एवं यशोदा मैया की सुंदर लीलाएं ! साधिकाओं ने इतनी तन्मयता से वो लीलाएं साकार कीं कि कार्यस्थल पर मानो गोकुल अवतरित हुआ । 

छोटे-बडे सभी अनुभव करते नम्रता व प्रीति । कर जुड जाते लेकर दिव्यता की प्रतीति ।।

नेत्र तृप्त हो जाते, मधुर वचन संतुष्टि प्रदान करते ।
सान्निध्य के क्षण सभी के मन-मंदिर में बस जाते ।।

अध्यात्मप्रसार के कार्य के द्वारा कर्म, ज्ञान एवं भक्ति का त्रिवेणी संगम बनानेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

‘राष्ट्र, समाज, संस्कृति एवं धर्म के लिए निःस्वार्थ एवं निरपेक्ष भावना से कर्म कीजिए तथा उसके लिए ज्ञान संपादन कर ही ऐसा कर्म कीजिए’, यह सीख देकर प्रत्येक व्यक्ति के अंतःकरण में राष्ट्रभक्ति का तथा साधना का कभी न बुझनेवाला दीप प्रज्वलित रहे; इसके लिए डॉ. जयंत आठवलेजी ने अपना संपूर्ण जीवन उत्सर्ग किया है ।

प.पू. आठवले गुरुजी द्वारा बनाए गए सिद्धांत सच्चे साधक कलाकारों का मार्गदर्शन करते रहेंगे ! – पंडित निषाद बाकरे, शास्त्रीय गायक, ठाणे

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के इर्द-गिर्द प्रकाशमान वृत्त प्रतीत होने पर ‘उनमें आध्यात्मिक शक्ति वास कर रही है’, ऐसा ध्यान में आया

साधना के प्रसार हेतु कठोर परिश्रम करनेवाले तथा अद्वितीय शोधकार्य करनेवाले प.पू. डॉ. आठवलेजी !

‘गोवा स्थित सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी मानवीय रूप में दैवीय अवतार हैं । वे अपनी मातृभूमि पर अर्थात भारत पर असीम प्रेम करते हैं । सनातन संस्था का मुख्यालय भले ही गोवा में है; परंतु प.पू. डॉ. आठवलेजी का अध्यात्मप्रसार एवं धर्मरक्षा का कार्य संपूर्ण विश्व में फैल गया है ।

जिनकी आध्यात्मिक सीख के कारण सहस्रों लोगों का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण परिवर्तित होता है, वे परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ! – पू. डॉ. राजकुमार केतकर, प्रसिद्ध कथक नृत्याचार्य, ठाणे, महाराष्ट्र.

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में इस आध्यात्मिक सीख का प्रभाव मुझे दिखाई दिया । सहस्राें जिज्ञासु वहां आते हैं और वहां की सात्त्विकता के कारण उन सहस्रों लोगों का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण परिवर्तित होता है । परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी वहां की शक्ति हैं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का तेज देखकर संत तुकाराम महाराजजी द्वारा रचित ‘राजस सुकुमार…’, इस अभंग (भक्तिगीत) की प्रतीति होती है ! – सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के गौरवास्पद कार्य के विषय में तथा उनके सान्निध्य में पिछले ५ वर्ष में मिले आध्यात्मिक अनुभवों के विषय में पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी कुछ संतवचनों के माध्यम से बता रहे हैं…

‘ब्रह्मोत्सव’ के अवसर पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी जिस रथ में विराजमान थे, उस रथ को खींचने की सेवा करनेवाले साधकों द्वारा उनके चरणों में समर्पित अनुभूतिरूपी कृतज्ञतापुष्प !

‘जिस प्रकार किसी मंदिर के रथ को वहां के सेवक खींचते हैं, उसी प्रकार साधकों ने श्रीमन्नारायण का रथ खींचे’, सप्तर्षि की इस आज्ञा के अनुसार साधकों ने साक्षात भगवान का यह रथ खींचा ।

स्थूल से तथा आध्यात्मिक स्तर पर सहायता कर रथनिर्मिति की सेवा में बडा योगदान देनेवाले शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकरजी (आयु ८५ वर्ष) !

सप्तर्षि की आज्ञा से सनातन के साधकों ने शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी (आयु ८५ वर्ष) के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए लकडी का रथ बनाया ।