साधना के प्रसार हेतु कठोर परिश्रम करनेवाले तथा अद्वितीय शोधकार्य करनेवाले प.पू. डॉ. आठवलेजी !

प.पू. देवबाबा (दाएं से) से अपनेपन से संवाद करते सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी

१. प.पू. डॉ. आठवलेजी का कार्य संपूर्ण विश्व में फैल जाना

‘गोवा स्थित सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी मानवीय रूप में दैवीय अवतार हैं । वे अपनी मातृभूमि पर अर्थात भारत पर असीम प्रेम करते हैं । सनातन संस्था का मुख्यालय भले ही गोवा में है; परंतु प.पू. डॉ. आठवलेजी का अध्यात्मप्रसार एवं धर्मरक्षा का कार्य संपूर्ण विश्व में फैल गया है ।

२. ‘साधकों की साधना हो रही है न ?’, इसकी ओर प.पू. आठवलेजी का ध्यान होना

सनातन संस्था की प्रमुख साधना पद्धति है नामजप ! सनातन के साधक प्रतिदिन नामजप साधना करते हैं तथा समय-समय पर वे उत्तरदायी साधकों को उसका ब्योरा भी देते हैं । ‘साधकों का नामजप हो रहा है न ?’, इसकी ओर प.पू. डॉ. आठवलेजी स्वयं ध्यान देते हैं । ‘सनातन के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले प्रत्येक साधक का अगले-अगले चरण का नामजप हो रहा है न ?, साथ ही साधकों की आध्यात्मिक उन्नति होकर वे उच्च लोक की दिशा में अग्रसर हो’, इस दृष्टि से साधकों को तैयार किया जाता है ।

प.पू. देवबाबा

३. आध्यात्मिक क्षेत्र में स्थित प्रत्येक विषय का शोधकार्य सनातन की विशेषता होना

सनातन संस्था का एक और पहलू है उनके द्वारा आध्यात्मिक क्षेत्र से संबंधित प्रत्येक विषय का शोधकार्य ! संस्था ने स्वयं के आध्यात्मिक मार्गदर्शक तथा शोधकार्य करनेवाले तैयार किए हैं, जो प्राचीन सनातन धर्म की पुनर्स्थापना एवं अद्वितीय हिन्दू राष्ट्र स्थापित हो, इस दृष्टि से दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं ।

४. सनातन में साधकों को धर्माचरण का महत्त्व बताया जाना

सनातन संस्था साधकों को धर्माचरण का महत्त्व बताकर उसके लिए प्रेरित करती है । यहां साधकों को आपातकाल का सामना करने की दृष्टि से, साथ ही संकटकाल में रक्षा होने की दृष्टि से प्रशिक्षित किया जाता है । संस्था की ओर से ‘आपातकाल में जीवित रहने हेतु आवश्यक तैयारी’ के विषय में कुछ मार्गदर्शक ग्रंथ भी प्रकाशित किए हैं ।

५. प.पू. डॉ. आठवलेजी का शोधकार्य एवं कठोर परिश्रम अद्वितीय !

प.पू. डॉ. आठवलेजी इंदौर, मध्य प्रदेश के संत प.पू. भक्तराज महाराजजी के शिष्य हैं । संत भक्तराज महाराजजी के आध्यात्मिक मार्गदर्शन से प.पू. डॉक्टरजी ने विभिन्न आध्यात्मिक संस्थाओं की स्थापना की । प.पू. डॉ. आठवलेजी का शोधकार्य एवं कठोर परिश्रम अद्वितीय है ।

६. भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने हेतु प.पू. डॉ. आठवलेजी द्वारा अपार परिश्रम किया जाना

भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने की दृष्टि से प.पू. डॉ. आठवलेजी के द्वारा किए गए अपार परिश्रम के कारण ही सनातन संस्था का नाम देश-विदेश में विख्यात हुआ है । मैं स्वयं, हमारा ‘श्री शक्तिदर्शन योगाश्रम’ एवं शिष्य परिवार ईश्वर के चरणों में यही प्रार्थना करते हैं कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को आनंदमय एवं स्वास्थ्यपूर्ण जीवन प्राप्त हो, साथ ही उनके जीवन का जो ध्येय है, उसे प्राप्त करने हेतु उनके प्रयासों को सफलता मिले, साथ ही ‘भारत को विश्व के प्रथम स्थान का विकसित देश बनाने का उनका स्वप्न साकार हो ।’

– प.पू. देवबाबा, किन्नीगोळी, कर्नाटक. (अप्रैल २०२३)