सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का तेज देखकर संत तुकाराम महाराजजी द्वारा रचित ‘राजस सुकुमार…’, इस अभंग (भक्तिगीत) की प्रतीति होती है ! – सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के गौरवास्पद कार्य के विषय में तथा उनके सान्निध्य में पिछले ५ वर्ष में मिले आध्यात्मिक अनुभवों के विषय में मैं कुछ संतवचनों के माध्यम से बताने का प्रयास कर रहा हूं; क्योंकि सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का व्यक्तित्व ही इतना महान है कि उस विषय में सामान्य शब्दों में कुछ कथन करना असंभव है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

१. भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वचनों की पूर्ति करने का कार्य !

प.पू. डॉ. आठवलेजी ने फोंडा (गोवा) में धर्मजागृति, हिन्दू-संगठन एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सनातन संस्था की स्थापना की । भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए वचनों की पूर्ति करने हेतु उन्होंने कमर कसी है ।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। – श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४, श्लोक ७

अर्थ : हे भारत (भरतवंशी अर्जुन), जब जब धर्म का पतन तथा अधर्म की वृद्धि होती रहती है, तब तब मैं अपने रूप की रचना करता हूं अर्थात ही आकार धारण कर लोगों के सामने प्रकट होता हूं ।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धमसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। – श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४, श्लोक ८

अर्थ : सज्जनों के उद्धार हेतु, पापकर्म करनेवालों के निस्तारण हेतु तथा धर्म की उत्तम प्रकार से स्थापना करने हेतु मैं युगों-युगों में प्रकट होता हूं ।

पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी

२. श्रीविष्णु के सात आत्मतत्त्व से एकरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी

जालस्थल एवं संगणकीय प्रणाली के माध्यम से देश-विदेश के जिज्ञासु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं । इस हेतु उनके विश्वविद्यालय के संतों एवं साधकों (भक्त) ने इस अलौकिक कार्य में स्वयं को समर्पित कर दिया है ।

सद्गुरु डॉ. आठवलेजी सच्चिदानंद परब्रह्म विष्णुस्वरूप वासुदेव के साथ आत्मतत्त्व से इतने एकरूप हुए हैं कि उन्हें देखने पर मुझे संत तुकाराम महाराज के निम्न अभंग (भक्तिगीत) की प्रतीति होती है ।

राजस सुकुमार मदनाचा पुतळा । रविशशिकळा लोपलिया ।।

अर्थ : श्री विठ्ठल का वर्णन करते हुए संत तुकाराम महाराजजी कहते हैं, ‘‘विठ्ठल का रूप रोबदार एवं सुकुमार है । वे तो प्रत्यक्ष मदन की मूर्ति ही हैं । उनका तेज इतना है कि साक्षात सूर्य-चंद्रमा का तेज भी उनके सामने विलुप्त हो जाएगा ।’’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी एवं पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी के बीच संवाद का निर्मल आनंद का एक क्षण

३. ‘आध्यात्मिक प्रगति की अलौकिकता विद्युतशक्ति की प्राप्ति है’, इसे प्रमाणित करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

डॉ. आठवलेजी हमसे मिलने आनेवाले हैं, यह ज्ञात होने पर हम आतुरता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे । ठीक ९ बजे सद्गुरुजी का आगमन हुआ । उनके साथ संवाद करते हुए ऐसा प्रतीत हुआ कि डॉ. आठवलेजी के व्यक्तित्व में ‘रविशशिकलाएं’ (सूर्य-चंद्रमा का तेज) छिपी हुई हैं तथा उस कारण ही वे ‘सच्चिदानंद परब्रह्म’ हैं । ऐसा बताया गया है कि ‘आध्यात्मिक प्रगति की अलौकिकता विद्युतशक्ति की प्राप्ति है ।’ यह परमेश्वरप्राप्ति का दर्शक है’, ऐसा मैं बताना चाहता हूं ।

४. नारायणस्वरूप गुरुदेवजी के सान्निध्य में अलौकिक साधना करनेवाले सनातन के साधक !

संत चरणरज लागता सहज । वासनेचें बिज जळूनी जाय ।।
मग रामनाम उपजे आवडी । सुख घडोघडी वाढू लागे ।।

कंठी प्रेम दाटे नयनी नीर लोटे । हृदयी प्रगटे रामरूप ।।
तुका म्हणे साधन सुलभ गोमटे । परी उपतिष्ठे पूर्वपुण्ये ।।

संतों के सान्निध्य से वासना का बीज जल जाता है । रामनाम से आनंद वृद्धिंगत होता जाता है । यह सरल साधन है; परंतु यह पूर्वजन्मों के पुण्य से ही साध्य हो पाता है । रामनाथी, फोंडा (गोवा) के सनातन के आश्रम का अवलोकन करने के उपरांत प्रत्येक भक्त को यह अनुभव दिया गया है, इसकी प्रतीति होती ही है ।

असों द्यावा धीर सदा समाधान । आहे नारायण जवळी च ।।
तुका म्हणे माझा सखा पांडुरंग । व्यापियेलें जग तेणें एकें ।। – तुकाराम गाथा, अभंग ३९०४, ओवी (पंक्ति) २ एवं ३

श्रीहरि तथा श्री नारायण के भक्तों को भवदुख, भय एवं चिंता के वहन का कोई कारण ही नहीं । विश्वरूप सखा श्री पांडुरंग सर्वत्र ओतप्रोत हैं । इसलिए विश्व में जो-जो घटना होती है, वह सद्गुरु की इच्छा से ही होती है । संतुष्ट रहना, यही अलौकिक साधना रामनाथी आश्रम के भक्त, श्रद्धालुगण एवं विश्व के साधक कर रहे हैं, इसमें बिल्कुल भी कोई संदेह नहीं है ।

– पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी, सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक, पुणे , महाराष्ट्र.

(२२.४.२०२३)

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का परमेश्वर के साथ कार्यरूपी आंतरिक सान्निध्य हैं सनातन के आश्रम !

सद्गुरु डॉ. आठवलेजी ने परमेश्वर के कार्यरूपी आंतरिक सान्निध्य से तथा सद्गुरु कृपा से अपने संतपद से आगे जाकर अनंत से एकत्व साध्य किया है । उदाहरण के लिए वर्ष २०२२ में रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में हम कुछ साधकों एवं भक्तों ने सद्गुरु डॉ. आठवलेजी का दिव्य तेज अनुभव किया । ‘अनामप्रेम’ संस्था के कार्यक्रम के उपलक्ष्य में हम गोवा में थे । उस समय हमारा १ दिन के लिए रामनाथी (गोवा) के सनातन के आश्रम में जाने का नियोजन हुआ था । हमने संपूर्ण आश्रम का अवलोकन किया ।

अ. आश्रम की स्वच्छता तथा सभी साधकों का विनम्र सेवाभाव, समय का भान रखकर सेवाएं करना एवं अनुशासन इत्यादि का हम प्रथम बार ही अनुभव कर रहे थे ।

आ. आश्रम का रसोईघर इतना स्वच्छ था कि यहां एक ही समय में सैकडों साधकों का भोजन उनकी प्रकृति के अनुसार (पथ्य के अनुसार) बनाया जाता है, इस पर आंखें विश्वास ही नहीं कर रही थीं ।

– पू. पंडित डॉ. केशव गिंडेजी, पुणे, महाराष्ट्र.