आत्मज्योति, ज्ञानज्योति, ईशज्योति, धर्मज्योति के विषय में विवेचन

कर्म, भक्ति और ज्ञान के संगम गुरुकृपायोग की निर्मिति, चैतन्य का स्रोत बने गुरुकुल समान आश्रमों की निर्मिति, आध्यात्मिक प्रगति हेतु स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया, अब तक ११२ साधक संत बने तथा १ सहस्र ३२८ साधकों का संतपद की ओर मार्गक्रमण

धनतेरस के निमित्त धर्मप्रसार के कार्य हेतु ‘सत्पात्र दान’ कर श्री लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें !

‘२.११.२०२१ को ‘धनतेरस’ है । ‘धन’ अर्थात शुद्ध लक्ष्मी ! इस दिन मनुष्य के पोषण हेतु सहायता करनेवाले धन (संपत्ति) की पूजा की जाती है । सत्कार्य हेतु धन अर्पण करना, यही श्री लक्ष्मी की खरी पूजा है ।’

आध्यात्मिक लाभ एवं चैतन्य देनेवाली मंगलमय दीपावली !

गोवत्स द्वादशी के दिन श्रीविष्णु की आपतत्त्वात्मक तरंगें कार्यरत होकर ब्रह्मांड में आती हैं । विष्णुलोक की ‘वासवदत्ता’ नामक कामधेनु इस दिन ब्रह्मांड तक इन तरंगों का वहन करने हेतु अविरत कार्य करती है ।

अभ्यंगस्नान करने से होनेवाले सूक्ष्म परिणाम और लाभ दर्शानेवाला सूक्ष्म चित्र !

दीपावली के तीन दिनों पर अभ्यंगस्नान करते हैं । अभ्यंगस्नान के कारण रज-तम गुण एक लक्षांश अल्प होकर उसी मात्रा में सत्त्वगुण में वृद्धि होती है और उनका प्रभाव सदैव के स्नान की तुलना में अधिक होता है ।

छठ पूजा (१० नवंबर)

छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है । इसके अतिरिक्त चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे चैती छठ कहते हैं ।

शिक्षाप्रणाली निश्चित करते समय मनुष्य के जीवन से संबंधित ध्येय का व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक !

आधुनिक शिक्षा में केवल इसी बात का ध्यान रखा गया है कि मनुष्य की नैसर्गिक आवश्यकताएं क्या हैं, इन्हीं की पूर्ति का आधार बनाकर तदनुरूप शिक्षा का कार्यान्वयन हुआ है । शिक्षा में व्यापक दृष्टिकोण का होना अत्यंत आवश्यक है ।

चार पुरुषार्थ एवं पुरुषार्थ का महत्त्व

धर्म और मोक्षमें स्वयंका पराक्रम, प्रयास, कर्तृत्व, अर्थात् पुरुषार्थ मुख्य है और प्रारब्ध गौण है । धर्माचरण तथा मोक्षप्राप्ति दैवसे, प्रारब्धसे नहीं होती; यह पूरे निर्धारसे स्वयं ही करना पडता है ।

नामजप का अधिकाधिक लाभ लेने के लिए भावपूर्ण ध्वनिमुद्रण सभी को उपलब्ध करवानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘अनेक संप्रदायों के गुरु अथवा संत समाज को बताते हैं, ‘नामस्मरण करें’; परंतु ‘किस प्रकार नामस्मरण करने पर अधिक लाभ होगा’, यह कोई भी नहीं बताता । इसके विपरीत, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों को कालानुसार भावपूर्ण नामस्मरण सिखाते हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

प.पू. दादा (आध्यात्मिक स्तर ८३ प्रतिशत) और पू. ताई (मां) (आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत) बचपन से ही हम पांचों भाईयों पर व्यावहारिक शिक्षा के साथ ही सात्त्विकता और साधना के संस्कार किए, इसलिए हम साधनारत हुए ।

समाज के प्रत्येक घटक के लिए आवश्यक सनातन की व्यापक ग्रंथसंपदा का लाभ उठाएं ! – पू. नीलेश सिंगबाळ, धर्मप्रचारक, हिन्दू जनजागृति समिति

सनातन संस्था ने अध्यात्म, धर्माचरण, दैनिक आचरण से संबंधित गतिविधियां, भारतीय संस्कृति आदि अनेक विषयों पर अमूल्य एवं व्यापक ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । सनातन के ग्रंथों का दिव्य ज्ञान समाज में प्रसारित करने के लिए संपूर्ण भारत में संस्था द्वारा ‘ज्ञानशक्ति प्रसार अभियान’ चलाया जा रहा है ।