परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

सभी पाठकों को ‘अपने बच्चों पर किस प्रकार के संस्कार करें ?’ यह समझाने के लिए उपयुक्त लेखमाला !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

     ‘सनातन प्रभात’ में संतों की साधना यात्रा, उनकी सीख इत्यादि के संदर्भ में लेख नियमित प्रकाशित किए जाते हैं । १६ से ३१ अक्टूबर २०२१ से आरंभ इस लेखमाला द्वारा ‘सनातन प्रभात’ के संस्थापक-संपादक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी के संदर्भ में लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं । इस लेखमाला द्वारा ज्ञात होगा कि ‘प.पू. दादा ने उनके परिवारजनों पर कौन से और किस प्रकार संस्कार किए ?’ इससे ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की पारिवारिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि कैसी थी ?’, यह भी पाठकों के ध्यान में आएगा ।’

     लेख के भाग १ में हमने प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी का परिचय और प.पू. दादा की गुणविशेषताएं देखी । आज उसके आगे का भाग देखेंगे । (भाग २)

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता पू. बाळाजी आठवलेजी और मां पू. (श्रीमती) नलिनी आठवलेजी

२. प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी का जीवनभर साथ देनेवाली पत्नी पू. नलिनी (पू. ताई) आठवलेजी की विशेषताएं

२ अ. ‘पू. ताई का जन्म और देहत्याग : पू. नलिनी बाळाजी आठवलेजी, मेरी माताश्री । हम उन्हें ‘ताई’ कहते थे । उनका जन्म ४ जुलाई १९१६ को हुआ । ३ दिसंबर २००३ को ८७ वर्ष की आयु में उन्होंने हमारे शीव, मुंबई स्थित घर में देहत्याग किया । देहत्याग के समय उनका आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत था ।

२ आ. साधना

२ आ १. पू. ताई ने गृहस्थी में रहकर साधना की । घर के सभी कार्याें में से भी पू. ताई कीर्तन-प्रवचन सुनने के लिए समय निकालती थीं । ६० वर्ष की आयु के उपरांत उनका अधिकाधिक समय नामजप होता रहता था । ७० वर्ष की आयु के उपरांत उनका नामजप अखंड होता रहता था । मृत्यु के क्षण भी उनका नामजप होता था । वर्ष २०१४ में उनका आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत था ।

२ आ २. ‘तीर्थस्वरूप दादा के देहत्याग उपरांत पू. ताई ने नामजप में वृद्धि की । धीरे-धीरे उनके वैराग्य में वृद्धि हुई तथा देहबुद्धि न्यून हुई ।’ – (सद्गुरु) डॉ. वसंत आठवले (ज्येष्ठ पुत्र)

२ इ. ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से समर्पित बच्चे तैयार होंगे’, यह पू. ताई को सुनिश्चित होना : अक्टूबर २००० में पू. ताई ने कहा, ‘‘वीर सावरकर कहते थे, ‘देश के लिए प्रत्येक परिवार से एक लडका अर्पण करें ।’ ‘मेरे पांचों बच्चे कृषकाय होने से उन्हें देश के लिए कैसे अर्पण करूं ?’, ऐसा प्रश्न मेरे मन में निर्माण होता था । दैनिक ‘सनातन प्रभात’ पढकर मेरा समाधान हुआ । ‘अब घर-घर में समर्पित बच्चे तैयार होंगे’, इसकी सुनिश्चिति हुई ।’’ तब पू. ताई ने निम्न पंक्तियां लिखीं और ‘दो बच्चे देश के लिए कैसे अर्पण करें ?’, इस विषय में लिखा,

देव-देशधर्म जागवोत दोघे (टिप्पणी)। इच्छा ही मानसी असो त्यांच्या ।।

अर्थ : दोनों (टिप्पणी) देश एवं धर्म को जागृत करें । ऐसी इच्छा मन में रखें ।

टिप्पणी : ‘सनातन प्रभात’ के संस्थापक-संपादक (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवलेजी और एक भाई

२ ई. अनिष्ट शक्तियों के संदर्भ में पू. ताई की अनुभूति और उनके विचार

२ ई १. अनिष्ट शक्तियों को राष्ट्र और धर्म हेतु नामजप करने के लिए कहना : ‘एक दिन पू. ताई जब सो रही थी, तब अनेक अनिष्ट शक्तियां उनके कक्ष के बाहर के बरामदे (गैलरी) में आई थीं । तब पू. ताई ने उन्हें कहा, ‘आप राष्ट्र और धर्म के लिए कुछ करें । अपना उपयोग धर्म के लिए करें ।’ तब सभी अनिष्ट शक्तियां ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ नामजप करने लगीं ।’ – डॉ. विलास आठवले (सबसे छोटा पुत्र)

२ ई २. सनातन को कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियों का उपयोग भी अच्छे कार्य हेतु करें ! : ‘मैं पू. ताई से मिलने गई तब पू. ताई ने मुझसे कहा, ‘सनातन को जो भूत कष्ट देने के लिए आते हैं, उन्हें आप न भगाएं । उनका उपयोग कर लें । उन्हें सूक्ष्म से लडने के लिए भेजें । उनका भी अच्छे कार्य हेतु उपयोग करना आना चाहिए ।’ – श्रीमती बोरकर, मुंबई

     (सात्त्विक स्थानों पर साधना करने की इच्छुक शक्तियां आती हैं । उन्हें जप करने के लिए बताने पर वे जप भी करती हैं । कभी मायावी अनिष्ट शक्तियां भी जप करने का नाटक करती हैं । – संकलनकर्ता)

२ उ. ८७ वर्ष की आयु में भी समाज और अन्यों का विचार करनेवालीं पू. ताई !

     आयु के ८७ वर्ष में स्वयं रोगी होते हुए भी पू. ताई निम्न कृति करती थीं । वे देहत्याग होने तक समाज और अन्यों का विचार करती थीं एवं स्वयं के गुणों का शीव स्थित सनातन संस्था के सेवाकेंद्र और साधकों को लाभ हो, इस हेतु प्रयास करती थीं ।

१. ‘पू. ताई नियमित समाचारपत्रों का वाचन कर समाज की वर्तमान स्थिति समझ लेती थीं । उसी प्रकार समाज की दुर्व्यवस्था के विषय में साधकों से चर्चा करती थीं ।’ – डॉ. दुर्गेश सामंत, पूर्व समूह संपादक, ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक समूह.

२. ‘किसी भी वस्तु का उपयोग मितव्ययता से करने का उनका आग्रह रहता था । सेवाकेंद्र की गतिविधियां, साथ ही बिजली और पानी के अनावश्यक उपयोग पर वे सदैव ध्यान देती थीं ।’ – सद्गुरु सत्यवान कदम (सनातन के पांचवें संत)

३. सनातन के साधकों में वीरवृत्ति निर्माण करने के लिए वे निरंतर प्रयासरत रहती थीं ।

४. ‘विगत चार वर्षों से पू. ताई को हृदयविकार का अत्यधिक कष्ट होता था; परंतु उसकी अनदेखी कर स्वयं के संदर्भ में कुछ न बोलते हुए वे अन्यों की पूछताछ करती थीं । ‘प्रत्येक व्यक्ति अपना काम करे । मेरे लिए समय व्यर्थ न करें’, ऐसा वे सदैव कहती थीं । कभी भी स्वयं को कुछ अल्प प्राप्त हुआ; इसलिए उन्होंने कभी भी शिकायत नहीं की । उनमें अत्यधिक सहनशक्ति थी । अन्यों के विषय में बुरा बोलना अथवा उनके दुर्गुण देखना, ऐसा उन्होंने कभी नहीं किया । इसके विपरीत, वे प्रत्येक के विषय में अच्छा ही बोलती थीं । सभी से वे अत्यधिक प्रेमपूर्ण व्यवहार करती थीं ।’

– सद्गुरु डॉ. वसंत आठवलेजी

२ ऊ. मृत्यु के समय भी नामजप जारी रहना

मी : जप चल रहा है न ?
पू. ताई : हां’

– डॉ. विलास आठवले

     ३.१२.२००३ को प्रात: ४.१७ पर हृदयक्रिया बंद होने से ताई का देहावसान हुआ । मृत्यु के समय उनकी आयु ८७ वर्ष थी ।’

३. पांचों बेटों की साधना में प्रगति होने के लिए उन पर बचपन से ही संस्कार करनेवाले प.पू. दादा और पू. ताई !

पीछे खडे (बाएं से) परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छोटे बंधु डॉ. विलास और डॉ. सुहास. बैठे हुए (बाएं से) स्वयं परात्पर गुरु डॉ. जयंतजी, ज्येष्ठ बंधु सद्गुरु डॉ. वसंतजी और श्री. अनंत (वर्ष २००२)

     ‘प.पू. दादा (आध्यात्मिक स्तर ८३ प्रतिशत) और पू. ताई (मां) (आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत) बचपन से ही हम पांचों भाईयों पर व्यावहारिक शिक्षा के साथ ही सात्त्विकता और साधना के संस्कार किए, इसलिए हम साधनारत हुए ।

     उन्होंने पोते-पोतियों पर भी ऐसे ही संस्कार किए ।

     प.पू. भक्तराज महाराजजी ने अनंत (भाई) को छोडकर पूरे परिवार को गुरुमंत्र दिया । अनंत मुंबई में न होने से उन्हें गुरुमंत्र नहीं मिला ।

१. पहले क्रमांक का बेटा सद्गुरु अप्पा (सद्गुरु डॉ. वसंत) : वर्ष २०१२ में संतपद प्राप्त किया और वर्ष २०१७ में सद्गुरुपद प्राप्त किया । उन्होंने अभिभावकों के लिए उपयुक्त १०, आयुर्वेद संबंधी २१ और मेरे संदर्भ में १ ऐसे ३२ ग्रंथ लिखे ।

२. दूसरे क्रमांक का बेटा अनंत (भाऊ) : वर्ष २०१९ में संतपद प्राप्त किया । उन्होंने वर्ष २०१४ में ‘गीताज्ञानदर्शन’ ग्रंथ लिखा । वर्ष २०२१ में उन्होंने ‘अध्यात्मशास्त्र के विविध अंगों का बोध’ नामक मराठी ग्रंथ लिखा । साथ ही उनका चरित्र भी शीघ्र ही प्रकाशित किया जानेवाला है ।

३. तीसरे क्रमांक का बेटा जयंत : मैंने सनातन संस्था की स्थापना की और सितंबर २०२१ तक २६९ ग्रंथों का संकलन किया तथा संस्था ने सितंबर २०२१ तक ३४७ ग्रंथों की १७ भाषाओं में ८२ लाख ४८ सहस्र प्रतियां प्रकाशित की हैं ।

४. चौथे क्रमांक का बेटा स्व. सुहास : इनका आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत है । इन्होंने व्यष्टि साधना की । सुहास सज्जनता की सगुण मूर्ति था ।

५. पांचवें क्रमांक का बेटा विलास : इनकी भी आध्यात्मिक प्रगति हो रही है । वे हरिद्वार के प.पू. देवानंद स्वामीजी के कार्य में सहभागी हैं ।

     कलियुग में हमें ऐसा सात्त्विक परिवार प्राप्त हुआ, यह ईश्वर की हम सभी पर विशेष कृपा है । इसीलिए १२.६.१९७५ को मैंने मामा को इंग्लैंड से लिखे पत्र में लिखा था, ‘मुझे आप सभी रिश्तेदारों सहित (विशेषतः तीर्थस्वरूप दादा, ताई और अप्पा के साथ) और परिचित व्यक्तियों के साथ एक नहीं, अपितु असंख्य जन्म प्राप्त हुए, तो भी आनंद ही होगा । साथ ही प्रत्येक जन्म में हुई चूकें सुधारने का अवसर पुनर्जन्म में मिलता है । उसका लाभ उठाकर मुक्ति की दिशा में प्रयास कर सकते हैं ।’

     मुझमें जो गुण हैैं, वे मैंने प्रयासपूर्वक निर्माण नहीं किए हैं । अधिकांश गुण दादा और ताई द्वारा आनुवंशिक तथा उनके द्वारा मुझ पर किए संस्कारों के कारण मुझमें आए हैं । अन्य गुण अधिकतर चारों भाईयों से और अन्य आदर्श व्यक्तियों द्वारा मुझमें आए हैं ।’

[प.पू. बाळाजी (प.पू. दादा) आठवलेजी, उनकी पत्नी पू. नलिनी (पू. ताई) आठवलेजी और परिजनों की विस्तृत जानकारी सनातन के ‘प.पू. डॉक्टरजी के सर्वांगीण आदर्श माता-पिता और भाई’ विषय की ग्रंथमाला में है ।]                                                   (क्रमशः)

– डॉ. जयंत आठवले (१२.९.२०१४) (खंड २)