‘१ जून से १५ जून २०२१ के पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ में ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजपों के संदर्भ में सूचना प्रकाशित कर उनका प्रथम परिचय करवाया गया । इन नामजपों का अधिकाधिक लाभ होने के लिए उन्हें भावपूर्ण पद्धति से कैसे जपें ?, यह बताने के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत विभाग की समन्वयक और ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर की आवाज में उन्हें ध्वनिमुद्रित किया गया । यह ध्वनिमुद्रण करते हुए कु. तेजल पात्रीकर को सीखने के लिए मिले सूत्र इस लेख में प्रस्तुत हैं ।
१. २१ मई २०२१ – प्रारंभ में ‘निर्विचार’ नामजप करते हुए ‘विचार किस प्रकार न्यून होंगे’, ऐसा विचार कर बुद्धि से जप करने का प्रयास करना
‘आरंभ में मुझे ‘निर्विचार’ नामजप किस प्रकार कहें ?’, यह सूझ नहीं रहा था । मेरा विचार था कि ‘निर्विचार’ निर्गुण नामजप होने से वह भाव के स्तर से भी आगे होगा, उससे शांति के स्पंदन आने चाहिए ।’ तदनुसार मैं आरंभ में ‘निर्विचार’ नामजप करते हुए ‘मेरे विचार कैसे न्यून होंगे ? और तदुपरांत यह नामजप अच्छा होगा’, ऐसा प्रयास कर रही थी । उस समय मुझसे बुद्धि द्वारा प्रयास किए जा रहे थे ।
२. २२ मई २०२१ – ‘निर्विचार’ नामजप निर्गुण होने से परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा उसका एक लय में उच्चारण करने के लिए बताना
संगीत की दृष्टि से मैंने यह नामजप एक लय में करके देखा । वह सुनकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने संदेश भिजवाया, ‘‘यह नामजप निर्गुण होने से इसे संगीत की लय न लगाएं । नामजप की लय ऊपर-नीचे न करते हुए उसे एक लय में करें ।’’
३. २५ मई २०२१ – परात्पर गुरु डॉक्टरजी की शरण में जाकर नामजप करने पर नामजप से भाव अनुभव होना
मैं परात्पर गुरु डॉक्टरजी की शरण में जाकर नामजप करने लगी । एक दिन नामजप सुनने पर उन्होंने बताया, ‘‘अब नामजप में भाव अनुभव होने लगा है ।’’ तदुपरांत मेरे ध्यान में आया कि ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी को नामजप का भावपूर्ण उच्चारण ही अपेक्षित है ।’
४. २६ मई २०२१ – परात्पर गुरु डॉक्टरजी की सर्वज्ञता अनुभव होना
यह नामजप शीघ्र तैयार होना अपेक्षित था; परंतु ‘मेरे प्रयास अल्प हो रहे हैं । मुझसे नहीं हो रहा’, ऐसे विचार मेरे मन में आए तथा मैं रोने लगी । उस दिन एक साधक को मैंने ब्योरा दिया कि ‘मुझसे जप का ध्वनिमुद्रण करना नहीं हो पा रहा है ।’ यह बात उसने परात्पर गुरु डॉक्टरजी को बताई तब उन्होंने पूछा, ‘‘कु. तेजल निराश तो नहीं हुई न ?’’ और ‘‘जाने दो, संभव हो जाएगा’’, ऐसा कहकर मुझे प्रोत्साहन भी दिया । केवल मुझे ही ज्ञात था कि ‘इस प्रसंग के कारण मैं रोई’; परंतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने उस साधक को मुझे पूछने के लिए कहा, ‘वह रोई तो नहीं न ?’ इससे वे सतत मेरे साथ हैं और उनकी सर्वज्ञता की अनुभूति उन्होंने इस प्रसंग में मुझे दी ।
५. २७ मई २०२१
५ अ. परात्पर गुरुदेवजी सुधार बताकर हमें रुलाते नहीं, अपितु वे हमें संवारते हैं ! : मैं प्रतिदिन नामजप ध्वनिमुद्रित कर उन्हें सुनाती थी । उसमें वे परिवर्तन बताते थे । उनके द्वारा बताए गए परिवर्तन कर मैं पुन: जप ध्वनिमुद्रित कर उन्हें सुनाती थी । वे प्रतिदिन सुधार बताते थे । इसलिए उन्होंने एक साधक से कहा, ‘‘निरंतर सुधार बताकर मैं तेजल को रुलाता हूं न ? उसे पूछो ।’’ तब मेरी ओर से उस साधक ने ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी को बताया, ‘‘आप रुलाते नहीं, अपितु सुधार बताकर हमें संवारते हैं ।’’
५ आ. नामजप करते समय आवश्यक भाव : २७ मई २०२१ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने बताया, ‘‘नामजप करते हुए ‘शरणागत भाव से शब्दोच्चार कर जप भगवान के चरणों में अर्पण कर रहे हैं’, इस भाव से जप करने पर उसमें भाव आता है ।’’
५ इ. ध्वनिमुद्रण हेतु ‘निर्विचार’ जप का उच्चारण करते हुए ‘निर्विचार ध्यानावस्था’ अनुभव होना और कालानुसार जप परिणामकारक होने की अनुभूति होना : ध्वनिमुद्रण के लिए ‘निर्विचार’ जप करते हुए मेरी ऐसी स्थिति हुई कि कुछ समय उपरांत मुझे जप करना संभव ही नहीं हुआ और कुछ समय प्रयास करने पर भी नेत्र खोलना संभव नहीं हो रहा था । उस समय मैंने ‘निर्विचार ध्यानावस्था’ अनुभव की । इस अनुभूति से परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने मुझे सिखाया कि ‘कालानुसार यह जप कितना परिणामकारक है ?’
६. ३० मई २०२१ – परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने ‘निर्विचार’ जप के उच्चारण संबंधी मार्गदर्शन कर भाव के स्तर पर प्रयास करने के लिए कहना
आरंभ में नामजप के प्रत्येक अक्षर का किस प्रकार उच्चारण करना है ? किस पट्टी में उसे कहना है ? प्रत्येक अक्षर पर कितना जोर देना है ? इत्यादि सुधार बताकर परात्पर गुरुदेवजी ने मुझसे प्राथमिक भाग पक्का करवा लिया । तदुपरांत ३० मई २०२१ को जप में भाव निर्माण करने के प्रयासों पर जोर देने के लिए बताया । उन्होंने कहा कि ‘‘भाव के कारण सुननेवाले को आवाज की मधुरता अनुभव होती है ।’’
७. १ जून २०२१
७ अ. भाव जागृत होने के लिए भजन सुनना और कृतज्ञता का भाव जागृत होने पर ‘निर्विचार’ जप का ध्वनिमुद्रण करना : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के बताए अनुसार मैंने अध्ययन किया कि ‘किस कृति से मेरा भाव शीघ्र जागृत हो सकता है ?’ तब अकस्मात ‘धन्य भाग सेवा का अवसर पाया’ भजन का मुझे स्मरण हुआ । वह सुनने पर मन में कृतज्ञता का भाव जागृत होकर मुझे रोना आया । मैंने यह भजन सुनकर ही ‘निर्विचार’ जप का ध्वनिमुद्रण करना आरंभ किया ।
७ आ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी को अत्यधिक शरणागति से प्रार्थना करना, भावजागृति होना और निश्चय कर ध्वनिमुद्रित किए नामजपों में से एक नामजप अंतिम होना : ध्वनिमुद्रण के पहले भजन सुनकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी को अत्यधिक शरणागति से मुझसे प्रार्थना हो रही थी कि ‘मुझे कुछ भी नहीं आता । इतने उच्च स्तर का नामजप मुझ जैसे पामर (क्षुद्र जीव) से आप करवा रहे हैं, यह आपकी मुझपर कृपा ही है । यह नामजप जैसे उच्चारित करना है, वैसा आप ही करवा लें ।’ तब लगा कि ‘वास्तव में मुझपर श्रीविष्णु के अवतार गुरुदेवजी की कितनी कृपा है !’ इन विचारों के कारण मेरी अत्यधिक भावजागृति हुई । भावजागृति होने पर मैंने ध्वनिमुद्रण करना आरंभ किया । मुझे भीतर से लग रहा था कि ‘आज कितना भी विलंब हो जाए, ‘निर्विचार’ नामजप का ध्वनिमुद्रण करना ही है ।’ तब ध्वनिमुद्रण किए नामजपों में से एक नामजप परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने अंतिम किया ।
८. १८ जून २०२१
नामजप में भाषाशास्त्रानुसार शब्दोच्चार करने पर निर्गुण स्थिति अनुभव न होने के कारण ‘निर्विचार’ का ‘नि’ अधिक दीर्घ कहना : ‘संस्कृत शास्त्रानुसार शब्दोच्चार करते हुए ‘निर्विचार’ के ‘नि’ का ह्रस्व उच्चार होना चाहिए । तदनुसार जप करने पर जप अधिक गति से किया जाता है । इस गति के कारण निर्गुण स्तर अनुभव नहीं होता । इसलिए निर्गुण स्थिति में जाने के लिए ‘नि’ का अधिक दीर्घ उच्चार इस जप के लिए उचित है’, ऐसा स्पंदनों का अध्ययन कर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने बताया ।
इस प्रकार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २१ मई २०२१ से १८ जून २०२१ की कालावधि अर्थात लगभग ४ सप्ताह में ‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नम:’, ये तीनों नामजप अंतिम करवा लिए ।
९. ‘निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नम:’ ये दोनों नामजप करने पर ‘निर्विचार’ जप करने पर मन शीघ्र निर्विचार होकर ध्यानावस्था में जाना
‘निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नम:’, इन दोनों नामजपों का मैंने तुलनात्मक अध्ययन किया । मुझे अनुभव हुआ कि ‘निर्विचार जप करने पर मन शीघ्र निर्विचार होकर ध्यानावस्था में जाता है । तथा ‘श्री निर्विचाराय नम:’ जप करने पर आरंभ में सगुण की ओर बढे, ऐसा लगता है । तदुपरांत मन निर्विचार अवस्था की ओर जाता है ।’
‘हे गुरुदेवजी, आपकी कृपा से यह सब हम सीख और अनुभव कर पाए । आपकी कृपा के कारण ही इस सेवा का अवसर प्राप्त हुआ । इसलिए कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, वह अल्प ही होगी ।’
– कु. तेजल पात्रीकर, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (४.६.२०२१)
केवल ‘नामस्मरण करें’, ऐसा न कहते हुए ‘भावपूर्ण नामजप करने पर अधिक लाभ होगा’, यह सिखाकर उसका ध्वनिमुद्रण भी उपलब्ध करवानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !‘अनेक संप्रदायों के गुरु अथवा संत समाज को बताते हैं, ‘नामस्मरण करें’; परंतु ‘किस प्रकार नामस्मरण करने पर अधिक लाभ होगा’, यह कोई भी नहीं बताता । इसके विपरीत, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों को कालानुसार नामस्मरण करने के लिए बताते हैं और ‘वह नामजप भावपूर्ण कैसे कर सकते हैं ?’, यह सिखाकर साधकों को नामजप का ध्वनिमुद्रण (ऑडियो) भी उपलब्ध करवाते हैं । इसीलिए साधकों की उस जप से भावजागृति होकर उन्हें जप का अधिक लाभ लेना संभव होता है ।’ – कु. तेजल पात्रीकर |