हिन्दुओ, ‘लव जिहाद’ का विरोध करने के साथ ही हिन्दू युवतियों का धर्मांधों के साथ विवाह करने पर प्रतिबंध लगानेवाला कानून बनाने की मांग करें !

इजरायल में ज्यू वंशियों की सत्ता प्रस्थापित होते ही ज्यू राज्यकर्ताओं ने वहां की युवतियों द्वारा धर्मांध अरबों के साथ विवाह करने पर प्रतिबंध लगानेवाला कानून बनाया था, यह ध्यान में रखिए !

महिलाएं धर्मपरंपराओं का कठोर पालन करें !

आज संस्कार एवं संस्कृति मृतप्राय: हो गई है । घर में सभी सुविधाएं होते हुए भी वहां संतुष्टि नहीं है । घर की स्त्री द्वारा धर्माचरण न करने से ऐसी घटनाएं हो रही हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

तीर्थस्वरूप दादा और श्रीमती ताई के कारण हमारे घर का वातावरण आध्यात्मिक था । उनके निरंतर सहज वार्तालाप और आचरण के कारण हम पर साधना के संस्कार हुए ।

‘एसएसआरएफ’ के साधकों द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित धार्मिक धारावाहिक ‘महाभारत’ में श्रीकृष्ण की भूमिका करनेवाले एक सुप्रसिद्ध अभिनेता, इस धारावाहिक के निर्देश और संहितालेखिका से हुई भावस्पर्शी भेंट !

आध्यात्मिक प्रगति होने हेतु ‘स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, नामजप एवं सत्सेवा’, ये साधना के प्रमुख चरण हैं । आप ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप करना आरंभ कर सकते हैं ।

‘निर्विचार’ नामजप का साधकों और संतों पर होनेवाला परिणाम

 ‘निर्विचार’ नामजप के संदर्भ में की गई शोधपूर्ण जांच से ध्यान में आता है कि ‘निर्विचार’ जप आध्यात्मिक पीडा रहित एवं आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, ऐसे साधकों के लिए उपयोगी है ।

चित्तशुद्धिके लिये एक अलग विचार

इंद्रियां, पञ्चतन्मात्रा आदिमें व्यक्त होनेवाले चैतन्यके अंशको भी देवता कहनेका प्रघात है; यथा वाणीकी देवता अग्नि, कानोंमें दिक देवता, आंखोंकी सूर्य, त्वचाकी वायु, चरणोंकी उपेन्द्र, हाथोंकी इन्द्र आदि ।

कलियुग में स्वभावदोष निर्मूलन सभी प्रकार की साधनाओं का मूलाधार !

वर्तमान कलियुग में अधिकांश लोग रज-तम प्रधान होने के कारण उनमें स्वभावदोष और अहं की तीव्रता अधिक है । इसलिए नामजप करना उन्हें कठिन होता है ।

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने की सर्वोच्च न्यायालय के अतिरिक्त महाधिवक्ता एन्. व्यंकटरमण से सदिच्छा भेंट !

जो धर्म व धर्मसंस्थापना के लिए कार्य करते हैं, उन्हें कष्ट सहने ही पडते हैं । प्रभु श्रीराम को भी वनवास हुआ, पांडवों को भी दु:ख भोगने पडे, तब भी उन्होंने धर्मसंस्थापना का कार्य पूर्ण किया ।

श्राद्ध करने का शास्त्र समझकर कृति करने से हमें अधिक लाभ होता है ! – श्री. शंभू गवारे, हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू धर्म में ‘पितृऋण’ से मुक्त होने के लिए श्राद्धविधि करने का विशेष महत्त्व बताया गया है; परंतु समाज को श्राद्ध करने का महत्त्व और उस विषय के धर्मशास्त्र का ज्ञान न होने से श्राद्ध के विषय में अनेक भ्रांतियां फैली हुई हैं ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त सनातन के साधक श्री. प्रभाकर पिंगळे (आयु ८६ वर्ष) का निधन

श्री. प्रभाकर पिंगळे मूलत: खामगांव (जिला बुलढाणा) गांव के निवासी थे । उनके पुत्र सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी, बहू डॉ. (श्रीमती) मधुवंती पिंगळे, पोती श्रीमती वैदेही गौडा और पोती के पति श्री. गुरुप्रसाद गौडा पूर्णकालीन साधक हैं ।