परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

सभी पाठकों को ‘अपने बच्चों पर किस प्रकार के संस्कार करें ?’ यह समझाने के लिए उपयुक्त लेखमाला !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

     १९.९.२०२१ को अनंत चतुर्दशी थी । मेरे गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) इस तिथि पर भंडारा करते थे । इंदौर (मध्य प्रदेश) के भक्तवात्सल्य आश्रम में प.पू. श्री अनंतानंद साईशजी (प.पू. बाबा के गुरु) प्रणीत होनेवाला भंडारा अर्थात प.पू. बाबा के शिष्य और भक्तों के लिए आनंदोत्सव । ऐसा ही एक आनंदोत्सव मेरे जीवन में आया, जब प.पू. बाबा ने वर्ष १९८७ में बताया कि ‘मेरे पिता तीर्थस्वरूप दादा ‘संत’ हैं ।’ संत पद पर विराजमान पू. दादा (पू. बाळाजी वासुदेव आठवलेजी) से सभी परिचित हों; इसलिए यह लेखमाला आरंभ कर रहे हैं ।

संकलनकर्ता : (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भूमिका

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता पू. बाळाजी आठवलेजी और मां पू. (श्रीमती) नलिनी आठवलेजी

     ‘तीर्थस्वरूप दादा (मेरे पिता) के लेखन पर आधारित मेरे द्वारा संकलित किए गए और वर्ष २०१४ में प्रकाशित ‘सुगम अध्यात्मशास्त्र’, इन ५ ग्रंथों की (४ मराठी और १ अंग्रेजी भाषा में) ग्रंथमाला पुन: पढने पर मुझे उनकी अनेक विशेषताएं ध्यान में आईं ।

     मेरे गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी मेरे पिता के विषय में कहते थे, ‘वे तो संत ही हैं !’ वे सदैव मेरे पिता को पलंग पर अपने पडोस में बैठाते थे । मेरे पिता के कारण ताई (हम मां को ‘ताई’ कहते थे ।) ने भी संतपद प्राप्त किया ।

१. संत तीर्थस्वरूप दादा और संत श्रीमती ताई के कारण उनके पांचों बच्चों ने साधना में की कल्पनातीत प्रगति !

पीछे खडे (बाएं से) परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छोटे बंधू डॉ. विलास और डॉ. सुहास. बैठे हुए (बाएं से) स्वयं परात्पर गुरु डॉ. जयंतजी, ज्येष्ठ बंधू सद्गुरु डॉ. वसंतजी और श्री. अनंत (वर्ष २००२)

     तीर्थस्वरूप दादा और श्रीमती ताई के कारण हमारे घर का वातावरण आध्यात्मिक था । उनके निरंतर सहज वार्तालाप और आचरण के कारण हम पर साधना के संस्कार हुए । उनके संस्कारों के कारण मेरे भाईयों की भी साधना में अद्भुत प्रगति हुई है ।

१ अ. मेरे चार भाईयों में से २ भाईयों द्वारा संतपद प्राप्त करना और अन्य दोनों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक होना

     ६० से ६९ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है । ७० से ७९ प्रतिशत स्तर पर संतपद प्राप्त करता है तथा ८० से ८९ प्रतिशत स्तर पर सद्गुरुपद प्राप्त करता है ।

१. मेरे सबसे बडे बंधु तीर्थस्वरूप स्व. डॉ. वसंत : उन्होंने वर्ष २०१२ में संतपद तथा वर्ष २०१७ में सद्गुरुपद प्राप्त किया ।

२. मेरे दूसरे क्रमांक के बडे बंधु ती. अनंत : वर्ष २०१९ में उन्होंने संतपद प्राप्त किया ।

३. मेरे छोटे बंधु स्व. डॉ. सुहास : वर्ष २०२१ में उन्होंने ६४ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया ।

४. मेरे सबसे छोटे बंधु विलास : इनकी भी आध्यात्मिक प्रगति हो रही है ।

     हम अनेक संतों के चरित्र पढते हैं । किसी भी संत के चरित्र में उनके सभी बच्चों ने साधना में अच्छी प्रगति की, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता । इससे मेरे माता-पिता की अद्वितीय विशेषता स्पष्ट होती है ।

२. तीर्थस्वरूप दादा के सान्निध्य का साधकों को हुआ लाभ !

     जब शीव, मुंबई स्थित मेरे घर में पू. दादा और पू. ताई रहते थे, तब कुछ काल वहां रहनेवाले साधकों ने भी उनकी सेवा की । इन साधकों को भी उनके सत्संग का लाभ हुआ तथा उनकी आध्यात्मिक उन्नति हुई, उदा. श्री. सत्यवान कदम और कु. अनुराधा वाडेकर । इन दोनों ने ही सद्गुरुपद प्राप्त किया है तथा श्रीमती भक्ती खंडेपारकर और श्री. दिनेश शिंदे, इन दोनों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है ।

३. सनातन संस्था में साधना करनेवाले कुछ परिवारों के उदाहरण !

     सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले अनेक परिवार ऐसे हैं कि जिनमें अभिभावक और अब उनके बच्चे भी आध्यात्मिक उन्नति कर रहे हैं, उदा.

अ. पू. अशोक पात्रीकरजी का पूर्ण परिवार साधनारत है । उनकी दोनों बेटियों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है तथा उनकी पत्नी, बेटा और बहू भी पूर्णकालीन साधक हैं ।

आ. पू. (श्रीमती) राधा प्रभुजी का पूर्ण परिवार साधनारत है । उनका बेटा, साथ ही उनकी दोनों बहुओं का आध्यात्मिक स्तर भी ६० प्रतिशत से अधिक है तथा उनका पोता पू. भार्गवराम सनातन का पहला बालक संत है । उनकी बेटी का बेटा और बहू भी साधना करते हैं ।

इ. पू. (श्रीमती) निर्मला दातेजी का पूर्ण परिवार साधना करता है । उनका बडा बेटा, बडी बहू, साथ ही बेटी का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है तथा उनका छोटा बेटा और बहू भी पूर्णकालीन साधक हैं ।

ई. पू. (श्रीमती) सुशीला मोदीजी का पूर्ण परिवार साधनारत है । उनका बडा बेटा, छोटी बहू तथा दोनों पोतियों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है ।

उ. पू. रमानंद गौडाजी का पूर्ण परिवार साधनारत है । उनके चाचा, चाची, दोनों चचेरे भाई, दोनों चचेरे भाईयों की पत्नियां, साथ ही सास-ससुर, पत्नी और भतीजी, इन सभी का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है । उनके दोनों बच्चे उच्च स्वर्गलोक से पृथ्वी पर जन्मे दैवी बालक हैं ।

     सनातन में ऐसे अनेक परिवार हैं जो पूर्णकालीन साधना करते हैं तथा उन्होंने आध्यात्मिक उन्नति की है ।

     यह लेख पढकर कुछ पाठकों को साधना करने की और उनके परिजनों को साधना करवाने की दिशा प्राप्त हो, तो यह लेख लिखने का उद्देश्य सार्थक होगा !’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१४.९.२०२१)

(क्रमशः)

पू. दादाजी द्वारा किए गए लेखन की अद्वितीयता !

     मेरे पिताजी द्वारा किया गया लेखन, लिखे हुए पत्र, उन्होंने की कविताएं आदि इतने अद्भुत हैं कि उनका संकलन कर मैंने निम्न ५ ग्रंथ (४ मराठी और १ अंग्रेजी भाषा में) वर्ष २०१४ में प्रकाशित किए ।

  • ग्रंथ १ : सुगम सात्त्विक जीवन (बच्चों पर सात्त्विकता के संस्कार करनेवाले पिता का मार्गदर्शन !)
  • ग्रंथ २ : सुगम भक्तियोग (नामसंकीर्तनयोग के सरल विश्लेषण सहित !)
  • ग्रंथ ३ : सुगम अध्यात्म (दैनिक जीवन में अध्यात्म कृति में लाने हेतु उपयुक्त मार्गदर्शन !)
  • ग्रंथ ४ : नाम पर की जानेवाली कविताएं (व्यवहार और अध्यात्म की सीख देनेवाली कविताएं)
  • ग्रंथ ५ : Poetry created around Names (Poetry that teaches how to spiritualise worldly life) (अंग्रेजी ग्रंथ)

पाठकों के लिए इन ग्रंथों के संभावित लाभ !

     अनेक साधकों को लगता है कि ‘हमारे बच्चे अच्छे बनें । वे भी साधना करें’; परंतु उन्हें ‘बच्चों के साथ किस प्रकार बोलना चाहिए, कैसा आचरण करना चाहिए, जिससे वे अच्छे बनेंगे तथा उन पर साधना के संस्कार होंगे, यह ज्ञात नहीं होता । मेरे पिताजी ने हम ५ भाईयों पर किस प्रकार के संस्कार किए, उन्होंने हमें क्या सिखाया इत्यादि उनके द्वारा लिखे गए उपरोक्त ५ ग्रंथों से ज्ञात होगा । साधकों ने इन ग्रंथों का अध्ययन कर तदनुसार कृति की, तो उनके बच्चे भी साधना में अवश्य ही प्रगति करेंगे !

     वर्ष २०१४ में प्रकाशित किए गए ये ग्रंथ अधिकांश नए साधकों को ज्ञात नहीं है और पुराने साधकों को उनका महत्त्व समझ में नहीं आया । सभी साधकों को इन ग्रंथों का लाभ हो, इसलिए यह लेख और ग्रंथ का कुछ विषय ‘सनातन प्रभात’ में पुन: प्रकाशित कर रहे हैं । ‘साधक इन ग्रंथों का लाभ अवश्य लें’, ऐसी मेरी उनसे विनती है !

  • ग्रंथ ४ और ५ : ‘नाम से की जानेवाली कविताएं’ इस ग्रंथ में मराठी एवं हिंदी के ‘अ से ज्ञ’ और अंग्रेजी के ‘A to Z’ अक्षरों द्वारा रखे जानेवाले नामों के लिए आध्यात्मिक स्तर की कविताएं दी गई हैं । पाठक अपने पुत्र-पुत्री को ‘आपके नाम पर की गई कविता’; ऐसा कहकर उन्हें वह कविता दे सकते हैं !
  • अनिष्ट शक्तियां : वातावरण में अच्छी और अनिष्ट शक्तियां, दोनों कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां अच्छे कार्य में मनुष्य की सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्तियां उसे कष्ट देती हैं । वेद-पुराणों में प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा किए जानेवाले यज्ञकर्माें में राक्षसों द्वारा अनेक बाधाएं उत्पन्न किए जाने की अनेक कथाएं मिलती हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. वेदादि आध्यात्मिक ग्रंथों में असुर, राक्षस, पिशाच, साथ ही करणी और काले जादू के प्रतिबंध हेतु मंत्र दिए गए हैं, साथ ही अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए जानेवाले कष्टों के निवारण के लिए विविध आध्यात्मिक उपचार भी बताए गए हैं ।