‘पहले के युगों में साधना के रूप में नामस्मरण किया जाता था । उस काल में लोग सात्त्विक होने के कारण उन्हें नामजप करना संभव था । वर्तमान कलियुग में अधिकांश लोग रज-तम प्रधान होने के कारण उनमें स्वभावदोष और अहं की तीव्रता अधिक है । इसलिए नामजप करना उन्हें कठिन होता है । प्रथम स्वभावदोष निर्मूलन करने से साधना का आधार निर्माण होता है, जिससे नामजप करना संभव होता है ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२.९.२०२१)