‘कैरियर’ करने की अपेक्षा महिलाओं को अपने परिवार के भले के लिए त्याग करना चाहिए । आज संस्कार एवं संस्कृति मृतप्राय: हो गई है । घर में सभी सुविधाएं होते हुए भी वहां संतुष्टि नहीं है । घर की स्त्री द्वारा धर्माचरण न करने से ऐसी घटनाएं हो रही हैं । माता तो निरंतर प्रज्वलित (जलानेवाली नहीं) रहनेवाली ज्योति है । वह स्वयं प्रज्वलित रहकर अन्यों को प्रकाश देती है । स्त्री की वास्तविक स्वतंत्रता अपने धर्माचरण द्वारा घर के लोगों को आनंद देने में होती है । भारतीय संस्कृति पुरुषप्रधान है; इसलिए माता को अपनी लडकी को मर्यादापूर्ण आचरण करना सिखाना चाहिए । मेरी मां ने मुझे जो संस्कार दिए, उसका मुझे लाभ हुआ और उस कारण मेरी गृहस्थी सुखभरी रही । आज के समय संस्कारों का विलोप होने के कारण माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजा जा रहा है । महिलाएं सुधर गईं, तो समाज भी सुधर जाएगा । समाज निर्माण का महत्त्वपूर्ण दायित्व महिलाओं का है । महिलाओं को पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम नहीं करना चाहिए; अपितु पुरुषों की क्षमता के समान काम करना चाहिए । हमें हमारे धर्म की परंपराओं का कठोरता से पालन करना चाहिए ।’
– (स्व.) अधिवक्ता अपर्णा रामतीर्थकर