बच्चे असंस्कारी होने का परिणाम !

‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव ।’ (तैत्तिरीयोपनिषद्, शीक्षा, अनुवाक ११, वाक्य २ ) अर्थात ‘माता और पिता को देवता मानें’, ऐसा बचपन में बच्चों पर संस्कार न करनेवाले माता-पिता के संदर्भ में बडे होने पर बच्चों की वृत्ति ऐसी होती है कि ‘मतलब निकल गया, तो पहचानते नहीं ।’

वास्तव में प्रदूषण का निवारण करना है तो पहले मन का प्रदूषण दूर करें !

‘प्रदूषण के विषय में सर्वत्र दिखावा कर जो उपाय किए जाते हैं, वे रोग के मूल पर उपाय करने की अपेक्षा, ऊपरी उपाय करने के समान हैं ।

विजयादशमी का संदेश

‘विजयादशमी’ हिन्दुओं के देवता और महापुरुषों की विजय का दिन है । ‘आसुरी शक्तियों का पराभव और दैवी शक्तियों की विजय’, यह इस दिन का इतिहास है । इसीलिए इस दिन अपराजितापूजन और सीमोल्लंघन करने की सनातन परंपरा है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘पुलिस तथा सेना में ही नहीं, प्रशासन में सभी को भर्ती करते समय हिन्दू राष्ट्र में ‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति प्रेम’ को सबसे बडा घटक माना जाएगा !’

सनातन के कार्य को भर-भरकर आशीर्वाद देनेवालीं प.पू. भक्तराज महाराजजी की धर्मपत्नी प.पू. श्रीमती (स्व.) सुशीला दिनकर कसरेकरजी !

आयु के १७ वें वर्ष में विवाह होने के उपरांत उन्होंने जीवनभर प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) जैसे उच्च कोटि के संत की गृहस्थी संभालने का कठिन शिवधनुष्य उठाया । प.पू. जीजी की साधना अत्यंत कठिन थी ।

गोरक्षा के कार्य का महत्त्व एवं मर्यादाएं

अधिकांश पूर्णकालीन गोरक्षकों को गोरक्षा का कार्य प्रतिदिन ७-८ घंटे का भी नहीं होता । जब गोरक्षा का कार्य नहीं होगा, उस समय उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य किया, तो उनके परिश्रम सर्वत्र के गायों की रक्षा हेतु सहायक सिद्ध होंगे ।

अगस्त २०२२ में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा लिखित आध्यात्मिक शोधकार्य पर आधारित २ शोधनिबंधों का प्रस्तुतीकरण !

विश्वविद्यालय ने अक्टूबर २०१६ से ३१ अगस्त २०२२ की अवधि में १७ राष्ट्रीय तथा ७९ अंतरराष्ट्रीय, ऐसे कुल मिलाकर ९६ वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध प्रस्तुत किए हैं । विश्वविद्यालय को अभी तक कुल ११ अंतरराष्ट्रीय परिषदों में ‘सर्वाेत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण पुरस्कार’ प्राप्त हुए हैं ।

कहां लगभग ३५०० वर्ष पूर्व ही निर्मित हुए विविध धर्म (पंथ), और कहां अनादि अनंत सनातन धर्म !

१४०० वर्ष पूर्व इस संसार में एक भी मुसलमान नहीं था, २१०० वर्ष पूर्व इस संसार में एक भी ईसाई नहीं था, २८०० वर्ष पूर्व एक भी बौद्ध अथवा जैन नहीं था तथा ३५०० वर्ष पूर्व इस संसार में एक भी पारसी नहीं था; फिर इसके पूर्व इस संसार में कौन था ? केवल हिन्दू थे ।

तृतीय विश्वयुद्ध के काल में स्वयं को बचाने के लिए अभी से साधना करें !

‘कोई भी राजनीतिक दल तृतीय विश्वयुद्ध के समय हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर पाएगा; क्योंकि उनके पास आध्यात्मिक बल नहीं है । उस काल में स्वयं को बचाने के लिए अभी से साधना करें !’

राष्ट्रविरोधी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक !

‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करनेवाले देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’