गोरक्षा के कार्य का महत्त्व एवं मर्यादाएं

१. गाय का महत्त्व

‘बेलपत्र में शिवतत्त्व, तुलसी में विष्णुतत्त्व तथा अडहुल में गणेशतत्त्व होता है । इस प्रकार विभिन्न वनस्पतियों में विभिन्न देवताओं के तत्त्व होते हैं । संबंधित वनस्पति संबंधित देवता को समर्पित करने से उस संबंधित वनस्पति के माध्यम से हमें उस संबंधित देवता का तत्त्व मिलता है, उदा. शिवजी को बेलपत्र समर्पित किया, तो उस बेलपत्र में शिवतत्त्व आकर्षित होता है और वह हमें मिलता है । विभिन्न वनस्पतियों की तुलना में गाय सबसे महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि गोमाता में ३३ करोड देवताओं के तत्त्व समाहित हैं, जो उसके दूध, मूत्र, गोबर इत्यादि माध्यमों से मिलते हैं । अतः गाय मनुष्य के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।

२. अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से गाय की अपेक्षा मनुष्य श्रेष्ठ !

मनुष्य के लिए गाय चाहे कितनी भी उपयुक्त हो; परंतु अंततः गाय एक पशु ही है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार पशुयोनि की तुलना में मनुष्ययोनि श्रेष्ठ है; क्योंकि मनुष्यजीवन में ही साधना कर ईश्वरप्राप्ति की जा सकती है । गाय को वैसा करना संभव नहीं है; इसलिए अध्यात्मशास्त्र के अनुसार गाय की अपेक्षा प्रधानता से ईश्वरप्राप्ति कर सकनेवाले मनुष्य की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है ।

३. गोरक्षा एवं हिन्दूरक्षा की दृष्टि से हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का महत्त्व !

आज की स्थिति में गायों की भांति हिन्दू भी असुरक्षित बन गए हैं । कब और कहां हिन्दूद्वेषियों का प्रहार होगा, वह समय बताकर नहीं आएगा । आज के समय हिन्दू कन्याएं भी ‘लव जिहाद’ के कारण असुरक्षित बन गई हैं । आनेवाले भीषण काल में विभिन्न स्थानों पर दंगे होकर हिन्दुओं का बडी संख्या में संहार होगा । इस आपातकाल में हिन्दुओं की रक्षा करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है । उसके कारण हिन्दुओं को सुरक्षित जीवन प्रदान करनेवाले ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना करना आवश्यक है तथा उसके लिए प्रयासों की पराकाष्ठा करना महत्त्वपूर्ण होता है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होते ही उसी दिन से सर्वत्र के गायों की रक्षा की जाएगी ।

४. भावना की दृष्टि से मनुष्य की अपेक्षा गाय की रक्षा महत्त्वपूर्ण

भावना के स्तर पर कार्य करनेवाले कुछ लोगों को ‘हिन्दुओं की रक्षा करने की अपेक्षा गोरक्षा करना’ अधिक महत्त्वपूर्ण लगता है । उन्हें यह प्रधानता से करना होगा । आज अन्य हिन्दू निष्क्रिय हैं, उसकी अपेक्षा ऐसे करना निश्चित ही श्रेष्ठ है ।

५. गोरक्षा का पुत्रकर्तव्य निभानेवाले गोरक्षकों को हिन्दू भाईयों के प्रति भी धर्मबंधुता संजोना आवश्यक !

भावना की दृष्टि से देखा जाए, तो स्वयं का लडका और गाय इनमें से एक को बचाना हो, तो ऐसी स्थिति में गोरक्षक अपने लडके को ही बचाएंगे, उसी प्रकार से ‘सभी हिन्दू अपने बच्चे अथवा भाई हैं’, यह भाव हो, तो प्रत्येक गोरक्षक हिन्दुओं को बचाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में संपूर्ण रूप से सहभागी होगा ।

६. गोरक्षा के कार्य की मर्यादाएं

भारत से प्रतिदिन २५ सहस्र गायें बांग्लादेश के पशुवधगृहों में भेजी जाती हैं । भारत के पशुवधगृहों में प्रतिदिन ५० सहस्र गायों की हत्या की जाती है । ऐसी स्थिति में ‘हमने ५-२५ गायों को बचाया’ अथवा ‘हमारी गोशाला में १०० गायें हैं’, ऐसा बोलने में संतोष मानना उचित नहीं है । हमें गोरक्षा का राष्ट्रव्यापी ध्येय साध्य करना है; तो उसके लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना ही आवश्यक है ।

७. गोरक्षा के कार्य के साथ हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयास करना आवश्यक

अधिकांश पूर्णकालीन गोरक्षकों को गोरक्षा का कार्य प्रतिदिन ७-८ घंटे का भी नहीं होता । जब गोरक्षा का कार्य नहीं होगा, उस समय उन्होंने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य किया, तो उनके परिश्रम सर्वत्र के गायों की रक्षा हेतु सहायक सिद्ध होंगे ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले