आदर्श हिंदू राष्ट्र ही रामराज्य है !

‘हिन्दू राष्ट्र में अर्थात रामराज्य में बचपन से साधना करवाई जाएगी । इससे व्यक्ति में विद्यमान रज-तम की मात्रा घटकर व्यक्ति सात्त्विक बनता है ।

संत एवं बुद्धिप्रमाणवादी में भेद !

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने हेतु प्रोत्साहित कर मानव को अधोगति की ओर ले जानेवाले बुद्धिप्रमाणवादी और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वर प्राप्ति कराने वाले संत !’

नागरिकों की आत्महत्या के लिए स्वतंत्रता से अभी तक की सरकार उत्तरदायी !

‘पश्चिमी देशों में रोटी, कपडा और मकान होते हुए भी मानसिक अस्वस्थता के कारण वहां के नागरिक आत्महत्या करते हैं ।

धर्मविरोधकों के विचारों का खंडन करना आवश्यक !

‘धर्म विरोधकों के विचारों का खंडन करना समष्टि साधना ही है । इससे ‘धर्म विरोधकों के विचार अनुचित हैं’, यह कुछ लोगों को समझ में आता है एवं वे उचित मार्ग पर बढते हैं । ‘

धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र अपरिहार्य !

‘नैतिकता एवं आचारधर्म बचपन से न सिखानेवाले अभिभावकों एवं शासन के कारण भारत में सर्वत्र अनाचार, राक्षसी वृत्ति प्रबल हो गई है । इस स्थिति के कारण बलात्कार, भ्रष्टाचार, विविध अपराध, देशद्रोह एवं धर्मद्रोह की संख्या असीमित होकर देश रसातल में पहुंच गया है ।

तथाकथित सर्वधर्म समभाव !

‘बाल मंदिर में पढनेवाला बच्चा और स्नातकोत्तर शिक्षा लेनेवाला युवक, इन दोनों की शिक्षा समान है ; ऐसा हम नहीं कह सकते। ऐसी ही स्थिति अन्य तथाकथित धर्म एवं हिन्दू धर्म के बीच भी है, तब भी ‘सर्वधर्म समभाव’ की घोषणा करना, इससे बडा अज्ञान कोई नहीं ।

विविध विषयों के विशेषज्ञ एवं संत

‘व्यावहारिक जीवन में आंखों के विशेषज्ञ को आंखों के रोग होते हैं । हृदय- विशेषज्ञ को हृदय का विकार होता है ।

धर्म में बताई गई आश्रमप्रणाली का अर्थ !

‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग ।

तीव्र गति से विनाश की ओर बढते हिन्दू !

‘कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति, और कहां धर्म और मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए वे भी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ रहे हैं !’