सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव ।’ (तैत्तिरीयोपनिषद्, शीक्षा, अनुवाक ११, वाक्य २ ) अर्थात ‘माता और पिता को देवता मानें’, ऐसा बचपन में बच्चों पर संस्कार न करनेवाले माता-पिता के संदर्भ में बडे होने पर बच्चों की वृत्ति ऐसी होती है कि ‘मतलब निकल गया, तो पहचानते नहीं ।’ इस कारण वे माता पिता को वृद्धाश्रम में रखते हैं, इसमें आश्चर्य की क्या बात नहीं ?’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले