संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान का ही अस्तित्व नकारनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी !

‘कर्ता द्वारा बनाई गई वस्तु कभी भी कर्ता से श्रेष्ठ नहीं हो सकती, उदा. बढई द्वारा बनाई गई कुर्सी कभी भी बढई से श्रेष्ठ नहीं हो सकती ।

हास्यास्पद बुद्धिप्रमाणवादी !

‘जिस प्रकार जन्म से दृष्टिहीन कोई व्यक्ति कहे, ‘देखना, दृष्टि, ऐसा कुछ होता है’, यह मानना अंधश्रद्धा है’; उसी प्रकार बुद्धिप्रमाणवादी कहते हैं, ‘सूक्ष्म दृष्टि जैसा कुछ है’, यह मानना अंधश्रद्धा है !’

बुद्धिप्रमाणवाद न होने के लाभ !

‘आदि शंकराचार्य तथा समर्थ रामदास स्वामी के समय बुद्धिप्रमाणवादी नहीं थे, यह अच्छा हुआ, अन्यथा वे बच्चों द्वारा घर-परिवार छोडकर आश्रम में जाकर साधना करने का विरोध करते और संसार उनके अनुपम ज्ञान से सदा के लिए वंचित रह जाता ।’

अत्यंत दयनीय हो चुकी हिन्दुओं की स्थिति !

‘धर्मशिक्षा के अभाववश तथा बुद्धिप्रमाणवादियों द्वारा निर्मित संदेह के कारण हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की अद्वितीयता ज्ञात नहीं । इस कारण उनमें धर्माभिमान नहीं । परिणामस्वरूप उनकी स्थिति संसार के अन्य पंथियों की अपेक्षा आज अधिक दयनीय हो चुकी है !’

विज्ञान की तुलना में अध्यात्म की अद्वितीयता !

‘विज्ञान की भांति बुद्धिगम्य शिक्षा यह सिखाती है कि ‘जीवन सुखमय कैसे जिएं; जबकि अध्यात्म हमें यह सिखाता है कि ‘जीवन आनंद से कैसे जिएं और जन्म मृत्यु के फेरों से भी कैसे मुक्त हों !’

अर्जुन जैसी स्थिति में अधिकांश हिन्दू !

‘भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में (अध्याय २, श्‍लोक ११) अर्जुन से कहा, ‘अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्‍च भाषसे ।,

‘घर की मुर्गी दाल बराबर’, कहावत को चरितार्थ करनेवाले भारत के हिन्दू !

‘पूरे विश्व के जिज्ञासु चिरंतन आनंद की प्राप्ति हेतु अध्यात्म सीखने के लिए संसार के अन्य किसी भी देश में नहीं जाते, भारत आते हैं , जबकि भारतीय केवल सुखप्राप्ति के लिए अमेरिका, इंग्लैंड इत्यादि देशों में जाते हैं !’

हिन्दुओं, राष्ट्र एवं धर्म कार्य करते समय संतों से पूछकर ही कार्य करें !

‘हम व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न अवसरों पर उचित निर्णय क्या है, यह परिजन, संबंधी, मित्र, वैद्य, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक इत्यादि से पूछते हैं । इसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म संबंधी निर्णय राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी संतों से ही पूछकर लेने चाहिएं !’