बालकों में राष्ट्रप्रेम उत्पन्न होने के लिए यह करें !

‘भावी पीढी आतंकवादी न बने, इसलिए विद्यालय के पाठ्यक्रम में ही हिन्दू धर्म में बताया गया ज्ञान, विज्ञान तथा अच्छे संस्कारों की सीख देने से बालकों के मन में राष्ट्रप्रेम उत्पन्न होगा ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ‘साधना के आरंभिक काल में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से कैसे तैयार किया ?’, इस विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी द्वारा चुने हुए क्षण मोती !

गुरुदेवजी के बताए अनुसार मैंने २ माह तक रसोईघर में सेवा की । मुझे उस सेवा से बहुत आनंद मिलने लगा । उस आनंद में मैं पहले जो संगीत साधना करती थी, वही भूल गई ।

गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमूल्य विचार !

‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति अभिमान न रखनेवाली जनता उसी प्रकार के जनप्रतिनिधियों को चुनती है । उसके कारण आज देश पतन के रसातल को पहुंच गया है । इसका एक ही उपाय है – हिन्दुओं में राष्ट्र-धर्म के प्रति अभिमान जागृत कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना !

‘सनातन प्रभात’ की ज्ञानशक्ति का परिपूर्ण लाभ उठाएं !

‘सनातन प्रभात’ ने प्रारंभ से ही आदर्श राष्ट्ररचना के लिए अराजकीय विचार, राष्ट्र-धर्म हित के दृष्टिकोण और ज्वलंत हिन्दुत्व की भूमिका के माध्यम से वैचारिक क्रांति का संदेश दिया है । अनेकों ने ‘सनातन प्रभात’ के वैचारिक संदेश पर आचरण कर राष्ट्र-धर्म रक्षा का कार्य भी किया है ।

‘सनातन प्रभात’ – केवल समाचार देनेवाला नहीं, अपितु वास्तव में समाज का उद्बोधन करनेवाला नियतकालिक !

‘विभिन्न समाचारपत्रों में समाज में प्रतिदिन होनेवाली केवल अप्रिय घटनाओं के समाचार दिए जाते हैं; परंतु ‘उसके संदर्भ में क्या दृष्टिकोण होना चाहिए ?

रामनाथी, गोवा स्थित सनातन के आश्रम में ‘सनातन प्रभात’ के कार्यालय के चैतन्यमय वास्तु में लगाए गए जानकारी फलक पर अंकित परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के छायाचित्र में हुए आश्चर्यजनक परिवर्तन !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कृपाशीर्वाद से इस कार्यालय का चैतन्यमय एवं पवित्र वास्तु में रूपांतरण हुआ ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ‘साधना के आरंभिक काल में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से कैसे तैयार किया ?’, इस विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी द्वारा चुने क्षण मोती !

जब साधना आरंभ की, उस समय मुझे परात्पर गुरुदेवजी का प्रत्यक्ष सान्निध्य मिला । ‘उस समय उन्होंने मुझे कैसे तैयार किया ?’, उसके कुछ चुनिंदा प्रसंग यहां बताती हूं ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने हेतु प्रोत्साहित कर मानव को अधोगति की ओर ले जानेवाले बुद्धिप्रमाणवादी और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले संत !’

ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए क्या करें ?

‘तन, मन, धन एवं अहं का त्याग होने पर तथा ईश्वर के प्रति भाव एवं भक्ति बढने पर ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

बुद्धिप्रमाणवादी एवं संत में भेद !

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने हेतु प्रोत्साहित कर मानव को अधोगति की ओर ले जानेवाले बुद्धिप्रमाणवादी और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले संत !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले