१. भारत की सभी समस्याओं का एकमात्र समधान है – हिन्दुओं में राष्ट्र एवं धर्म के प्रति अभिमान जागृत करना !
‘राष्ट्र एवं धर्म के प्रति अभिमान न रखनेवाली जनता उसी प्रकार के जनप्रतिनिधियों को चुनती है । उसके कारण आज देश पतन के रसातल को पहुंच गया है । इसका एक ही उपाय है – हिन्दुओं में राष्ट्र-धर्म के प्रति अभिमान जागृत कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना ! ऐसा अभी तक किसी ने नहीं किया है; अत: इसके लिए किसी को दोषी प्रमाणित करने की अपेक्षा प्रत्येक व्यक्ति को ‘मैं क्या कर सकता हूं ?’, इस पर विचार करना आवश्यक है ।’
२. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कितने मुसलमानों ने भाग लिया ?
‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लाखों हिन्दुओं को कारागार में डाला गया तथा सहस्रों हिन्दू फांसी पर चढ गए अथवा अंग्रेजों की गोलीबारी में मारे गए । एक भी हिन्दू में मुसलमानों से ‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कितने मुसलमानों ने भाग लिया ?’, यह प्रश्न पूछने का साहस नहीं है । इसका परिणाम यह है कि स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में मुसलमान कहते हैं, ‘हंस के लिया पाकिस्तान ।’, वह सत्य ही है । अब मुसलमान ‘लडके लेंगे हिन्दुस्थान ।’, अपना यह नारा वास्तविकता में उतारने के लिए ये दिन-रात प्रयासरत हैं तथा हिन्दुओं में उन्हें सलाम करने की होड मची हुई है !’
३. ‘भारत के अभी तक के राजकर्ताओं ने भ्रष्टाचार से अर्जित की गई संपत्ति यदि सरकारी कोष में जमा की, तो भारत को विश्व में किसी से भीख मांगनी नहीं पडेगी ।’
४. ‘भारत की स्वतंत्रता से लेकर ७१ वर्षाें तक भारत पर राज्य किए अभी तक के राजनीतिज्ञों ने नहीं, अपितु संतों ने ही विश्व में भारत का मूल्य अबाधित रखा है !’
५. ‘९०० वर्षों तक दासता (गुलामी) में रहनेवाला विश्व का एकमात्र देश है भारत !’ भारत की इस पहचान को मिटाकर हमें विश्व को भारत की ‘ईश्वरप्राप्ति का मार्ग दिखानेवाला विश्व के एकमात्र देश के रूप में भारत की यह पहचान स्थापित करनी है ।’
६. पीढी का कर्तव्य !
‘प्रत्येक पीढी अगली पीढी की ओर समाज, राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में बडी अपेक्षा से देखती है । इसकी अपेक्षा प्रत्येक पीढी को ‘हम क्या कर सकेंगे ?’, यह विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिए कि अगली पीढी को उस संदर्भ में कुछ करने की आवश्यकता शेष न रहने से वह पीढी अपना संपूर्ण समय साधना के लिए दे सके !’
७ ‘हिन्दू राष्ट्र की जनता १५ अगस्त तथा २६ जनवरी जैसे राष्ट्रीय दिवस पर छुट्टी होने के कारण दूरदर्शन के कार्यक्रम देखने में समय नहीं गंवाएगी; अपितु अपना समय समाज, राष्ट्र एवं धर्म की सेवा में व्यतीत करेगी ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले