बुद्धिप्रमाणवादी, सर्वधर्म समभावी, साम्यवादी, इनके कारण ही देश और धर्म की स्थिति दयनीय है !

‘बुद्धिप्रमाणवादियों के कारण हिन्दुओं की ईश्वर के ऊपर से श्रद्धा नष्ट हो गई । सर्वधर्म समभाववादियों के कारण हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की अद्वितीयता समझ में नहीं आई तथा साम्यवादियों के कारण हिन्दुओं का ईश्वरके ऊपर से विश्वास उठ गया ।

अपराध टालने का एकमात्र उपाय है साधना सिखाना !

‘भ्रष्टाचार, बलात्कार, गुंडागिरी, हत्या, राष्ट्रद्रोह, धर्मद्रोहा इत्यादि अपराध न हो, इसलिए पाठशाला में, महाविद्यालय में तथा समाज में स्वतंत्रता से लेकर अभी तक पिछले ७५ वर्षों में क्या किसी भी सरकार ने शिक्षा दी है ?

स्वतंत्र भारत के अभी तक के शासनकर्ता क्या इस पर विचार करेंगे ?

‘कहां भारत में स्वतंत्रता से लेकर अभी तक केवल ७५ वर्ष भी राज्य न कर पानेवाले भारत के ही आज तक के शासनकर्ता और कहां विदेश से छोटी सी सेना के साथ भारत में आकर करोडों हिन्दुओं पर सैकडों वर्ष राज्य करनेवाले मुसलमान, अंग्रेज, फ्रेंच और पुर्तगाली !’

बांध बनाने जैसे केवल सतही उपाय करनेवाले शासनकर्ता नहीं चाहिए !

‘केवल बांध बनाने से सूखे का सामना किया जा सकता है क्या ? बांध बनाया; परंतु वर्षा ही नहीं हुई, तो बांध का क्या उपयोग ? ‘इतने लोग सूखे के कारण मरे’, ऐसे ही समाचार प्रकाशित करते रहेंगे क्या ?

हिन्दू धर्म के ज्ञान की अद्वितीयता !

‘पश्चिमी ज्ञान केवल तत्कालीन सुख पाने की दिशा दिखाता है, जबकि हिन्दू धर्म का ज्ञान चिरंतन आनंद प्राप्त करने की दिशा दिखाता है ।’

हिन्दुओं की दयनीय अवस्था होने का एक कारण !

चर्च और मस्जिद में धर्म शिक्षा दी जाती है । इसके विपरीत मंदिर में केवल दर्शन लेते हैं, इसलिए धर्मशिक्षा के अभाववश हिन्दुओं की स्थिति दयनीय हो गई है ।’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘नेता, बुद्धिप्रमाणवादी अथवा वैज्ञानिक, इनके कारण विदेशी भारत में नहीं आते; अपितु संतों के कारण तथा अध्यात्म एवं साधना सीखने के लिए आते हैं । तब भी हिन्दुओं को संत एवं अध्यात्म का मूल्य समझ में नहीं आया ।’

गुरुकृपायोग के अनुसार साधना में भक्तियोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग से संबंधित कुछ तत्त्वों का समावेश होने से साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होना

‘गुरुकृपायोगानुसार साधना में ‘स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भक्तिभाव, सत् के लिए त्याग एवं अन्यों के प्रति प्रीति (निरपेक्ष प्रेम)’ इस अष्टांग साधना के अनुसार साधना करते समय साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होती है ।

हिन्दू राष्ट्र में ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ होगा !

‘हिन्दू राष्ट्र में जातियां नहीं  होंगी । इसलिए जातीय आरक्षण मिलने का प्रश्न उत्पन्न नहीं होगा । राष्ट्रहित के लिए सर्व स्थान गुणों के आधार पर भरे जाएंगे ।’

साधना में स्थूल स्तर की चूकें बताने का महत्त्व !

‘साधना में मन के स्तर पर होनेवाली अनुचित विचार-प्रक्रिया अधिक बाधक होती है । अंतर्मुखता के अभाव के कारण साधक को अपनी चूकें समझ में नहीं आतीं तथा वे चूकें मन के स्तर की चूकें होने के कारण अन्यों के ध्यान में भी नहीं आतीं ।