प्रथम नमन आपको गणेशजी !

श्री गणपति में शक्ति, बुद्धि एवं संपत्ति, ये तीन सात्त्विक गुण हैं । वे भक्तों पर अनुकंपा करनेवाले हैं । श्री गणपति विद्या, बुद्धि एवं सिद्धि के देवता हैं । वे दुखहरण करनेवाले हैं; इसीलिए प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में श्री गणेश की पूजा की जाती है । विद्यारंभ में तथा ग्रंथारंभ में भी श्री गणेश का स्तवन करते हैं ।

तर्पण एवं पितृतर्पण का उद्देश्य और महत्त्व !

किसी भी श्राद्धविधि में ‘तर्पण’ दिया जाता है । ‘तर्पण’ का अर्थ, उसका महत्त्व एवं प्रकार, उसका उद्देश्य, साथ ही उसे करने की पद्धति के विषय में जानकारी इस लेख में दिया है ।

श्राद्ध में भोजन कैसे परोसें ?

पितृपात्र के लिए (पितरों के पत्तल के लिए) उलटी दिशा में (घडी की सुइयों की विपरीत दिशा में) भस्म की रेखा (पिशंगी) बनाएं । श्राद्धीय ब्राह्मणों की थाली में लवण (नमक) न परोसें ।

श्राद्ध कौन करें एवं कौन न करें ?

मृत व्यक्ति के श्राद्ध कुटुंब में कौन कर सकता है एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण इस लेख में देखेंगे । इससे यह स्पष्ट होगा कि हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो प्रत्येक व्यक्ति का उसकी मृत्यु के उपरांत भी ध्यान रखता है ।

नांदीश्राद्ध (वृद्धिश्राद्ध) क्या है ? यह क्यों करते हैं ?

प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में विघ्ननिवारणार्थ श्री गणपति पूजन करते हैं । उसी प्रकार पितर एवं पितर देवताओं का (नांदीमुख इत्यादि देवताओं का) नांदीश्राद्ध करते हैं ।

सर्वत्र आदर्श गणेशोत्सव मनाने संबंधी चलाए जानेवाले अभियान में अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित होकर श्री गणेश की कृपा प्राप्त करें !

समिति सात्त्विक गणेशमूर्ति के आध्यात्मिक एवं पर्यावरणीय लाभ के विषय में समाज का उद्बोधन कर रही है । असात्त्विक मूर्ति की अपेक्षा खडिया मिट्टी की मूर्ति से गणेशतत्त्व प्रक्षेपित होता है, जिससे गणेशभक्तों को अधिक लाभ होता है । इस संदर्भ में अन्यों का उद्बोधन कर गणेशभक्त सात्त्विक गणेशमूर्ति का प्रसार कर सकते हैं ।

पितृपक्ष में महालय श्राद्ध कर पितरों का आशीर्वाद प्राप्‍त करें !

श्राद्धविधि करने से पितृदोष के कारण साधना में आनेवाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है । ‘सभी पूर्वज संतुष्‍ट हों और साधना के लिए उनके आशीर्वाद मिलें’, इसके लिए पितृपक्ष में महालय श्राद्ध करना चाहिए ।

पितृदोष से उत्पन्न कष्ट दूर करने के लिए पितृपक्ष में किया जानेवाला दत्तात्रेय का नामजप एवं प्रार्थना !

‘आजकल अनेक साधकों को अनिष्ट शक्ति जनित कष्ट हो रहे हैं । पितृपक्ष के काल में (१८.९.२०२४ से २.१०.२०२४ की अवधि में) इन कष्टों में वृद्धि होने के कारण इस कालावधि में प्रतिदिन न्यूनतम १ घंटा ‘ॐ ॐ श्री गुरुदेव दत्त ॐ’ नामजप करें ।

गणेशोत्सव के अवसर पर गांव जाते समय, साथ ही अन्य समय यात्रा करते समय यथासंभव सनातन संस्था के ग्रंथ, लघुग्रंथ आदि साथ में रखकर उनका प्रसार करें !

कुछ साधकों एवं धर्मप्रेमियों ने यात्रा करते समय साथ में सनातन के कुछ ग्रंथ एवं लघुग्रंथ रखे थे । उन्होंने आगामी त्योहारों को ध्यान में रखते हुए सहयात्रियों को ग्रंथ दिखाए एवं उनमें विद्यमान जानकारी देकर प्रसार किया । सहयात्रियों ने उत्स्फूर्त प्रतिसाद दिया ।’

साधको, दुर्घटना से रक्षा होने हेतु प्रतिदिन नामजप आदि उपाय करें !

‘सनातन का राष्‍ट्र एवं धर्म जागृति के कार्य जैसे जैसे बढ रहे हैं, वैसे वैसे इन कार्यों में बाधा लाने हेतु अनिष्ट शक्‍तियां बडी मात्रा में कार्यरत हुई हैं ।