साधको, ‘निरंतर नकारात्मक विचार करने से और उस विषय पर अन्यों से बार-बार चर्चा करने से मन पर नकारात्मकता का संस्कार होता है’, यह ध्यान में रखकर योग्य मार्गदर्शन तथा स्वसूचना लें !

स्वयं की समस्या के बारे में विचार करने से तथा उसके बारे में निरंतर अन्यों को बताना, मन को नकारात्मक स्वसूचना देने समान होता है । परिणामस्वरूप मन के नकारात्मक विचारों का पोषण होता है और मन की अस्थिरता बढती है तथा कार्यक्षमता भी घटती है ।

कृषि उत्पादों में स्थित रासायनिक अंश : नित्य आहार में समावेशित विष !

खेतों में, अनाज संग्रहण के गोदाम में, साथ ही प्रसंस्करण उद्योगों में अन्नपदार्थाें में विविध कारणों से मिलाए जानेवाले रासायनिक घटक निश्चितरूप से अनदेखी करने योग्य नहीं हैं ।

अध्यात्मप्रसार के कार्य के लिए यात्रा करनेवाले साधकों की अपने परिचितों के यहां निवास एवं भोजन व्यवस्था हो सकती हो, तो जानकारी दें !

साधकों को सूचना एवं पाठक, शुभचिंतक एवं धर्मप्रेमियों से विनती !      सनातन संस्था के पूर्णकालीन साधक अध्यात्मप्रसार एवं हिन्दू राष्ट्र-जागृति के कार्यक्रम के लिए भारत के विविध राज्यों में यात्रा कर रहे हैं । इस यात्रा के समय विविध राज्यों में अध्यात्मप्रेमी जिज्ञासु एवं हिन्दू राष्ट्रप्रेमियों को संपर्क करना, व्याख्यान, बैठक, सभा, शिविर … Read more

शरीर में गर्मी बढने पर उसके लिए शारीरिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर करने योग्य विविध उपचार !

१. शरीर की गर्मी न्यून करने हेतु शारीरिक स्तर पर करने योग्य उपचार १ अ. तुलसी के बीजों का सेवन करना : तुलसी के पत्ते गरम व बीज ठंडा होता है । गर्मी न्यून करने हेतु १ चम्मच तुलसी के बीज आधा कटोरा पानी में भिगोएं और सवेरे उसमें १ कटोरा गुनगुना दूध मिलाकर खाली … Read more

चाय पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक !

चाय के दुष्परिणाम      चाय स्वाद में कसैली होने से वह कोष्ठबद्धता निर्माण करती है । कुछ लोगों को चाय न पीने से शौच नहीं होती । आदत पड जाने से ऐसा होता है । शौच का वेग निर्माण करना, चाय का काम नहीं । चाय रक्त में आम्ल बढाती है । नियमित चाय … Read more

आच्छादन : ‘सुभाष पाळेकर प्राकृतिक कृषि तंत्र’ का एक प्रमुख स्तंभ !

भूमि के पृष्ठभाग को ढकना’ अर्थात ‘आच्छादन’ ! भूमि की सजीवता एवं उर्वरता बनाए रखने का कार्य आच्छादन करता है । आच्छादन के कारण ‘सूक्ष्म पर्यावरण की’ निर्मिति सहज होती है । ‘सूक्ष्म पर्यावरण’ अर्थात ‘भूमि के सूक्ष्म जीवाणु एवं केंचुए के कार्य के लिए आवश्यक वातावरण ।

नहाने के जल में एक चम्मच खडा नमक डालें ।

नमक के जल से स्नान करने से संपूर्ण शरीर के १०६ देहशुद्धिकारी चक्रों पर स्थित कष्टदायक शक्तियों का संग्रह नष्ट होता है । फलस्वरूप देहशुद्धिकारी चक्र २ – ३ प्रतिशत जागृत होते हैं एवं कष्टदायक शक्ति शरीर से बाहर निकलती है ।

पोंछा लगाने के संदर्भ में आचार

यंत्र से भूमि पोंछते हुए शरीर अधिकांशतः झुका हुआ नहीं होता, हम खडे-खडे ही भूमि स्वच्छ करते हैं । ऐसे में शरीर की विशिष्ट मुद्रा के अभाव के कारण सूर्यनाडी जागृत नहीं होती । परिणामस्वरूप यंत्र से भूमि पोंछने के कृत्य द्वारा निर्मित कष्टदायक तरंगों से देहमंडलकी भी रक्षा नहीं हो पाती ।

सनातन के आश्रम के लिए ‘फोटोकॉपी मशीन’ क्रय करने के लिए सहायता कीजिए !

सनातन के आश्रमों में समाज को हिन्दू धर्म के प्रति जागृत करने हेतु नियतकालिक प्रकाशित करना, ग्रंथों की निर्मिति करना, साथ ही दृश्यश्रव्य चक्रिकाएं (वीडियो सीडी) तैयार करना आदि सेवाएं संगणक की सहायता से की जाती हैं । इन सेवाओं के लिए A3 और A4 आकार की संगणकीय प्रतियां (जेरॉक्स) निकालनी पडती हैं ।

सनातन के साहित्य में उपयोग की गई संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भाषा की कारणमीमांसा

भाषा जितनी अधिक शुद्ध होती है, उतनी ही चैतन्यमय होती है । इस नियम के अनुसार सनातन के साहित्य में शुद्ध हिन्दी का उपयोग किया जाता है । संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का उपयोग किए जाने के कारण पाठकों को भाषा कठिन प्रतीत हो सकती है ।