चाय के दुष्परिणाम
चाय स्वाद में कसैली होने से वह कोष्ठबद्धता निर्माण करती है । कुछ लोगों को चाय न पीने से शौच नहीं होती । आदत पड जाने से ऐसा होता है । शौच का वेग निर्माण करना, चाय का काम नहीं । चाय रक्त में आम्ल बढाती है । नियमित चाय के सेवन से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, रक्तवाहिनियों के आकुंचन से रक्तदाब और आम्लपित्त का कष्ट बढता है । चाय के साथ कुछ न कुछ खाते भी हैं । इन खाद्यपदार्थाें में नमक होता है, जो चाय में डाले गए दूध के संपर्क में आता है । इस कारण चाय शरीर के लिए मारक होती है । चाय के कारण शरीर की अधिक हानि होती है; परंतु चाय का व्यसन हो जाने से सामान्य मनुष्य चाय छोड नहीं पाता ।
चाय के लिए पर्याय …?
- धनिया-जीरे का कशाय : चाय की तुलना में धनिया-जीरे का कशाय पीना हितकर है ।
- सौंफ इत्यादि का कशाय : प.पू. गोंदवलेकर महाराजजी के संप्रदाय में आगे दिए गए औषधीय घटकों का उपयोग कर, कशाय बनाने की प्रथा है । सौंफ, धनिया, जीरा, अजवायन, शतपुष्पा (सोआ), गोखरू, वावडिंग, सोंठ एवं मुलैठी, ये वस्तुएं समान मात्रा में लेकर, थोडासा भूनकर पीस लें । प्रतिदिन काढा बनाने के लिए एक कप पानी में पौन चम्मच पिसा हुआ मिश्रण (पाउडर) डालकर, उसे उबाल लें । तत्पश्चात उसे छानकर, गरम रहते ही उसका सेवन करें । उसमें शक्कर, नमक, दूध इत्यादि कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं ।यह काढा पेट के लिए बहुत लाभदायक होता है । इसमें सौंफ एवं धनिया पेट स्वच्छ रखने के लिए उपयुक्त है । जीरा शरीर की उष्णता न्यून करता है, अजवायन के कारण पेट में वायु (गैस) नहीं होते, वावडिंग के कारण पेट में कृमि (कीडे) नहीं होते, सोंठ के कारण कफ नहीं होता और मुलैठी से काढे में मिठास आती है और गला साफ रहता है ।
- तुलसी का काढा : प्रत्येक ऋतु के अनुसार निर्धारित औषधीय वनस्पतियों का काढा लेना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयुक्त होता है । वर्षा ऋतु में और सर्दियों के दिनों में तुलसी का काढा आवश्यकता अनुसार शक्कर डालकर ले सकते हैं । इस काढे में दूध न डालें । बारिश एवं सर्दियों के दिनों में तुलसी का काढा लेने से सर्दी, खांसी, ज्वर आना इत्यादि विकार नहीं होते । तुलसी विषघ्न होने से शरीर के विषैले द्रव्यों का नाश होता है । इसके साथ ही पाचन में सुधार होने से भूख अच्छी लगती है ।