अयोध्या के श्रीराम मंदिर में स्थापित मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई श्री रामलला की मूर्ति की प्रतीत हुई गुणविशेषताएं !

‘२२.१.२०२४ को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि   के नवनिर्मित श्रीराम मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई । इस मूर्ति को देखने पर मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई श्रीराम की इस मूर्ति की निम्न गुणविशेषताएं मेरे ध्यान में आईं ।

श्रीराम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा निमित्त सप्तर्षि एवं संतों का संदेश

अब हम ‘सनातन धर्मराज्य’ की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं, जिसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ भी कह सकते हैं । इस कालावधि में ‘अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होकर ‘श्रीराममूर्ति’ की प्राणप्रतिष्ठा होना’, ईश्वरीय नियोजन है ।

रामभक्तो, स्वयं में शरणागत भाव एवं आर्त भाव बढाकर अपने हृदयमंदिर में भी श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा करें !

प्रभु श्रीराम का तत्त्व अब अधिकाधिक कार्यरत हुआ है । रामभक्तो, स्वयं द्वारा की जा रही प्रत्येक कृति को रामभक्ति से जोडकर अंतःकरण में भक्ति के दीप प्रज्वलित करेंगे ।

अयोध्या में श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में सनातन के गुरुओं का संदेश

प्रभु श्रीराम के काल में संपूर्ण प्रजा धर्मपालक तथा रामभक्त थी; इसलिए उसे श्रीराम जैसे धर्मपालक राजा एवं रामराज्य मिला । भारत को भी पुनः रामराज्य का गतवैभव प्राप्त कराने हेतु हिन्दू समाज को धर्मपालन एवं रामभक्ति कर आध्यात्मिक बल बढाना होगा ।

गुरुकृपायोग में ‘ज्ञानयोग’ भक्तियोग के अंतर्गत आता है !

कलियुग में भक्तियोग के अनुसार साधना कर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करना संभव है । इसके लिए ‘गुरुकृपायोग’ भक्तियोगप्रधान है । गुरुकृपायोग के अनुसार साधना करते समय साधक को आवश्यकता के अनुसार अन्य साधनामार्ग भी सिखाए जाते हैं ।

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी द्वारा साधकों को व्यष्टि एवं समष्टि साधना के विषय में किया मार्गदर्शन

साधना होने के लिए कष्ट करने की तैयारी होनी चाहिए । हम केवल कर्म करते हैं; परंतु वे कर्म साधना के रूप में ही होने चाहिए । साधना के रूप में न करने से हम पीछे रहते हैं ।

सप्तर्षियों की कृपा प्राप्त करनेवालीं तथा बडी सहजता से ‘विश्वकार्य’ के स्तर तक पहुंचनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी !

अभी तक श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने आध्यात्मिक क्षेत्र में बहुत बडा कार्य किया है तथा इसके आगे भी उनके द्वारा बहुत बडा अद्वितीय एवं दैवीय कार्य होनेवाला है !

कलियुग की सर्वश्रेष्ठ नामजप साधना, नामजप की वाणियां एवं ध्वनि-प्रकाश विज्ञान

नामजप स्थूल ध्वनि, अव्यक्त ध्वनि, साथ ही प्रकाश ऊर्जा से चित्तशुद्धि कर मनुष्य को केवल स्वास्थ्य ही नहीं, अपितु आनंदप्राप्ति का मार्ग साध्य कराता है । यह कलियुग की सर्वश्रेष्ठ साधना सिद्ध होती है ।

मनुष्य का शरीर विभिन्न यंत्रों सहित कारखाने की भांति आत्मा का वाहन होना

अंदर बैठा हुआ जीव, जीवात्मा, आत्मा, परमात्मा अर्थात चेतना है, शाश्वत है, अविनाशी है, सर्वव्यापी है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान है । यही अंतिम सत्य, यही हमारा स्वस्वरूप तथा यही है अनादि अनंत !