श्रीराम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा निमित्त सप्तर्षि एवं संतों का संदेश

श्रीराम मंदिर का निर्माण व मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा, ईश्वरीय नियोजन !

पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी

‘विश्व में जो भी घटित होता है, वह ईश्वरेच्छा से घटित होता है, मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं । अंत में जो ईश्वर के मन में होता है, वही घटित होता है । अब हम ‘सनातन धर्मराज्य’ की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं, जिसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ भी कह सकते हैं । इस कालावधि में ‘अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होकर ‘श्रीराममूर्ति’ की प्राणप्रतिष्ठा होना’, ईश्वरीय नियोजन है । अब यद्यपि श्रीराम जन्मभूमि का विषय पूर्णविराम प्राप्त कर चुका है, तथापि अभी श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विषय अपूर्ण है । कालमहिमा के अनुसार अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विषय पूर्ण करने का समय निकट आ गया है । प्रभु श्रीराम एवं भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से ही सनातन धर्मराज्य की स्थापना होनेवाली है । सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के कारण भारतभूमि को नवऊर्जा प्राप्त होनेवाली है ।’

– सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, ७.१.२०२४)


श्रीराम जन्मभूमि एवं हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए हिन्दुओं के अविरत धर्मयुद्ध की विजय का दिन !

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

‘संपूर्ण विश्व में यदि कोई अविरत धर्मयुद्ध हुआ होगा, तो वह श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए हुआ है । हमारे लिए मंदिर केवल एक प्रार्थनास्थल नहीं, अपितु वह राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति का प्रतीक तथा गौरव का चिन्ह है । वर्ष १५२८ में बाबर ने राममंदिर का विध्वंस किया, तब से यह अविरत धर्मयुद्ध प्रारंभ हो गया । उसके पश्चात वर्ष १९४९ तक विविध प्रकार के संघर्ष हुए । रामजन्मभूमि पर बाबर, हुमायूं, अकबर, औरंगजेब, नवाब अली आदि सबने आक्रमण किए । वर्ष १६८४ में औरंगजेब ने श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण किया था । इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने भी वर्ष १९१२ से १९३४ तक यहां संघर्षमय वातावरण उत्पन्न किया । अंग्रेजों के शासनकाल में २ बार संघर्ष हुआ । इस प्रकार रामजन्मभूमि बचाने के लिए कुल ७६ बार संघर्ष हुआ । इस भूमि के लिए हमारे पराक्रमी राजा, साधु-संत एवं सामान्य जनता, सभी ने तन, मन एवं धन का त्याग कर तीव्र संघर्ष किया एवं बलिदान दिया । इसमें अनेक पराक्रमी राजा, साधु, संत एवं सामान्य जनता का समावेश है । वर्ष १९८४ में इस संघर्ष की गति अधिक बढ गई ।

३० अक्टूबर १९९० को अयोध्या में श्रीराम कारसेवा समिति की स्थापना हुई । यह सभी जानते हैं कि उस समय कारसेवकों का किस प्रकार दमन किया गया । उन्हें इस जन्मभूमि पर आने से रोका गया । उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार के आदेश से पुलिस ने निर्दाेष कारसेवकों पर गोलीबारी की । उसमें अनेक कारसेवकों ने इस संघर्ष के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है । ६ दिसंबर को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाया । वह एक बडा ऐतिहासिक दिन था । आश्चर्य की बात यह है कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भी हिन्दुओं की श्रद्धा के विशाल केंद्र श्रीराम मंदिर के लिए बडा संघर्ष करना पडा । कनिष्ठ न्यायालय से सर्वाेच्च न्यायालय तक यह धर्मयुद्ध अविरत चला । परिणामस्वरूप ९ नवंबर २०१९ को सर्वाेच्च न्यायालय ने अंतिम निर्णय कर रामजन्मभूमि श्रीरामलला को लौटाई । उसके पश्चात एक प्रकार से हिन्दुओं ने ५०० वर्ष किए हुए संघर्ष का अंत हुआ । अब रामजन्मभूमि पर भव्य श्रीराममंदिर खडा हो गया है । २२ जनवरी २०२४ को वहां रामलला की प्राणप्रतिष्ठा की जानेवाली है । एक प्रकार से प्रभु श्रीराम की कृपा से रामभक्तों की विजय का दिन है । यह दिन देखने के लिए और हिन्दू धर्म बचाने के लिए हिन्दुओं ने अविरत धर्मयुद्ध किया है, यह ध्यान में रखना चाहिए । इससे ही प्रेरणा लेकर अब हिन्दुओं को रामराज्य की स्थापना के लिए प्रयत्न करने चाहिए !’

– सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति (३१.१२.२०२३)

राममंदिर के विषय में ज्योतिषियों द्वारा की गई भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई !!

‘४ नवंबर २०१९ से २० नवंबर २०२० की अवधि में बृहस्पति धनुराशि में भ्रमण करनेवाले हैं । निसर्गकुंडली के नवम् स्थान में बृहस्पति का स्वराशि में भ्रमण होनेवाला है । मूल, पूर्वाषाढा एवं उत्तराषाढा नक्षत्र के भ्रण क्रमशः धार्मिक संस्थाओं, मंदिरों, खेलों, कला, सलाहकार, मंत्रियों, पुरोहितों एवं धर्मप्रमुखों के लिए अनुकूल होने के कारण भारत की जनता की दृष्टि से विगत अनेक वर्षाें से लंबित श्रीराममंदिर के निर्माण हेतु उचित काल दर्शाता है । इस काल में कानूनी प्रक्रिया पूर्ण होकर श्रीराममंदिर के कार्य का आरंभ हो सकता है ।’

(संदर्भ : ज्योतिषज्ञान दीपावली अंक २०१९, संपादक : सिद्धेश्वर मारटकर)