‘२२.१.२०२४ को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के नवनिर्मित श्रीराम मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की गई । इस मूर्ति को देखने पर मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई श्रीराम की इस मूर्ति की निम्न गुणविशेषताएं मेरे ध्यान में आईं ।
१. श्री रामलला की यह मूर्ति बहुत ही तेजस्वी एवं सुंदर है ।
२. श्रीराम के बालरूप का हमें आकर्षित कर लेना
श्री रामलला की मूर्ति हमें उसकी ओर तुरंत ही आकर्षित कर लेती है । ‘प्रभु श्रीराम का वह बालरूप होने के कारण वैसा होता है’, ऐसा ध्यान में आया । मूर्तिकार अरुण योगीराज का यह अविष्कार है । उन्होंने बहुत ही हूबहू श्रीराम का बालरूप बनाया है । श्रीराम देवता हैं तथा उसमें भी उनका बालरूप तो निरीह एवं निर्मल होता है, उसके कारण वह हमें आकर्षित कर लेता है ।
३. श्री रामलला के मुख की ओर देखकर आनंद प्रतीत होना, जबकि चरणों की ओर देखकर शरणागतभाव जागृत होना
श्री रामलला के मुख पर मधुर हास्य है । उसके कारण उनके मुख की ओर देखकर हमें बहुत ही आनंद प्रतीत होता है, जबकि उनके चरणों की ओर देखकर हमारा शरणागतभाव जागृत होता है, जो मूर्तिकार की विशेषता ही है । श्री रामलला के मुख को देखने पर उसकी ओर हमारी दृष्टि गड जाती है, साथ ही उनके चरणों की ओर देखा, तब भी हमारी दृष्टि वहां गड जाती है, इतनी उन दोनों में सजीवता एवं देवत्व आया है । ‘मूर्तिकार योगीराज का श्रीराम के प्रति भाव एवं उनकी साधना के कारण यह उन्हें साध्य हुआ है’, ऐसा प्रतीत हुआ ।
४. प्राणप्रतिष्ठा न होते हुए भी मूर्ति में रामतत्त्व २५ प्रतिशत होना एवं प्राणप्रतिष्ठा होने पर वह ३५ प्रतिशत हो गया, ऐसा प्रतीत होना
२२.१.२०२४ को श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने से पूर्व ऐसा अनुभव हुआ कि मूर्ति में रामतत्त्व २५ प्रतिशत है । यह मूर्तिकार के कौशल, भाव, व्रताचरण इत्यादि गुणों के कारण हुआ है । श्री रामलला की मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा होने पर उसमें रामतत्त्व ३५ प्रतिशत हो गया ।
५. मूर्ति में तारक स्पंदन ९० प्रतिशत एवं मारक स्पंदन १० प्रतिशत अनुभव होना
श्रीराम की यह मूर्ति बालरूप में होने से उसमें तारक तत्त्व अधिक है ।
६. मूर्ति की ओर देखने पर मणिपुरचक्र पर स्पंदन प्रतीत होना, साथ ही सूर्यनाडी कार्यरत होना
प्रभु श्रीराम सूर्यवंशी हैं । मणिपुरचक्र एवं सूर्यनाडी तेजतत्त्व से संबंधित होते हैं, इसलिए उनकी ओर देखकर तेजतत्त्व प्रतीत हुआ । मूर्तिकार योगीराज श्री रामलला की मूर्ति में सूक्ष्म के ये स्पंदन ले आए हैं । इसलिए उनकी ओर देखकर तेजतत्त्व प्रतीत हुआ । इससे उनकी योग्यता ध्यान में आती है ।
७. मूर्ति की ओर थोडा अधिक समय तक देखने पर प्रथम स्वयं का मूलाधारचक्र जागृत होना तथा उसके उपरांत सहस्रारचक्र जागृत होना
मूर्ति की ओर २ – ३ मिनट देखने पर प्रथम मेरा मूलाधारचक्र जागृत हुआ तथा उसके उपरांत सहस्रारचक्र जागृत हुआ । उस समय मेरी सुषुम्ना नाडी कार्यरत हुई । इसलिए इस मूर्ति में मूलाधारचक्र एवं सहस्रारचक्र को जागृत करने का सामर्थ्य भी है, यह ध्यान में आया । यह मूर्ति में विद्यमान देवत्व का परिणाम है, ऐसा ध्यान में आता है । इससे ज्ञात होता है कि मूर्तिकार ने मूर्ति में प्रत्यक्ष देवत्व लाया है ।
८. मूर्ति में विद्यमान विभिन्न स्पंदनों की मात्रा
९. संपूर्ण विश्व में रामराज्य लानेवाली मूर्ति !
‘श्रीराम की मूर्ति प्रतिस्थापित होने पर संपूर्ण विश्व में रामराज्य आने की प्रक्रिया का आरंभ होगा’, ऐसा लगा । प्रभु श्रीराम देहशुद्धि एवं वातावरण शुद्धि का कार्य एक ही समय आरंभ करेंगे । देहशुद्धि का अर्थ है कि आज मनुष्य में अनीति, अधर्माचरण, दुराचरण, स्वार्थ जैसी रज-तमात्मक प्रवृत्तियां बढी हैं, अतः उनका नाश करना ! प्रथम देहशुद्धि का कार्य पूर्ण होगा, तदुपरांत वातावरण शुद्धि पूर्ण होगी । इस प्रकार शुद्धीकरण का कार्य पूर्ण होने पर सत्त्वगुणी रामराज्य का आरंभ होगा !
श्री रामलला की मूर्ति के दर्शन के कारण यह सब सीखने के लिए मिला । इसके लिए प्रभु श्रीराम एवं मुझे प्रेरणा देनेवाले सच्चिदानंद डॉ. आठवलेजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, पीएच्.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२२.१.२०२४)
‘श्रीराम मंदिर, अयोध्या में प्राणप्रतिष्ठा हेतु श्री रामलला की मूर्ति बनानेवाले मूर्तिकार अरुण योगीराज को यह मूर्ति को बनाने में ६ महीने लगे । इन ६ महीनों में उन्होंने ऋषि की भांति जीवन व्यतीत किया । मूर्तिकार की पत्नी श्रीमती विजेता योगीराज ने बताया कि इस अवधि में उन्होंने सात्त्विक आहार अर्थात फल और अंकुरित अनाज ग्रहण किया ।’ श्री. योगीराज द्वारा बनाई मूर्ति का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘श्री रामलला की सुंदर मूर्ति दिव्य अस्तित्व दर्शाती है । मूर्ति को देखकर यह साक्षात्कार होता है कि श्री रामलला अयोध्या लौट आए हैं ।’’ |