नागा साधुओं के विषय में विलक्षण जानकारी !

‘नागा साधु कुंभ पर्व की प्रतिष्ठा होते हैं । सर्वसामान्य श्रद्धालुओं को इन नागा साधुओं के विषय में कुछ विशेष जानकारी नहीं होती अथवा कुछ भी जानकारी नहीं होती । श्रद्धालुओं को केवल कुंभ पर्व में ही नागा साधुओं के दर्शन होते हैं । उनके रहने का स्थान, उनकी दिनचर्या आदि के विषय में सभी में कौतुहल होता है ।

१. ‘नागा’ शब्द की व्याख्या !

‘नागा’ शब्द संस्कृत भाषा से आया है । नागा का अर्थ है ‘पर्वत !’ पर्वत पर रहनेवाले लोगों को ‘नागा’ कहते हैं । कच्छरी भाषा में नागा का अर्थ है ‘युवा शूर सेनानी !’ साथ ही नागा का अर्थ ‘नग्न’ भी माना जाता है । यह केवल एक अर्थ है । नागा का अर्थ ‘नग्न होना’, ऐसा नहीं है ।

२. प्राचीन काल से अस्तित्व !

‘नागा’ शब्द भारतीय समाज में प्राचीन काल से प्रचलित है । हमारे यहां ‘नागवंश’ एवं ‘नागा’ जाति का उल्लेख है । देश में तो ‘नागा’ नाम से ‘नागालैंड’ नामक राज्य भी है । इतिहास को यदि जान लिया जाए, तो प्राचीन काल से नागवंशी, नागा एवं दशनामी पंथ का अस्तित्व है । ऐसा माना जाता है कि नाग, नाथ एवं नाग परंपरा, ये गुरु दत्तात्रेयजी की परंपरा के अंतर्गत की शाखाएं हैं ।

३. अपना तथा अपने परिवार के सदस्यों का पिंडदान करते हैं नागा साधु !

नागा साधु बनना सरल नहीं होता । उसके लिए अनेक वर्षों की तपस्या होती है । सभी अखाडे अपने-अपने साधुओं को नागा साधुत्व की दीक्षा देते हैं । कुछ नागा साधुओं को ‘भुट्टो’ कहते हैं । सर्वप्रथम नागा साधुओं को ब्रह्मचारी रहना सिखाया जाता है । ब्रह्मचर्य व्रत सीखने के लिए न्यूनतम १२ वर्ष लगते हैं । उसके उपरांत उनका यज्ञोपवीत संस्कार होता है । नागा साधु अपना तथा अपने परिवार के सदस्यों का पिंडदान करते हैं । उसे ‘बिजवान’ कहते हैं । उसके उपरांत न उनका कोई घर होता है और न कोई संपत्ति ! वे भूमि पर सोते हैं । नागा साधु सर्वसामान्य लोगों में नहीं रहते । वे निर्जन स्थानों पर रहते हैं । कुछ नागा साधु कपडे नहीं पहनते । कुछ नागा साधु लंगोट पहनते हैं । वे शरीर पर भस्म लगाते हैं । वे एक दिन में केवल ७ घरों में भिक्षा मांग सकते हैं । सबसे विशेष बात यह कि वे हथियार चलाने में कुशल होते हैं । जुना अखाडे में नागा साधुओं की सर्वाधिक संख्या है । माना जाता है कि नागा साधुओं के पास अनेक अद्भुत शक्तियां होती हैं, जिसका उपयोग वे केवल जनकल्याण हेतु ही करते हैं । नागा साधुओं के शव पर अंतिमसंस्कार नहीं किए जाते, अपितु उनके शव को सिद्धयोग की मुद्रा में बिठाकर उन्हें भूसमाधि दी जाती है ।’

(संदर्भ : जालस्थल)

नागा साधुओं की शोभायात्रा के विषय में अंग्रेजों द्वारा व्यक्त गौरवोद्गार, उन्हें ‘अश्लील’ कहनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादियों के मुंह पर तमाचा !

अंग्रेज अधिकारी ने वर्ष १८८८ में ब्रिटिश संसद को भेजे पत्र में लिखा था, ‘नागा साधुओं की शोभायात्रा अश्लीलता नहीं फैलाती । वह सम्पूर्णतया धर्म को समर्पित होती है । अखाडों की परम्पराओं का पालन किया जाता है ।’

– सनातन का ग्रंथ ‘कुम्भपर्व की महिमा’