वैश्विक जनसंख्या का विचार किया जाए, तो हिन्दू जनसंख्या ईसाइयों तथा मुसलमानों से कम है । भले ही ऐसा हो, तब भी विश्व के सबसे बडे धार्मिक समागम का उत्सव हिन्दुओं का है । विशेषतापूर्ण एवं दैवीय महिमा प्राप्त यह उत्सव है महाकुम्भ पर्व ! विश्व में कहीं भी लोगों के एकत्रित होने के संदर्भ में विचार करें, तो प्रयागराज महाकुम्भ पर्व में इस वर्ष सभी देशों के मिलाकर लगभग ४५ करोड लोग आएंगे, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है । जबकि प्रतिवर्ष मक्का में संपन्न होनेवाली हजयात्रा में पूरे वर्ष में अधिक से अधिक २ करोड लोग आते हैं । इससे ऐसा कहा जा सकता है कि २१ वीं शताब्दी में जितने मुसलमान मक्का आए, उतने लोग १३ जनवरी से २६ फरवरी, इस केवल डेढ मास की अवधि में हिन्दुओं के महाकुम्भ पर्व में आनेवाले हैं । प्रति ४ वर्ष में एक बार होनेवाले ऑलंपिक का अर्थात ‘खेलों के महाकुम्भ’ का विचार किया जाए, तो हाल ही में संपन्न पैरिस ऑलंपिक में १ करोड से भी अल्प लोग आए । इससे प्रयागराज महाकुम्भ के विस्तार का अनुमान लगाया जा सकता है ।
कुम्भ पर्व का इतिहास अधिकांश लोगों को ज्ञात है । अमेरिका स्थित प्रसिद्ध हिन्दू लेखक नीलेश ओक इस संदर्भ में बताते हैं कि बृहस्पति ग्रह को सूर्य की एक परिक्रमा करने में १२ वर्ष लगते हैं । कुम्भ पर्व का बृहस्पति ग्रह से सीधा संबंध होने के कारण पूर्णकुम्भ एक तप में एक बार होता है । चंद्रमा, सूर्य एवं बृहस्पति, इन तीनों की गतिविधियों का एकत्रित विचार किया जाए, तो हम इतिहास की निश्चित घटिका तक सहजता से पहुंच सकते हैं । इसी का विचार कर भारतीय सभ्यता के अतिप्राचीन होने की कालगणना की जा सकती है तथा इस प्राचीन भारतीय धर्म का कुम्भ पर्व एक अभिन्न अंग है । सनातन हिन्दू धर्म की निरंतरता का साक्षी है कुम्भ पर्व !
विदेशी ‘हिन्दू’ !
ऐसी एक मान्यता है कि कुम्भ पर्व के समय वैश्विक आध्यात्मिक ऊर्जा प्रयागराज में एकत्रित होती है तथा सभी के शरीर, मन एवं आत्माओं को शुद्ध करती है । सहस्रों विदेशी लोगों के भी केवल शरीर ही नहीं, अपितु श्रद्धा एवं भक्ति से ओतप्रोत उनके हृदयमंदिर भी कुम्भ पर्व में नहाकर निकलते हैं । इस कुम्भ पर्व के कारण हिन्दू धर्म एवं भारत की ओर आकर्षित वर्तमानकालीन एक बडा ज्ञात उदाहरण हैं प्रसिद्ध जर्मन लेखिका मारिया वर्थ ! वर्ष १९८० में अपनी युवावस्था में जर्मनी से ऑस्ट्रेलिया जाने निकली मारिया कुछ दिन के लिए भारत आई थीं । सौभाग्यवश उस समय हरिद्वार में कुम्भ पर्व चल रहा था । इस जर्मन युवती ने कुम्भ पर्व का अवलोकन किया तथा उससे वह वहां के संत-महात्माओं के सत्संग में इतना डूब गई कि वे आगे जाकर ऑस्ट्रेलिया कभी गई ही नहीं, अपितु शाश्वतरूप से भारत की हो गईं । हिन्दू धर्म में समाहित उपासना-पद्धतियों से तथा अध्यात्म से मारिया वर्थ इतनी प्रभावित हुईं कि हिन्दुओं की साधनापद्धति को स्वीकार करने के साथ ही हिन्दू धर्मप्रचार के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया । तलवारों अथवा लालच के बल पर मानवसमूह को अपने पंथ में खींचनेवालों के सामने हिन्दू धर्म की महिमा ऐसे उदाहरणों से और अधिक चमक उठती है ।
सबसे प्राचीन एवं ईश्वर-निर्मित हिन्दू धर्म का प्रतीक महाकुम्भ विगत सहस्रों वर्षों में हुए आक्रमणों को परास्त कर टिका रहा है । हिन्दू धर्म का अत्यंत सूक्ष्मता से अध्ययन करनेवाले प्रसिद्ध फ्रेंच पत्रकार फ्रांसुआ गोतिए कहते हैं कि ‘आज भी भारत में व्यवहारिक आशा-आकांक्षाओं का त्याग करनेवाले सहस्रों साधु-संत हैं तथा वे कुम्भ पर्व का लाभ उठाने के लिए तथा साधना करने के लिए वहां एकत्रित होते हैं । सिकंदर से लेकर औरंगजेब तक हिन्दुओं पर सहस्रों आक्रमण हुए; परंतु तब भी कुम्भ पर्व की यह गंगा अनवरत बहती रही !
हिन्दुओं की संतुष्टि का व्यासपीठ !
गोतिए द्वारा उठाया गया यह बहुत ही संवेदनशील सूत्र है । किसी भी सभ्यता की सांस शास्त्रों एवं शस्त्रों पर आधारित होती है । हिन्दू धर्म का विचार किया जाए, तो उसे क्रमशः ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, इन दैवी सूत्रों में पिरोया जा सकता है । हिन्दुओं पर किए आक्रमणों को नष्ट करने में कुम्भ पर्वों ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई है । नागा साधु ब्राह्मतेज सहित क्षात्रतेज के भी प्रतीक रहे हैं । भिन्न-भिन्न उपासना-पद्धतियां अपनानेवाले तथा इष्टदेवताओं की उपासना करनेवाले साधु-संतों के अखाडों का योगदान भी अमूल्य रहा है । विगत ४०-५० वर्षों में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को जो बल मिला, उसमें कुम्भ पर्वों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । वर्ष १९८६ के हरिद्वार कुम्भ पर्व में संपन्न धर्मसंसद के द्वारा इस आंदोलन ने गति पकड ली । वर्ष २०१९ के हरिद्वार के कुम्भ पर्व में भी धर्मसंसद तथा आंदोलनों के माध्यम से श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए हिन्दुओं ने निर्णायक दबाव बनाया था । उसके कारण ही ५५० वर्ष उपरांत अयोध्या में प्रभु श्रीरामचंद्रजी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा हुई ।
इस वर्ष प्रयागराज में होनेवाले महाकुम्भ में हिन्दुओं के सामने मुंह खोलकर खडी समस्याओं का भी सामना करना होगा । राष्ट्रव्यापी कठोर ‘लव जिहाद कानून’ की नितांत आवश्यकता हिन्दू जगत जानता है । इसके अतिरिक्त वक्फ कानून के राक्षसी चंगुल से हिन्दुओं की भूमि एवं भारतभूमि को संरक्षित करने के लिए भी कमर कसनी चाहिए । इस दृष्टिकोण से हिन्दू समाज को जागृत करने हेतु जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्यजी महाराज की संस्थाओं द्वारा खडे किए गए ध्यानाकर्षक फलकों ने इसका बिगुल बजाया है । हिन्दुओं की पवित्र श्रद्धा को तिनके के समान मानकर तथा पैरोंतले कुचलकर म्लेंच्छ राजाओं ने हमारे सहस्रों मंदिर बनाए । उनके आज के कथित प्रार्थनास्थलों में, इतिहास में हिन्दुओं पर किए अत्याचारों के प्रतीक हैं । उनपर संवैधानिक हथौडा चलने हेतु धर्म का अधिष्ठान आवश्यक है । बांग्लादेश में हिन्दू धर्म पर हरी छाया और अधिक घनी होती जा रही है । ‘इस्कॉन’ के सदस्य चिन्मय दास प्रभु की हुई अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर पिछले ५ महिनों में हिन्दुओं पर किए ६ सहस्र से अधिक आक्रमणों को साधु कभी नहीं भूल सकते । हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने अस्तित्व की बाजी लगानेवाले साधुओं के इस प्रयागराज महाकुम्भ में उस दिशा में भी हमारी मांगें, नीति, दिशा तथा प्रारूप बनाया जाना चाहिए । महाकुम्भ में १० सहस्र से अधिक आध्यात्मिक एवं राष्ट्रप्रेमी संगठन सम्मिलित हो रहे हैं । हिन्दू- गंगा, यमुना एवं सरस्वती, इन नदियों के संगम पर स्थित तीर्थाें के राजा प्रयागराज में १४४ वर्ष उपरांत होनेवाले महाकुम्भ पर्व के द्वारा हिन्दू धर्म के शाश्वत कवच की परंपरा अखंडित बहती रहे ।
महाकुम्भ पर्व से, हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाकर, उन्हें निर्णायक दिशा देनेवाला हिन्दू संगठन बने, यही अपेक्षा ! |