नेताओं और संतों में मूलभूत अंतर !

‘चुनाव के समय राजनेता, ‘यह देंगे, वह देंगे’, ऐसा कहते हैं और उनमें से बहुत कम भौतिक सुख देते हैं । इसके विपरीत, संत एवं सनातन संस्था सर्वस्व का त्याग करना सिखाकर चिरंतन आनंद देनेवाली ईश्वरप्राप्ति कराते हैं ।’
स्वेच्छा नहीं, ईश्वरेच्छा श्रेष्ठ है !
‘ऐसा प्रतीत होना कि पुनः जन्म ही न हो अथवा भक्ति करने के लिए बार-बार जन्म हो, ये दोनों ही स्वेच्छा है । इससे आगे का चरण है ऐसा लगना कि सब कुछ ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो !’
कहां वैज्ञानिक और कहां ऋषि- मुनि !
‘कहां अन्य ग्रह पर जानेवाले यान का आविष्कार करने पर विज्ञान की सराहना करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी और कहां सूक्ष्म देह से विश्व ही नहीं, सप्तलोक एवं सप्तपाताल में भी एक क्षण में पहुंचनेवाले ऋषि-मुनि !’
बुद्धिप्रमाणवादियों की बुद्धि की सीमा !
‘जो संत कहते हैं, वह सब झूठ है’, ऐसा बुद्धिप्रमाणवादी कहते हैं । यह वैसे ही है; जैसे किसी शिशुमंदिर के बालक का यह कहना कि ‘डॉक्टरेट’ प्राप्त व्यक्ति जो कहते हैं, वह सब झूठ है !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले