१. श्रद्धालुओं से नमस्कार करवाना अथवा न करवाना, यह सन्तों का अधिकार है !
‘पर्वस्नान के उपरान्त अखाडे में लौट रहे साधु-सन्तों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड लगती है । कुछ नागा साधु क्षणभर के लिए रुककर चरणों पर लेटनेवाले भक्तों को आशीर्वाद देते हैं तथा कुछ साधु किसी को निकट भी नहीं आने देते । कुछ साधु श्रद्धालुओं को अपने से दूर रखने के लिए शस्त्र उठाते हैं । कुछ साधु कहते हैं, ‘मेरे चरणस्पर्श मत करो, मेरी अभी लम्बी तपस्या शेष है ।’

२.भक्तिमार्गी ही नहीं, हठयोगी साधुओं के दर्शन हेतु भी पंक्तियां लगना
कुम्भ मेले में हठयोगी साधु भी सम्मिलित होते हैं । वहां केवल एक पैर पर खडे रहनेवाले, अखण्ड शीर्षासन करनेवाले, मौन धारण करनेवाले, केवल वायु पर जीवित रहनेवाले आदि अनेक प्रकार के हठयोगी साधु होते हैं तथा उनके दर्शन हेतु भी भक्तिमार्गी श्रद्धालु पंक्तिबद्ध खडे रहते हैं ।’ (दैनिक ‘महानगर’, ५.९.१९९१)
३. कुम्भ मेले में श्रद्धालुओं की श्रवणभक्ति को प्रेरणा देनेवाले धर्म, अध्यात्म इ. विषयों पर साधु-सन्तों का सरस मार्गदर्शन !
कुम्भ मेले में सन्तदर्शन समारोह श्रद्धालुओं की दर्शनभक्ति को प्रेरणा देता है, जबकि साधु-सन्तों के धर्म, अध्यात्म, रामायण, भागवत इत्यादि विषयों पर सरस प्रवचन, व्याख्यान श्रद्धालुओं की श्रवणभक्ति को प्रेरणा देते हैं । कुम्भ स्थल पर लगभग १०,००० मण्डपों में से अधिकांश मण्डपों में प्रतिदिन धार्मिक विषयों पर मार्गदर्शन होता रहता है ।
४. दिन-रात चलनेवाले अन्नछत्र अर्थात कुम्भ मेले के श्रद्धालुओं के लिए विविध सम्प्रदायों द्वारा प्रदान की गई सुविधा !
‘कुम्भ मेले के प्रत्येक सम्प्रदाय के मण्डप अथवा अखाडे में एक समान बात है और वह है श्रद्धालुओं के लिए दिन-रात चलनेवाले अन्नछत्र ! यह भी कह सकते हैं कि ऐसा कोई अखाडा ही नहीं होगा, जहां अन्नछत्र न चल रहा हो । कुम्भक्षेत्र में ऐसे अन्नछत्र अनेक स्थानों पर हैं । इससे लाखों श्रद्धालुओं के भोजन-पानी की व्यवस्था उचित ढंग से होती है । अन्यथा पर्वस्नान के लिए एकत्रित हुए ७५ लाख से अधिक श्रद्धालुओं को अपने-अपने चूल्हे जलाने पडते, तो कितनी बडी भूमि की आवश्यकता पडती !’
– डॉ. दुर्गेश सामंत, भूतपूर्व सम्पादक, ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिक (२८.९.२००३).