इंदौर (मध्य प्रदेश) में प.पू. भक्तराज महाराजजी का गुरुपूर्णिमा उत्सव भावपूर्ण एवं उत्साहपूर्ण वातावरण में संपन्न !

सनातन संस्था के श्रद्धास्रोत एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी का गुरुपूर्णिमा उत्सव २ एवं ३ जुलाई को यहां के भक्तवात्सल्य आश्रम के निकट स्थित नवनीत गार्डन में भावपूर्ण एवं उत्साहपूर्ण वातावरण में मनाया गया ।

परिपूर्ण सेवा करनेवाले एवं पितृवत प्रेम करनेवाले श्री.अरविंद सहस्रबुद्धे एवं चिकाटी से व्यष्टि एवं समष्टि साधना करनेवालीं श्रीमती वैशाली मुंगळे संतपद पर विराजमान !

पू. सहस्रबुद्धेजी के जीवन में साधना के कारण हुए परिवर्तन, उनके द्वारा स्थिरता से सर्व कठिन प्रसंगों का सामना करना, सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति उनकी श्रद्धा आदि प्रसंग सुनकर उपस्थित लोगों का भाव जागृत हुआ ।

अधिक मास में सनातन के ग्रंथ एवं लघुग्रंथ अन्यों को देकर सर्वश्रेष्ठ ज्ञानदान का फल प्राप्त करें !

‘१८.७.२०२३ से १६.८.२०२३ के समयावधि में ‘अधिक मास’ है ।’ इस मास में दान करने से उसका फल अधिक मिलता है । इसलिए इस काल में वस्त्रदान, अन्नदान व ज्ञानदान करने का विशेष महत्त्व है । भारतीय संस्कृति में ‘ज्ञानदान’ को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।

सनातन के ग्रंथमाला – शीघ्र गुरुप्राप्ति एवं अखण्ड गुरुकृपा होने हेतु क्या करें, यह समझ लें !

कर्म, भक्ति तथा ज्ञानयोग का त्रिवेणी संगम ‘गुरुकृपायोग’, ईश्वरप्राप्ति का सरल मार्ग है । प्रस्तुत ग्रंथ में गुरुकृपायोग का महत्त्व, अन्य योगमार्गाें की तुलना में इस योगमार्ग से होनेवाली शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति ऐसे विविध अंगों के विषय में मार्गदर्शन किया गया है

सनातन के दिव्य ग्रंथों के विविध सेवाओं के लिए साधकों की आवश्यकता !

विविध भाषाओं में लिखित सामग्री को संकलित करना, मुद्रित शोधन (प्रूफ रीडिंग) तथा संरचना (फॉरमेटिंग) करने की सेवा भी उपलब्ध है । आपकी रुचि और क्षमता जिस क्षेत्र में है उसके अनुरूप आप सेवा कर सकते हैं ।

गंगास्नान,श्रीहरिका नामोच्चारण क्या मनुष्यको पापमुक्त करते हैं ?

साधनाको कोई पर्याय नहीं है; कोई भी सुगम, छोटा मार्ग (short-cut) नहीं है । चित्तशुद्धिके लिये भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग आदि साधनाएं शास्त्राेंमें बतायी गयी हैं । वैसा आचरण कर बडा लाभ होगा; केवल गंगास्नान करनेसे अथवा हरिनामोच्चारणसे उतना और वैसा लाभ नहीं होगा ।

साधना में प्रगति होने हेतु ‘शरणागतभाव’ का अनन्यसाधारण महत्त्व होने से ‘शरणागति’ निर्माण होने के सर्वाेच्च श्रद्धास्रोत अर्थात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

शरणागत साधक के स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन का दायित्व भगवान (गुरु) स्वीकारते हैं । ‘शरणागति’ चित्त को शुद्ध एवं विशाल बनानेवाली कृति है ।