पैकेट बंद अन्न, अन्न है ही नहीं …!
जिसका विज्ञापन करना पडे, वह अन्न है ही नहीं । क्या रोटी, चावल, दाल, देसी घी, भाजी-तरकारी आदि का विज्ञापन करना पडता है ? प्रकृति से प्राप्त व सहस्रों वर्षाें से मनुष्य जो ग्रहण करते हैं, वही है खरा अन्न
जिसका विज्ञापन करना पडे, वह अन्न है ही नहीं । क्या रोटी, चावल, दाल, देसी घी, भाजी-तरकारी आदि का विज्ञापन करना पडता है ? प्रकृति से प्राप्त व सहस्रों वर्षाें से मनुष्य जो ग्रहण करते हैं, वही है खरा अन्न
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रह-दोष निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना बताई जाती है । इस लेख द्वारा उपासना का उद्देश्य व उसका महत्त्व समझ लेंगे ।
इस प्रकार भारतमाता के अस्तित्व पर संकट बने धर्मांधों, नक्सलियों एवं देशद्रोहियों का फालतू लाड-प्यार बंद करने के लिए प्रभावी हिन्दू-संगठन खडा कर केंद्र सरकार का साथ देना हमारा धर्मकर्तव्य है ।’
‘भारत के टुकडे न हों’, इसके लिए हिन्दुओं द्वारा जनजागरण किया जाना क्या ‘हेट स्पीच’ है ?’ तथा कोई हिन्दू ‘अपना देश एवं धर्म बचाने के विषय में बोल रहा हो, तो क्या वह ‘हेट स्पीच’ है ?’
भारत की प्राचीन शिक्षाप्रणाली की विशेषता यह थी कि बालक का ६ – ७ वर्ष की अवस्था में उपनयन संस्कार कर दिया जाता था । यज्ञोपवीत हो जाने पर बालक २५ वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण करता था ।
विद्यार्थी गुरुकुलों में १२ से १६ वर्ष रहते थे, इस कारण उनमें परिवार जैसा ही संबंध बन जाता था । शिक्षक स्वयं त्यागी, सदाचारी, विद्वान और निरहंकारी होते थे । शिष्य आचार्य को पितासमान मानते थे । शिष्य का कर्तव्य होता था कि वह गुरु के प्रति द्रोह न करे ।
वेदों में उल्लेखित कुछ मंत्र इस बात को रेखांकित करते हैं कि कुमारियों के लिए शिक्षा अपरिहार्य एवं महत्त्वपूर्ण मानी जाती थी । स्त्रियों को लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार की शिक्षाएं दी जाती थीं । गोभिल गृहसूत्र में कहा गया है कि अशिक्षित पत्नी यज्ञ करने में समर्थ नहीं होती थी ।
चातुर्मास को उपासना एवं साधना हेतु पुण्यकारक एवं फलदायी काल माना जाता है । आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक अथवा आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चार महीने के काल को चातुर्मास कहते हैं ।
वाराणसी के जैतपुरा स्थित मां बागेश्वरी धाम के प्रांगण में अखिल भारतीय सनातन समिति द्वारा श्रीराम कथा का शुभारंभ हुआ ।
शिविर में नामजप का महत्त्व एवं लाभ, स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया का महत्त्व, स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी, स्वसूचना पद्धति, स्वसूचना सत्र तथा साथ में आध्यात्मिक उपचार और गुरुपूर्णिमा का महत्त्व व सत्सेवा इत्यादि विषय विस्तार से बताए गए ।