१. आरोपी को स्थानबद्ध रखना पाश्चात्य संकल्पना
‘आरोपी को स्थानबद्ध (नजरबंद) रखने की संकल्पना अमेरिका एवं पाश्चात्य देशों में १७ वीं शताब्दी में आई । वर्ष १६३३ में गैलिलियो ने असफल विद्रोह किया था, उसके कारण उस पर अभियोग चलाकर उसे उसके घर में ही स्थानबद्ध रखा गया था । स्थानबद्ध रखने का अर्थ है उस व्यक्ति को उसके घर से बाहर न जाने देकर घर में ही बंद कर रखना ! अर्थात वास्तव में २० वीं शताब्दी में अमेरिका एवं पाश्चात्य देशों में इस पद्धति का क्रियान्वयन किया गया । नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए बडा संघर्ष किया । उस अवधि में उन्हें अनेक बार कारागार में रखा गया । कारावास में होते हुए भी वे कोलकाता महापालिका के महापौर के रूप में चुनकर आए थे, जिसके कारण अंग्रेजों को उन्हें कारागार से छोडना पडा था । अंग्रेजों में सदैव उनका भय था । उसके कारण वर्ष १९४० में अंग्रेजों ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को उनके घर में ही स्थानबद्ध कर रखा था । १६.१.१९४१ को स्थानबद्ध होने के समय ब्रिटिश पुलिस को झांसा देकर वे वहां से भाग गए । उसके उपरांत पेशावर होते हुए वे अफगानिस्तान चले गए तथा वहां से मॉस्को होते हुए वे सीधे बर्लिन पहुंचे; वहां वे हिटलर से भी मिले थे ।
२. स्थानबद्धता के विषय में आपराधिक पद्धति की प्रक्रिया संहिता में स्थानबद्धता की परिभाषा न होते हुए भी शहरी नक्सलियों को स्थानबद्ध रखने का सर्वाेच्च न्यायालय का आदेश
वर्ष १९४७ से पूर्व अथवा उसके उपरांत स्थानबद्धता की प्रशासनिक अथवा न्यायालयीन व्याख्या नहीं की गई है, साथ ही आज भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता में स्थानबद्धता की व्याख्या नहीं है । उसके कारण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पत्र में भी उसके संबंध में व्याख्या दिखाई नहीं देती । ऐसी स्थिति में सर्वाेच्च न्यायालय ने वर्ष २०१८ के उपरांत शहरी नक्सलियों को उनके घर में स्थानबद्ध रखने का आदेश दिया ।
कश्मीर में जिहादी आतंकियों की गतिविधियां सर्वाेच्च शिखर पर थीं । उसके कारण तत्कालीन सरकार से सैकडों धर्मांधों को बंदी बनाया गया । उसके उपरांत उनमें से कुछ प्रमुख व्यक्तियों को सरकार ने उनके घर पर ही स्थानबद्ध कर रखा था । इस प्रकार से सरकार ने अपने व्यय (खर्चे) से (हिन्दुओं से मिले कर के माध्यम से मिले पैसों से) उन्हें बहुत दिनों तक पाला, साथ ही उन्हें पुलिस सुरक्षा भी प्रदान की । उनमें से यासीन मलिक जैसे धर्मांध विभाजनवादी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जाते थे तथा वहां जाकर भारत के विरुद्ध लडाई में भाग लेकर पुनः अपने स्थानबद्धता के स्थान पर वापस आ जाते थे ।
३. शहरी नक्सलियों को स्थानबद्ध रखने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
नक्सलियों ने एक नई चतुराई दिखाई । उन्होंने सरकार के विरुद्ध आंदोलन चलाते समय शहरी क्षेत्र के समर्थक प्राप्त किए । ३१.१२.२०१७ को पुणे में ‘एल्गार परिषद’ का आयोजन किया गया था । वहां कुछ लोगों ने भडकाऊ भाषण दिया, जिससे कोरेगांव-भीमा में बडा दंगा हुआ । उसके उपरांत पुलिस ने कुछ लोगों को बंदी बनाया । उनसे की गई पूछताछ में शहरी क्षेत्र में रहनेवाले कुछ शहरी नक्सलियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने का षड्यंत्र रचे जाने की चौंकानेवाली जानकारी सामने आई । उसके कारण पुलिस ने कुछ नक्सली कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया । विशेष बात यह कि ये सभी लोग प्रतिष्ठित थे । उनमें गौतम नवलखा का भी समावेश था । उन्हें बंदी बनाए जाने के उपरांत उनकी कानूनी सहायता करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से बडे-बडे अधिवक्ता सीधे दौडे चले आए । उसके उपरांत सर्वाेच्च न्यायालय ने उनकी न्यायालयीन हिरासत रद्द कर उन्हें स्थानबद्ध रखने का आदेश दिया । वास्तव में यहां भी ‘स्टेट्स कॉन्टी’ (यथास्थिति रखने का) आदेश दिया गया ।
भारत की आपराधिक प्रक्रिया संहिता में कहीं भी स्थानबद्ध (हाउस अरेस्ट) रखने की संकल्पना नहीं है तथा उसकी व्याख्या भी नहीं की गई है । कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद १४२ के अनुसार संपूर्ण न्याय हो; इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने विशेषाधिकारों का उपयोग कर शहरी नक्सलियों को उनके घर पर ही स्थानबद्ध रखा । पहले न्यायाधीश उदय लळीत एवं न्यायाधीश जोसेफ की दो सदस्यीय पीठ ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद १६७ के विषय में निर्णय देते समय ‘आरोपी की बीमारी, आयु, उस पर लगाए गए आरोप तथा उसका पूर्वचरित्र, इन सभी बातों पर विचार कर न्यायालय ऐसा आदेश दे सकता है’, ऐसा कहा था । यहां भारत से कश्मीर को तोडने के लिए पूरे जीवन देशद्रोही गतिविधियां चलानेवाले विभाजनवादी तथा माओवादी नक्सलियों के शहरी कार्यकर्ताओं को यह छूट दी गई । क्या यह भेदभाव नहीं है ? क्या इसी के लिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने हमें यह समानता दी है ? स्थानबद्धता में रखे गए लोगों का व्यय (खर्च) कौन उठाएगा ?, साथ ही न्यायालय में उनके अभियोग लडने के लिए देश के प्रसिद्ध अधिवक्ता उनके साथ थे ।
४. स्थानबद्धता में रखे गए आरोपियों को पैसों का भुगतान करने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
नवलखा को १४.४.२०२० के उपरांत १३.११.२०२२ तक विभिन्न कारागारों में रखा गया था । सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण १०.११.२०२२ से नवलखा को मुंबई के तळोजा कारागार में स्थानबद्ध रखा था । नवलखा के अनुरोध पर यह स्थानबद्धता अनेक बार बढाई गई । नवलखा ने १७.२.२०२३ को नई मुंबई के कारागार से सीधे देहली में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था; परंतु उसके उपरांत उन्होंने उनके अधिवक्ता के द्वारा यह अनुरोधपत्र वापस ले लिया ।
‘आज भी गौतम नवलखा से ६६ लाख रुपए मिलने शेष हैं’, ऐसा अतिरिक्त महाधिवक्ता एस.वी. राजू ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय को बताया । उसके उपरांत २६.४.२०२३ को न्यायालय ने नवलखा को ४८ घंटे में सरकार के पास ८ लाख रुपए जमा करने का आदेश दिया । इस समय ‘गौतम नवलखा को १०.११.२०२२ से पुलिस की सुरक्षा तथा स्थानबद्ध रखने का आदेश दिया गया था । उसके अनुसार उन्हें पुलिस की सुरक्षा भी प्रदान की गई थी । उसकी भरपाई के रूप में उन्होंने न्यायालय के आदेश के अनुसार २ लाख ४० सहस्र रुपए का भुगतान किया है । उसके उपरांत सर्वाेच्च न्यायलय की दो सदस्यीय पीठ के न्यायाधीश जोसेफ एवं न्यायाधीश नागरत्ना ने उन्हें पुनः ४८ घंटे में ८ लाख रुपए का भुगतान करने के आदेश दिए थे ।
५. देश में सत्ता परिवर्तन होने से कश्मीर के ३ पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्थानबद्ध रखने का आदेश
वर्ष २०१४ में देश में सत्ता परिवर्तन हुआ । नई सरकार ने विभाजनवादियों को पालना बंद किया, साथ ही उनकी सुरक्षा छीनकर उन्हें कारागार में डाल दिया । काल कैसे प्रतिशोध लेता है, यह आपको निम्न उदाहरण से समझ में आएगा । केंद्र सरकार ने अनुच्छेद ३७० तथा अनुच्छेद कश्मीर को विशेष राज्य की श्रेणी में अंतर्भूत करनेवाले अनुच्छेद ‘३५-अ’ निरस्त किया । उसके उपरांत धर्मांधों ने धमकी दी थी कि ‘अब कश्मीर में रक्त की नदियां बहेंगी ।’ उसके कारण केंद्र सरकार ने कश्मीर के ३ पूर्व मुख्यमंत्रियों को अर्थात ओमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला एवं मेहबूबा मुफ्ती को स्थानबद्ध कर रखा था ।
६. कोरोना महामारी के काल में कारागृह में संभावित कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए खतरनाक कैदियों को जमानत पर छोडा जाना
आज के समय में देश के प्रत्येक कारागार में उनकी क्षमता से अधिक कैदी हैं । भारत में उपकारागार, महिला कारागार, विशेष कारागार, जिला कारागार, खुले कारागार आदि कारागार हैं । उनमें कैदियों की बडी संख्या है । ‘कोविड-१९’ महामारी के काल में संभावित कोरोना संक्रमण रोकने के लिए विधि आयोग ने केंद्र सरकार से कुछ कैदियों को छोडने का अनुरोध किया था । उसके अनुसार अनेक खतरनाक कैदियों को जमानत पर छोडा गया था ।
इस प्रकार भारतमाता के अस्तित्व पर संकट बने धर्मांधों, नक्सलियों एवं देशद्रोहियों का फालतू लाड-प्यार बंद करने के लिए प्रभावी हिन्दू-संगठन खडा कर केंद्र सरकार का साथ देना हमारा धर्मकर्तव्य है ।’
श्रीकृष्णार्पणमस्तु !
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय (१४.५.२०२३)