करवा चौथ

हिन्दू संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है । करवा चौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय निवेदन तथा एक-दूसरे के लिए अपार प्रेम, त्याग, एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है ।

स्त्रियो, स्त्रीवाद की शेखी बघारने की तुलना में धर्मबंधनों का पालन कर आनंदी रहें !

हिन्दू नारियो, भारत पर धर्मप्रेमियों एवं राष्ट्रप्रेमियों का राज्य होने पर हमारा देवधर्म, संस्कृति, इतिहास, भाषा, अस्मिता, आबालवृद्ध और स्त्रियों का रक्षण एवं पालन होगा, यह परम सत्य समझ लें ।

स्त्री शक्ति का विनाश टालने हेतु हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण आवश्यक !

महाविद्यालयों और गृहनिर्माण संस्थाओं में महिलाओं का संगठन बनाकर किसी महिला पर अत्याचार होने पर उसके विरुद्ध संगठित रूप से कार्यवाही करें !

छेडखानी के प्रसंग में बिना डरे नराधमों का प्रतिकार करें !

दुर्बल व्यक्ति की सर्वत्र निंदा की जाती है, इसे ध्यान में लेकर स्वयं के शरीर और मन को प्रतिकारक्षम बनाएं !

हिन्दुओ, ‘लव जिहाद’ का विरोध करने के साथ ही हिन्दू युवतियों का धर्मांधों के साथ विवाह करने पर प्रतिबंध लगानेवाला कानून बनाने की मांग करें !

इजरायल में ज्यू वंशियों की सत्ता प्रस्थापित होते ही ज्यू राज्यकर्ताओं ने वहां की युवतियों द्वारा धर्मांध अरबों के साथ विवाह करने पर प्रतिबंध लगानेवाला कानून बनाया था, यह ध्यान में रखिए !

महिलाएं धर्मपरंपराओं का कठोर पालन करें !

आज संस्कार एवं संस्कृति मृतप्राय: हो गई है । घर में सभी सुविधाएं होते हुए भी वहां संतुष्टि नहीं है । घर की स्त्री द्वारा धर्माचरण न करने से ऐसी घटनाएं हो रही हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

तीर्थस्वरूप दादा और श्रीमती ताई के कारण हमारे घर का वातावरण आध्यात्मिक था । उनके निरंतर सहज वार्तालाप और आचरण के कारण हम पर साधना के संस्कार हुए ।

‘एसएसआरएफ’ के साधकों द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित धार्मिक धारावाहिक ‘महाभारत’ में श्रीकृष्ण की भूमिका करनेवाले एक सुप्रसिद्ध अभिनेता, इस धारावाहिक के निर्देश और संहितालेखिका से हुई भावस्पर्शी भेंट !

आध्यात्मिक प्रगति होने हेतु ‘स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन, नामजप एवं सत्सेवा’, ये साधना के प्रमुख चरण हैं । आप ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप करना आरंभ कर सकते हैं ।

‘निर्विचार’ नामजप का साधकों और संतों पर होनेवाला परिणाम

 ‘निर्विचार’ नामजप के संदर्भ में की गई शोधपूर्ण जांच से ध्यान में आता है कि ‘निर्विचार’ जप आध्यात्मिक पीडा रहित एवं आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत से अधिक है, ऐसे साधकों के लिए उपयोगी है ।

चित्तशुद्धिके लिये एक अलग विचार

इंद्रियां, पञ्चतन्मात्रा आदिमें व्यक्त होनेवाले चैतन्यके अंशको भी देवता कहनेका प्रघात है; यथा वाणीकी देवता अग्नि, कानोंमें दिक देवता, आंखोंकी सूर्य, त्वचाकी वायु, चरणोंकी उपेन्द्र, हाथोंकी इन्द्र आदि ।