करवा चौथ

विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना कर भगवान रजनीनाथ को (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं ।

कंदील का आकार सात्त्विक क्यों होना चाहिए ?

लंबवृत्त आकार का कंदील निराकार होने के कारण तमोगुणी शक्तियों के लिए इस प्रकार के कंदील से तमोगुण का प्रक्षेपण करना संभव नहीं होता ।

Navaratri : नवरात्रि की सप्तमी तिथि का महत्व

नवरात्रि की सप्तमी तिथि को श्री दुर्गादेवी के असुर, भूत-प्रेत इत्यादि का नाश करनेवाले ‘कालरात्रि’ रूप की पूजा की जाती है।

Navaratri : देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि ।

श्री दुर्गादेवी नवरात्रि के नौ दिनों में संसार का तमोगुण घटाती हैं और सत्त्वगुण बढाती हैं ।

Navaratri : नवरात्रि में जागरण तथा उपवास करने का महत्त्व

उपवास करने से व्यक्ति का रजोगुण तथा तमोगुण घटता है तथा देह की सात्त्विकता बढती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण से शक्तितत्त्व को अधिक ग्रहण करने के लिए सक्षम बनता है ।

स्वबोध, मित्रबोध एवं शत्रुबोध

आज भी एक ओर विश्व को ईसामय बनाने का षड्यंत्र सर्वत्र जोर-शोर से चल रहा है, तो दूसरी ओर ‘गजवा-ए-हिन्द’ आदि विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत विश्व को इस्लाममय बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं । इस वैश्विक परिस्थिति में हिन्दू विचारक, अध्येता स्वबोध एवं शत्रुबोध इन संज्ञाओं के प्रचलन के द्वारा हिन्दू समाज में जनजागरण का अभियान चला रहे हैं

नवदुर्गा

किसी भी देवता के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी  ज्ञात होने पर उनके विषय में श्रद्धा वृद्धिंगत होने में सहायता होती है । यही बात ध्यान में रखकर नवरात्रि के निमित्त शक्तिपूजकों के लिए एवं शक्ति की सांप्रदायिक साधना करनेवालों के लिए इस लेख में देवी के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय जानकारी दे रहे है ।

Navaratri : अखंड दीपप्रज्वलन

नवरात्रि की कालावधि में वायुमंडल में शक्तितत्त्व की तेज तरंगे कार्यरत रहती हैं । दीपक तेज का प्रतीक होता है । अखंड ज्योत में इन्हें ग्रहण करने की क्षमता होती है । अत: अखंड दीप प्रज्वलन से यह दीप की ओर आकृष्ट होती हैं ।

Navaratri : घटस्थापना

घटस्थापना का अर्थ है नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में व्याप्त शक्ति का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना ।

Navaratri : हिन्दुओं का प्रमुख पर्व नवरात्रोत्सव

नवरात्रि के नौ रात्रियों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है ।