धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा के लिए संस्कृत भाषा उपयुक्त ! – डॉ. अजित चौधरी, प्राचार्य, यशवंतराव चव्हाण पॉलिटेक्निक, बीड

रामनाथी, २१ जून (संवाददाता) – यह देश अनादि काल से हिन्दू राष्ट्र था तथा आगे भी हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा के लिए प्रयास किए जाने चाहिए । उसके लिए संस्कृत भाषा के बिना अन्य कोई विकल्प नहीं है । हमारी संस्कृति में संपूर्ण धर्मशिक्षा संस्कृत भाषा में है, उसे जान लेने के लिए संस्कृत भाषा जान लेना आवश्यक है । परिणामकारी धर्मजागृति करने के लिए हमें हिन्दू धर्म का स्वरूप जान लेना होगा । उसके लिए भी संस्कृत भाषा जान लेना आवश्यक है । इसके साथ ही धर्म पर हो रहे आघात तोड डालने के लिए भी संस्कृत भाषा ही उपयुक्त है, यह श्रीरामजन्मभूमि अभियोग में दिखाई दिया है । श्रीरामजन्मभूमि श्री प्रभु श्रीराम की ही है, यह प्रमाणित करने के लिए हमारे अधिवक्ताओं को सर्वोच्च न्यायालय के सामने संस्कृत धर्मग्रंथों के ही प्रमाण प्रस्तुत करने पडे थे, ऐसा मत बीड के यशवंतराव चव्हाण पॉलिटेक्निकचे प्राचार्य डॉ. अजित चौधरी ने व्यक्त किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के छठे दिन दिन (२१.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।‘वैश्विक हिंदु राष्ट्र महोत्सव’ के छठे दिन (२१.६.२०२३ या दिवशी) को उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।

डॉ. अजित चौधरी, प्राचार्य, यशवंतराव चव्हाण पॉलिटेक्निक, बीड

उन्होंने आगे कहा, ‘‘संपूर्ण विश्व में कहीं पर भी रहनेवाले हिन्दुओं में संस्कृत का ही संचार है । हमारे धर्माचरण के संस्कार संस्कृत में ही हैं । हमारे दिन का आरंभ एवं अंत भी संस्कृत श्लोक से ही होता है । मेकैले शिक्षापद्धति ने भले ही हमें संस्कृत भाषा से पृथक किया हो; परंतु आज भी यह देवभाषा हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । आज विभिन्न शोधकर्ताओं ने संस्कृत भाषा संगणक के ‘प्रोसेसिंग’ के लिए सर्वथा उपयुक्त है, यह बात प्रमाणित की है । हमारे प्राचीन मंदिर केवल प्रार्थनास्थल नहीं थे, अपितु वो शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी के भी केंद्र थे । सहस्रों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा में ही अनेक अविष्कार लिखकर रखे हैं । ऐसी सर्वार्थ से आदर्श देववाणी संस्कृत को व्यावहारिक भाषा बनाने के लिए हमें प्रयास करने चाहिएं; इसलिए प्रत्येक परिवार को अपने बच्चों को बचपन से अंग्रेजी नहीं, अपितु संस्कृत भाषा की शिक्षा देना आवश्यक है ।’’