शौच की समस्याओं पर प्राथमिक उपचार

‘शौच के लिए अधिक समय बैठना, साथ ही बल (जोर) देना, ये लक्षण हों, तो चौथाई चम्मच ‘सनातन यष्टीमधु (मुलेठी) चूर्ण’, चौथाई चम्मच ‘सनातन आमलकी (आंमला) चूर्ण’ एवं १ चुटकीभर सैंधव (सेंधा) नमक एकत्र कर आधी कटोरी पानी में दोनों समय के भोजन से पहले लें ।

उष्णता के विकारों पर सनातन की आयुर्वेदीय औषधियां

‘उष्णता के विकारों पर (उदा. शरीर पर घमोरियां होना, फुंसी होना, लघुशंका के समय जलन होना) दिन में ३ बार आधी चाय की चम्मच सनातन अडूसा चूर्ण एवं आधी चाय की चम्मच सनातन उशीर (खस) चूर्ण एकत्र कर आधी कटोरी पानी में मिलाकर पीएं । ऐसा लगभग १ से २ सप्ताह करें ।’

आयुर्वेद की औषधियां एवं उनकी समाप्ति तिथि (एक्सपायरी डेट)

आयुर्वेद के चूर्ण, गोलियां, दंतमंजन, केश तेल इत्यादि औषधियों पर निश्चित समाप्ति तिथि (एक्सपायरी डेट) लिखी होती है । इस दिनांक के उपरांत औषधि लेने पर, उसका कुछ दुष्परिणाम होता है क्या ?

‘विटामिन डी’ अल्प हो, तो औषधि लेने के साथ और क्या करें ?

सप्ताह में न्यूनतम एक अथवा दो बार, छुट्टी के दिन, जब भी अवसर मिले, तब यथासंभव उतने समय तक सूर्यप्रकाश में बैठकर प्राकृतिक रूप से वह ‘विटामिन डी’ लें । इससे हड्डियां एवं स्नायुओं को बल एवं ऊर्जा मिलती है ।

गरमी में निम्नांकित सावधानी रखें तथा विविध विकारों से दूर रहें !

‘वर्तमान में ग्रीष्म ऋतु आरंभ हो गया है । इस समय देह का तापमान बढना, पसीना आना, शक्ति क्षीण होना आदि कष्ट होते हैं । तापमान बढने पर व्यक्ति के बेसुध (बेहोश) होने से (उष्माघात होने पर, होश-हवास खोकर) मृत्यु के भी कुछ उदाहरण हैं ।

पथरी पर उपयुक्त सनातन पुनर्नवा चूर्ण

‘१ चाय का चम्मच सनातन पुनर्नवा चूर्ण, आधा ग्राम हजरूल यहूद भस्म एवं आधा ग्राम श्वेत पर्पटी यह औषधियां एकत्र कर दिन में २ बार एक कटोरी गुनगुने पानी में मिलाकर भोजन के पूर्व लें । उसके उपरांत तुरंत भोजन करें ।

गर्मियों में त्वचा का ध्यान रखने के विषय में कुछ उपाय एवं लिया जानेवाला आहार !

गर्मियां अर्थात परीक्षा, विद्यालय की छुट्टियां एवं दोपहर की कडी धूप; परंतु सूर्य की किरणों के निरंतर संपर्क में आने से हमारी त्वचा की सदा के लिए हानि हो सकती है । मैं एक प्लास्टिक सर्जन हूं इसलिए मुझे अनेक रोगी देखने के लिए मिलते हैं, जो अपनी त्वचा के दागों के लिए उपचार ढूंढ रहे हैं ।

गर्मी के विकारोंपर घरेलू औषधियां

गला, छाती अथवा पेट में जलन होना; मूत्रविसर्जन के समय जलन होना; शरीर पर फोडे आना; आंखें, हाथ अथवा पैरों का गर्म हो जाना; मासिक धर्म के समय अधिक रक्तस्राव होना तथा शौच में रक्त जाना

शरीर निरोगी रहने के लिए अयोग्य समय पर खाने से बचें !

‘सोने-उठने का समय निश्चित नहीं, व्यायाम नहीं, नित्य ही रात को चिप्स, सेव, चिवडा-नमकीन इत्यादि खा रहे हैं, तब भी यदि आप निरोगी हैं, तो यह आपके पूर्वजन्म के पुण्यों के कारण है; परंतु ध्यान रहे कि पुण्य समाप्त होते ही अब जो गलत आदतें हैं उनका परिणाम रोगों के रूप में दिखाई देने लगेगा ।