‘पर्याप्त आहार लेने के पश्चात भी थकान होना अथवा शक्तिहीन होने समान लगना’ इस पर आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार
शरीर में कमजोरी का इलाज करने हेतू आयुर्वेदिय चिकित्सा अवश्य गुणकारी है । कई बार कुछ लोगों को बहुत थकान लगती है । पर्याप्त आहार लेने के पश्चात भी कुछ को ऐसा होता है । यह जठराग्नि (पचनशक्ति) मंद होने का लक्षण है । शरीर में कमजोरी का इलाज करने हेतू आगे दिए क्रम से प्राथमिक उपचार करें ।
१. रात्रि में लंघन (उपवास)
एक दिन रात्रि का भाेजन न करें, इसके साथ ही कुछ भी न खाएं । भूख लगने पर गरम पानी पीएं । शरीर में भारीपन लगना, पेट साफ न होना, गले में कफ जमा होना, ऐसे लक्षण हों, तो पाव चम्मच सोंठ चूर्ण आधी कटोरी गुनगुने पानी के साथ लें । यह हुआ उपचार का पहला दिन ।
२. संसर्जन क्रम (धीरे-धीरे आहार बढाना)
२ अ. सवेरे विलेपी
अगले दिन सवेरे उठकर स्नान करें और जब भूख लगे, तब थोडा पतला भात अथवा नरम भात, उस पर २ चम्मच देसी घी एवं स्वाद अनुसार नमक डालकर भोजन करें । पतला भात बनाते समय उसमें थोडी मूंग की अथवा तूर की दाल भी डालें । पतले भात को संस्कृत भाषा में ‘विलेपी’ कहते हैं । यह विलेपी पचने में हलकी और पेट में हाेनेवाली जलन का शमन करनेवाली होती है । साथ में मेतकूट (दाे-तीन दालों और चावल को भूनकर पीसकर, फिर उसमें भुना और पिसा धनिया, जीरा, राई के साथ हींग, हलदी-मिर्च पाउडर और नमक मिलाने से तैयार होता है), साथ में स्वाद अनुसार नमक ले सकते हैं । विलेपी के स्थान पर पतली मूंग की सादी दाल (बिना तडका लगाए) अथवा कढण में देसी घी डालकर पी सकते हैं । (‘कढण’ अर्थात ‘मूगदाल पानी में पकाकर उसमें स्वादानुसार नमक डालकर लेना’)
२ आ. दोपहर दाल-चावल
दोपहर भूख लगने पर गरम दाल-चावल में २ चम्मच देसी घी डालकर लें ।
२ इ. सायंकाल पचने में हलका आहार
आगे दिए पदार्थों में से कोई भी एक पदार्थ – देसी घी में जीरा, कढीपत्ता एवं हलदी का तडका देकर बनाया गया (लाह्य) लाही का चिवडा, इसीप्रकार भुने पोहे अथवा चुरमुरे के चिवडा, राजगिरा लड्डू अथवा गेहूं के आटे के लड्डू, अनार, पपीता, सेब, मौसंबी, संतरा में से कोई एक फल (भूख का शमन हो, इतनी मात्रा पर्याप्त है) !
२ ई. रात में नित्य समान भोजन
यह अधिक मिर्च-मसालेदार न हो ।
३. शरीर में कमजोरी का इलाज करने हेतू नियमित व्यायाम एवं धूप के उपाय अवश्य करें !
तीसरे दिन से प्रतिदिन कम से कम ३० मिनट व्यायाम करें । इसमें अपनी क्षमता अनुसार चलना; दौडना; सभी जोडों की हलचल हो, ऐसे व्यायाम; खडे रहकर, बैठकर, पीठ पर, इसके साथ ही पेट पर लेटकर करने के योगासन एवं प्राणायाम, इन सभी का समावेश हो । संभव हो तो सवेरे अथवा सायंकाल की धूप में व्यायाम करें । बहुत कडी धूप में नहीं । दिनभर न्यूनतम ३० मिनट तो धूप में उपाय करें (अर्थात धूप में बैठें ।) ।
४. शरीर में कमजोरी का इलाज करने हेतू आवश्यकता के अनुसार बीच-बीच में लंघन इत्यादि क्रम पुन: करें
ऊपर दिए अनुसार कृति करने पर ‘शरीर के आमदोष का पचन होता है । (अन्नपचन ठीक से न होने पर शरीर में निर्माण हुए विषैले द्रव्य नष्ट होने में सहायता होती है)’ और ‘जठराग्नि प्रदीप्त होती है (पचनशक्ति में सुधार होता है)’. लंघन एवं संसर्जन उपचार, ये दोनों १ – १ दिन आवश्यकता अनुसार १ – २ माह में पुन: करें । व्यायाम एवं धूप के उपायों में निरंतरता रखें ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.९.२०२२)
टिप्पणी :
१. मात्रा के लिए चाय के चम्मच का उपयोग करें ।
२. उपरोक्त प्राथमिक उपचार कर गुण न आने पर वैद्यों का परामर्श लें ।
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