आयुर्वेद में बच्चों से लेकर बडों तक सभी को अपने स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखना चाहिए, इस विषय में प्राथमिक मार्गदर्शन किया गया है । यदि हम उन नियमों का पालन करेंगे, तो हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य संबंधी छोटी-बडी शिकायतें रहती हैं । इस आयु में बडी मात्रा में शरीर का क्षरण होता है; परंतु यदि हम अपने स्वास्थ्य का उचित ध्यान रखें, तो हम वृद्धावस्था में भी स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं । आज के लेख में ‘वरिष्ठ नागरिकों को अपने स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखना चाहिए ?’, इस विषय में हम जानकारी लेंगे ।
१. आयु की अवस्था के अनुसार स्वास्थ्य का ध्यान रखें !
आयु की अवस्था के अनुसार हमारे शरीर में दोषों की प्रबलता होती है । बचपन में कफ प्रवृत्ति प्रबल होने के कारण बच्चों को तुरंत ही सर्दी-खांसी जैसी कफ से जुडी बीमारियां होती हैं । मध्यम आयु में पित्त प्रवृत्ति प्रबल होती है; इसलिए आम्लपित्त जैसी बीमारियां होती हैं, जबकि वृद्धावस्था में वात प्रवृत्ति प्रबल होने के कारण जोडों का दर्द, कोष्ठबद्धता एवं पाचन से संबंधित कष्ट होते हैं । हम यदि वात का उचित प्रकार से ध्यान रखें, तो वृद्धावस्था में होनेवाले अनेक कष्टों को नियंत्रण में रखा जा सकता है ।
२. शरीर में बढनेवाले वात को नियंत्रण में रखने के लिए मालिश आवश्यक !
आरंभ के लेख में हमने वात के गुण देखे थे । वात रूखा अर्थात खुरदुरा, सूखा, सूक्ष्म, ठंडा एवं चंचल स्वभाव से युक्त है । जब वात बढता है, उस समय शरीर में रूखापन बढता है । त्वचा पर झुर्रियां आने लगती हैं । जोडों में शुष्कता उत्पन्न होने से जोडों की पीडा आरंभ होती है । इस शुष्कता को घटाने के लिए पूरे शरीर की तिल के तेल से मालिश करें । यह मालिश बहुत ही हल्के हाथों से करें, बहुत जोर लगाकर न करें । यहां शरीर में केवल तेल का अवशोषण ही अपेक्षित है । तेल का गुण स्निग्धता है, वह शरीर में बढनेवाले वात को नियंत्रित रखता है । प्रतिदिन स्नान से पूर्व हाथ से पूरे शरीर पर तथा जोडों पर नियमित रूप से तेल लगाने से जोडों की पीडा नियंत्रण में रहती है । मालिश करने से रक्तसंचार में सुधार होता है तथा भूख बढकर पाचन में सुधार होता है । शरीर की सभी ग्रंथियों के कार्य में सुधार होकर उसके फलस्वरूप शरीर के क्षरण की भरपाई होने में सहायता मिलती है ।
३. गुनगुने पानी से स्नान करें !
स्नान गुनगुने पानी से ही करना चाहिए । अनेक लोग ठंडे पानी से स्नान करना अच्छा मानते हैं; परंतु ठंडे पानी से वात बढता है; इसलिए चालीस वर्ष की आयु के उपरांत सभी को गुनगुने पानी से ही स्नान करना चाहिए ।
४. ठंडी हवा से बचने का उपाय !
वरिष्ठ नागरिक ठंडी हवा के संपर्क में आने से बचें । तीव्र गति से घूमनेवाले पंखे के नीचे सोने से बचें । यात्रा करते समय वाहन की खिडकी से सीधे ठंडी हवा न लगे, इस ओर ध्यान दें । ऐसे समय में कान में रुई डालें अथवा कान पर रुमाल बांधें ।
५. कौनसे व्यायाम करने चाहिए ?
लंबी दूरी तक पैदल चलना, शारीरिक एवं मानसिक भागदौड करने से बचें । हलका योगासन, दिन में २० से २५ मिनट पैदल चलने जैसे सरल एवं सामान्य व्यायाम करें । प्राणायाम अवश्य करें ।
६. कोष्ठबद्धता की शिकायतें घटाने के उपाय
शरीर में पानी का अधिक अवशोषण होने के कारण वृद्धावस्था में कोष्ठबद्धता की शिकायतें बडी मात्रा में दिखाई देती हैं । अनेक लोग प्रतिदिन पेट साफ करने की औषधियां लेते हैं । आरंभ में आधी गोली भी प्रभावी होती है; परंतु उसके पश्चात एक पूरी गोली, कालांतर में दो गोलियां; इस प्रकार गोलियों की मात्रा बढाने पर भी पेट साफ न होने की शिकायत वैसी ही बनी रहती है । पेट साफ करने की औषधि सप्ताह में एक बार लेने में कोई आपत्ति नहीं है; परंतु पेट साफ करने की औषधि प्रतिदिन लेने की आदत अनुचित है । इसका सामान्य उपाय यह है कि रात को सोते समय आधे कप गर्म दूध में २ चम्मच देशी घी डालकर पीएं । इससे कोष्ठबद्धता की शिकायत नियंत्रण में रहती है । अन्य एक उपाय यह है कि रात को सोते समय ८ से १० काली किशमिश को पानी में भिगोकर सवेरे उन्हें चबाकर खाएं । तब भी कोष्ठबद्धता का कष्ट बना रहे, तो वैद्य के मार्गदर्शन में ‘बस्ती’ चिकित्सा (एनिमा) करें ।
७. अन्य उपाय !
शरीर के क्षरण की भरपाई करने के लिए प्रतिदिन सवेरे एक चम्मच च्यवनप्राश खाएं । भोजन का समय निर्धारित कर उस समय पर गर्म एवं ताजा भोजन लें । बासी भोजन बिल्कुल भी न खाएं । आहार में दाल का पानी एवं सूप हो । उसे लहसुन अथवा हिंग-जीरे का तडका देने से पेट में स्थित वायु (गैस) घटती है । रात को विलंब से भोजन न करें । चाय-कॉफी अल्प मात्रा में लें अथवा उससे बचें, तो और अच्छा ! दिन में गुनगुना पानी पीएं । प्रत्येक बार गुनगुना पानी पीना संभव न हो, तो उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीएं ।
७ अ. ढलती आयु में नींद घट जाती है अथवा गहरी नींद नहीं आती । ऐसे समय में सोने से पूर्व पैरों पर तेल से मालिश करें ।
७ आ. वैद्य के मार्गदर्शन में नियमित रूप से औषधियां लें । किसी भी बीमारी की अनदेखी न करें ।
– वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर, पुणे (५.९.२०२३)