(सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदेजी का मार्गदर्शन
अपेक्षा करना’ अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’
– (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, पनवेल, महाराष्ट्र. (२०.१०.२०१९)