सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता होने से, आगामी ईश्वरीय राज्य का संचालन करनेवाले सनातन संस्था के दैवी बालक !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संकल्पानुसार आगामी कुछ वर्षाें में ईश्वरीय राज्य की स्थापना होनेवाली है । अनेकों के मन में प्रश्न होता है कि ‘इस राष्ट्र का संचालन कौन करेगा ?’ इसलिए ईश्वर ने उच्च लोक से कुछ हजार दैवी बालकों को पृथ्वी पर जन्म दिया है । उनके प्रगल्भ विचार और अलौकिक विशेषताएं इस स्तंभ में प्रकाशित कर रहे हैं ।

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों का तुलनात्मक अध्ययन

‘निर्विचार’, ‘ॐ निर्विचार’ और ‘श्री निर्विचाराय नमः’ इन नामजपों में ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अल्प (१० प्रतिशत) तथा ‘ॐ निर्विचार’ नामजप में शांति के स्पंदन सबसे अधिक (२० प्रतिशत) है । शांति के स्पंदनों द्वारा नामजप का निर्गुण स्तर निश्चित होता है । नामजप में जितने शब्द अल्प, उतना उनके निर्गुण स्तर में वृद्धि होती है ।

प्रेमभाव, लगन आदि विविध गुणों के कारण जिज्ञासुओं को साधना हेतु प्रेरित करनेवालीं वाराणसी की श्रीमती सुमती सरोदे (आयु ६० वर्ष) ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

निरंतर सेवारत रहनेवालीं, प्रेमभाव एवं लगन आदि विविध गुणों के कारण जिज्ञासुओं को साधना के लिए प्रेरित करनेवालीं मूलतः महाराष्ट्र के वर्धा की, परंतु वर्तमान में वाराणसी में पूर्णकालीन सेवा करनेवालीं सनातन की साधिका श्रीमती सुमती सरोदे ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हुईं ।

भोलापन, प्रीति और उत्कट राष्ट्र तथा धर्म प्रेम से युक्त फोंडा, गोवा के सनातन के संत पू. लक्ष्मणजी गोरेजी के सम्मान समारोह के प्रमुख सूत्र

६ दिसंबर २०२१ के दिन भोलापन, प्रीति और उत्कट राष्ट्र तथा धर्म प्रेम से युक्त फोंडा, गोवा के सनातन के ८० वर्षीय साधक श्री. लक्ष्मण गोरे सनातन के ११४ वें व्यष्टि संतपद पर विराजमान हुए । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने पू. गोरेजी के संतत्व के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश पढकर सुनाया ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का साधना के विषय में मार्गदर्शन !

अधिकांश पुरुष कार्य के निमित्त रज-तमप्रधान समाज में रहते हैं । इसका उनपर परिणाम होने से वे भी रज-तमयुक्त होते हैं । इसके विपरीत, अधिकांश स्त्रियां घर में रहती हैं । उनका समाज के रज-तम से संपर्क नहीं होता । इसलिए वे साधना में शीघ्र प्रगति करती हैं ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘श्री निर्विचाराय नमः’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।

सनातन की संत श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !

प्रत्येक कर्म को नाम से जोडें, तो वह कर्मयोग बन जाता है । नामजप करनेवाले मन को भाव के दृश्य में रमा दिया जाए, तो वह भक्तियोग और मन एवं बुद्धि नामजप के साथ चलने लगे, तो वह ज्ञानयोग होता है ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

अनेक लोगों को ‘पैतृक संपत्ति’ अर्थात घर, पैसे इत्यादि मिलते हैं । हम पांचों भाईयों के संदर्भ में हमें प्राप्त पैतृक संपत्ति अर्थात ‘माता-पिता ने किए संस्कार और साधना की रुचि ।’ व्यवहारिक वस्तुओं की तुलना में यह संपत्ति अनमोल है ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के अमृतवचन

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है ।

६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कु. तेजल पात्रीकर (संगीत विशारद) के स्वर में ध्वनिमुद्रित किया गया ‘ॐ निर्विचार’ नामजप सुनने के प्रयोग में सम्मिलित साधकों को हुए कष्ट और प्राप्त विशेषतापूर्ण अनुभूतियां

मन निर्विचार करने हेतु स्वभावदोष और अहं का निर्मूलन, भावजागृति इत्यादि चाहे कितने भी प्रयास किए, तब भी मन कार्यरत रहता है, साथ ही किसी देवता का अखंड नामजप भी किया, तब भी मन कार्यरत रहता है और मन में भगवान की स्मृतियां, भाव इत्यादि आते हैं ।